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इन्हीं परिस्थितियों में हमें संपूर्ण बनना है - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
इन्हीं परिस्थितियों में हमें संपूर्ण बनना है

इन्हीं परिस्थितियों में हमें संपूर्ण बनना है

सच क्या है

एक व्यक्ति जीवन से बहुत परेशान हो उठा। बहुत दु:खी, एक समस्या, दूसरी समस्या तीसरी समस्या, संसार, गृहस्थ, क्या करूं सोच रहा था। जहां देखो वहां कठिनाई, जहां देखो वहीं मुसीबतें। वो एक जैन गुरू के पास गया और आपबीती सुनाई। उस गुरू ने सारी बातें उसकी सुनी और उससे कहा एक गिलास पानी लेकर आओ और एक मुठ्ठी नमक। वो लेकर आया और उससे कहा कि अब वो नमक उस पानी में डाल दो। उसने डाला और फिर गुरू ने कहा फिर इसे पी लो तो उसने पीना आरम्भ ही किया था कि थूंक दिया, नहीं पी पाया।कहा कि बहुत नमकीन है। फिर गुरू ने कहा, फिर से एक मुठ्ठी नमक लेकर चलो और मेरे साथ चलो और वह गुरू उसे अपने साथ ले गया। एक छोटी सी स्वच्छ झील में ले जाकर गुरू ने कहा कि इस नमक को झील में डाल दो। उसने डाला और फिर कहा इस पानी को पियो। पूछा कैसा है तो उसने कहा बहुत मीठा है। नमक तो गिलास में भी डाला था परन्तु वह कैसा था? नमकीन और उतना ही नमक अब झील में डाला तब वह नमकीन नहीं था क्यों? पानी ज्यादा था। गुरू ने कहा नमक तो नमक ही रहेगा तुम अपने आप को झील बना दो गिलास नहीं बनो। क्या नहीं बनो झील, अपने हृदय को झील बना दो। संसार वहीं रहेगा, वही कड़वाहट रहेगी, वैसे ही लोग रहेंगे, नमकीन। केवल नमकीन नहीं, कड़वे और कठोर भी। इस कलयुग में अपेक्षा नहीं की जा सकती कि यहां का मनुष्य सतयुग जैसा व्यवहार करे। अंधकार है, सोझरा नहीं है ता यह संसार ऐसा ही है। हम इस संसार का ऐसा कुछ नहीं कर सकते। अपना ही कर सकते हैं। अपने को क्या बना देना है-झील। झील भव बड़ा कर देना है। सामने वाला व्यक्ति वैसा ही रहेगा। सामने की परिस्थिति भी वैसी ही रहेगी। वो स्थान वैसा ही रहेगा। वो वायुमण्डल वैसा ही रहेगा। अगर उससे लडऩे की कोशिश की तो संघर्ष होगा। परिणाम दु:ख, उलझन, बेचैनी। दो अहंकार टकराएंगे और जहां दो अहंकार टकराते हैं, दो संस्कार टकराते हैं, दो व्यक्ति टकराते हैं, वहीं परिणाम। दो आवाजें टकरा रही हैं वहीं परिणाम दु:खी होगा। हां जहां दो मौन टकराते हैं वहां केवल मौन बसता है। एक मौन प्लस दूसरा मौन। एक आवाज प्लस दूसरा आवाज, दो आवाजें और वो भी करकस। इसलिए इस संसार को समझना है। ये कैसे चल रहा है। इसी संसार में, इन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों में, इन्हीं बेचैनियों में हमें सम्पूर्ण बनना है। अनुकूल परिस्थितियों में सम्पूर्ण नहीं बना जाता, किसमें सम्पूर्ण नहीं बना जाता? प्रतिकूल परिस्थितियों, समस्याओं में कठिनाईयों में, दु:खों में, सब तरफ से जहां विरोध है। पद परिस्थितियों में स्वयं को मजबूत बनाना। अन्दर से स्वयं को स्थिर रखना। जो व्यक्ति स्वयं को अन्दर से स्वयं को वज्र समान स्थिर है, ऊपर से जो कुछ भी हो रहा है पर अन्दर निश्तरंग झील है, प्रशांत महासागर है। ऐसा स्वयं को अन्दर से बनाना है मजबूत और इस ब्राह्मण जीवन मे चलते-चलते हरएक के हृदय में एक कमजोरी रह जाती है और वो कमजोरी है सेंसिटिव नेचर। सेंसिटिव नेचर समझ में आता है माताओं को? क्या कहते बाबा उसको, बाबा के शब्दों में क्या नाम है उनका (किसी ने कुछ कहा) नहीं कुछ और है। हाथ लगाओ मुरझा जाए उसको क्या कहते हैं बाबा? टच मी नॉट देवी। कौन है यहां टच मी नॉट देवी जिनको हाथ लगाओ मुरझा गये। कुछ बोल क्या दिया तीन दिन तक नाराज, खाना बंद। हम इधर से आए मुह उधर। बातबात में नाराज, बात-बात में दु:खी, बात-बात में उदास, मुरझाना, रूसना और रूठना

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