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दुआओं का बैंक बैलेंस……….. - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
दुआओं का बैंक बैलेंस………..

दुआओं का बैंक बैलेंस………..

सच क्या है

शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। जब जीवन में कोई भयानक आपदा-विपदा या परेशानी आती है, सांसों की डोर उखड़ने को आतुर होती है, सभी प्रयास विफल हो जाते हैं और जीवन-मरण के बीच जिंदगी की पतवार जूझ रही होती है तो सभी के मुंह से एक ही शब्द निकलता है कि अब ‘दुआ’ कीजिए। दुआ कब इब्तिदा बनकर नई रोशनी दे जाती है ये हम सभी ने महसूस किया और देखा है। सवाल ये है कि क्या कभी हमने सोचा है कि आखिर दुआ करने के लिए ही क्यों कहा जाता है? आखिर दुआओं में ऐसी क्या ताकत होती है जो नियति को भी बदल देती हैं? दुआओं से दामन क्यों खाली नहीं रहना चाहिए? जीवन में सबकी दुआएं लेना क्यों जरूरी है? बड़े-बुजुर्गों की दुआएं कैसे आशीष बनकर हमारी जिंदगी की दशा और दिशा बदल देती हैं? क्या हमने इन दुआओं का बैलेंस अपने एकाउंट में जमा कर रखा है? क्या हम रोजमर्रा के जीवन में अपने बोल, आचरण, कर्म और व्यवहार से दुआओं की पूंजी जमा कर रहे हैं? या फिर बद्दुओं से अपने दामन को काजल की कोठरी बनाते जा रहे हैं? क्या दुआओं का बैलेंस इतना है जो घोर अंधेरे में भी उजाले की किरण बनकर रास्ता दिखाती रहें? बेहतर जीवन जीने की कला से जुड़े ये वो सवाल हैं जो हम सभी को अपने अंतर्मन की गहराई से जानना, समझना और मंथन करना बेहद जरूरी है। क्योंकि दुआएं उस परवर्दीगार, खुदा, ईश्वर के पास सीधे पहुंचती हैं।
परमात्मा पिता की दुआएं सबसे अहम…
हम देखते हैं यदि बच्चे ने छोटा सा भी काम कर दिया तो मात-पिता खुश होकर दिल से दुआएं देते हैं। वहीं बच्चा सिर्फ मात-पिता का गुणगान करते रहे आप तो बहुत महान हो, बहुत अच्छे हो, दुनिया के सबसे अच्छे मात-पिता हो, आप मेरे लिए आइडियल हो। दूसरी ओर बच्चा मात-पिता का कहना नहीं माने, उनके अनुसार नहीं चले, हमेशा उनकी श्रीमत के विपरीत ही कर्म करे तो क्या अपने ऐसे बच्चे से मात-पिता खुश होंगे? इसी तरह हम भी रोज भजन-पूजन, आरती और जप-तप, मंत्र साधना के माध्यम से उस ईश्वर का दिन-रात महिमामंडन करते हैं, बड़ी-बड़ी उपमाएं देते हैं, आराधना करते हैं लेकिन उसकी एक नहीं मानते। न ही उसकी बताई श्रीमत पर चलते हैं। सदा अपनी ही मनमानी करते हैं। सवाल ये है कि क्या ऐसे में परमात्मा खुश होंगे? क्या उनकी दुआओं की रहमत बरसेगी? इन बातों का गहराई से मंथन-चिंतन करने की जरूरत है।
बैंक बैलेंस की तरह होती हैं दुआएं…
हम सभी को अनुभव है कि जब हम किसी व्यक्ति को आपदा में होने पर उसकी मदद करते हैं तो बदले में वह हजारों दुआएं देकर जाता है। ये दुआएं हमारे पुण्य के खाते में उस बैलेंस की तरह होती हैं जिसे हम कभी भी कैश कर सकते हैं। जैसे हम जीवन में आपातकाल स्थिति के लिए बैंक एकाउंट में बैलेंस बनाकर रखते हैं, ताकि जरूरत के समय कभी भी निकाल सकें। इसी तरह यदि हमारे एकाउंट में दुआओं का खजाना जमा होगा तो वह हमें आपदा के समय ढाल बनकर सामने आ जाती हैं। इस खजाने को हम रोजाना आसपास के लोगों, परिजन, मित्र-संबंधी, सहपाठी, सहकर्मी या किसी अनजान राही के द्वारा अपने
कर्म, व्यवहार, सोच और सहयोग से नित जमा करते हुए बढ़ा सकते हैं। यदि शुभभावना-शुभकामना की दुआएंजमा कर रखी हैं तो इनकी शक्ति हमें परेशानी और समस्या के समय आत्मबल प्रदान करती है। फिर वो आपदा पहाड़ से रुई के समान बन जाती है।
बद्दुआएं चक्रवृद्धि ब्याज सहित वापस आती हैं…
दूसरी ओर यदि हमने जीवन में अपनी सोच, कर्म और व्यवहार से बद्दुआओं को जमा किया है तो छोटी सी आपदा कब बड़ी बन जाती है इसका हमें आभास नहीं होता है। साथ ही ये हमारे पुण्य के खाते को खत्म करते हुए एक दिन जीरो और फिर माइनस में लाकर खड़ा कर देती हैं। फिर हम कितनी भी मेहनत, परिश्रम के साथ किसी कार्य को अंजाम दें लेकिन बद्दुओं की ब्लैक एनर्जी हमारी सफलता में बाधक बनकर खड़ी हो जाती है। जीवन का मूलमंत्र हो…. दुआ दो, दुआ लो जीवन लक्ष्य हो कि हमारे कर्मों से सदा दूसरों को खुशी, आनंद और सुख मिले। वाणी दूसरों में उत्साह औैर उल्लास भरने वाली हो। सामर्थ्य अनुसार दूसरों की मदद का भाव सदा हृदय में आलोकित रहे। जीवन में प्राणी मात्र के प्रति दुआ देने का मूलमंत्र बना लिया तो फिर देखिए कैसे चक्रवृद्धि ब्याज सहित दुआओं का खजाना आपकी जीवन बगिया को महका देगा। इस सबमें महत्वपूर्ण हम अपनी भावी पीढ़ी को ऐसे संस्कार दें कि वह इनकी कीमत को बखूबी समझ सकें और अंगीकार कर जीवन पथ को नई ऊंचाइयों के शिखर पर ले जा सके। दुआ दो, दुआ लो’ के मूलमंत्र को जिस दिन अंतर्मन की गहराई से मानस पटल पर अंकित कर दिया तो जीवन खुशियों से महक जाएगा। दुआओं की चादर तले काली छाया दबकर जीवन को स्वर्णिम काल बनाकर जगमगा देगी।

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