महसूसता की शक्ति– महसूसता की शक्ति से जीवन में बदलाव संभव है…
हमारे संकल्पों में बहुत शक्ति होती है जो हमें एनर्जी प्रदान करती है। पॉजीटिव सोचें। जैसे मैं कोई भी कार्य कर सकता हूँ। मैं बहुत मेहनती हूँ। मुझे सफलता अवश्य मिलेगी।
आबू रोड – कोरोना काल की एक सच्ची घटना गुजरात की है। एक साहूकार परिवार अहमदाबाद का जिसके पास दो करोड़ से ज्यादा की सम्पत्ति थी। परिवार के चार भाई चारो के झगड़े आपस में धन को लेकर चल रहे थे। एक बीके भाई अहमदाबाद में बड़े फैक्ट्री के मालिक हैं उनके ये चारों रिलेटिव थे। हमारी बीके गीता बहन जो क्लास कराती हैं उनका एक क्लास उन लोगों को भेज दी। दो को कोरोना हो गया था। सबने वो क्लास सुनीं क्लास सुनकर उनको लगा कि अभी तो सिर्फ कोरोना हुआ है, अगर हम चारो ही मर गये तो क्या काम आयेगा? सब ने फैसला किया लडऩा नहीं है। चारो ने आराम से पच्चीस-पच्चीस करोड़ बांट लिए। महसूस हुआ क्योंकि कई धनवान भी मरे बस उनका फैक्ट्री रह गया था। तो महसूस हुआ कि यह धन उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना मूल्यवान हम चारों का प्यार और नाता। तो रियलाइजेशन से, महसूसता से विचारों में परिवर्तन हो गया। नहीं तो ये मकान मुझे मिले, ये जमीन मुझे मिले, तो इस घर में झगड़े ही झगड़े लगे पड़े हैं।
कमियों को खत्म करना है… हम सभी को अपने-अपने घरों में सुख, शान्ति, प्रेम, खुशी का माहौल बनाना है। माताएं ज्यादा जिम्मेवारी लें। कई माताएं सोचती हैं मैं तो अकेली ज्ञान में हूं और कोई घर में नहीं चलता। मैं इसका छोटा सा सुन्दर उत्तर दिया करता हूं कि मन्दिर में ईष्ट देवी कितनी होती हैं? अम्बाजी में कितनी अम्बाऐं हैं। एक हैं न। एक ही देवी काफी हैं बहुतों के काम बनाने के लिए। हम अगर महान बन जाएं तो परिवार में कोई न शराब पियेगा, न मांस-मछली खाएगा, न झगड़ा करेगा ये तीन आजकल की विशेष समस्याएं हैं। हमें अपनी कमियों को महसूसता की शक्ति से खत्म करना है। इसका आधार है श्रेष्ठ स्वमान में स्थित होना। स्वमान केवल रटना नहीं है उसका नशा चढ़ जाए कि मैं यह हूं। लोग शिकायत करते हैं कि
हमारे ऑफिस का वातावरण ऐसा-ऐसा गंदा है। मैं कहता हूं कलयुग में स्वर्ग जैसा वातावरण थोड़ी न होगा। आज यह समझकर ऑफिस जाओ कि मैं हूं मास्टर क्रीयेटर हूं। वातावरण कैसा भी हो सबको बदलने वाले हम हैं तो शिकायत खत्म हो
जायेगी और नये-नये अनुभव होगें। समझ लो कि मैं इष्ट देवी हूं। जहां मैं जाउंगी रेत में भी हरियाली लाउंगी।
समय अनुसार हम अपने संकल्पों को बदलें… हमारे निगेटिव वायब्रेशन सेवा बढऩे ही नहीं देते। हम अपने संकल्पों को बदलें। समय अनुसार जिस बदलाव की जरूरत है उसे बदलें। ज्यादा सोचने की आदत को बदलें। आज संसार के अनेक लोगों में डर बढ़ता ही जा रहा है। हमें अपने में बदलाव लाना है- अपने बोलने के तरीके में, किसी भी परिस्थिति में, किसी भी दुर्घटना में हम परेशान नहीं होगें। लोग कहते हैं ये ब्रह्माकुमारीयां कहती हैं कि विनाश हो जायेगा। यह सुनकर लोग दु:खी हो जाते हैं कि ये विनाश-विनाश ही करती हैं। कई लोग तो ऐसा भी कहते हैं कि ये पवित्र आत्माएं हैं भाई ये विनाश-विनाश कहती हैं तो जरूर हो जाएगा। इस तरह के संकल्प आगे और परिस्थितियों को नजदीक लायेगा। लेकिन दुनिया में लोगों को इस बात का आभास नहीं हो सकता कि कई जन्म के जो सबके विकर्म पाप हैं वो अब एक्टिव होते जाएंगे। उसके समाधान का कोई दवाई नहीं होगी। आप ये समझ लें कि दो-चार साल में हमारी मेडिकल साइंस फेल हो जाएंगी क्योंकि मानसिक रोग काफी होंगे। मन का इलाज उन डॉक्टरों के पास नहीं है।