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त्याग के बिना तपस्या नहीं, तपस्या के बिना सेवा फीकी है - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
त्याग के बिना तपस्या नहीं, तपस्या के बिना सेवा फीकी है

त्याग के बिना तपस्या नहीं, तपस्या के बिना सेवा फीकी है

आध्यात्मिक

शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। आज बाबा बोले मैं बच्चों को ज्यादा याद करता हूं। अगर बच्चे ज्यादा याद करें तो अहो सौभाग्य। हमको बाबा पदमापदम भाग्यशाली बनाने के लिए कितना याद करता है। हम कहते बाबा, आपको तो अनेक बच्चे हैं, हमको तो एक आप हो। हमें बाबा से साकार, अव्यक्त और निराकार तीनों ही इक्ट्ठी भासना मिलती है। अगर वह न आता तो इनकी गोद के बच्चे कैसे बनते, यह न होता तो उनको कैसे पहचानते। हमारे सामने एक में तीन हैं। तीनों की भासना जिस आत्मा के अन्दर भरी हुई है उसका आवाज निकलता है, बाबा आपको याद क्या करें, आप भासना ही दे रहे हो। त्याग, तपस्या
और सेवा में पहले क्या? तपस्या के पहले त्याग, त्याग के बिना तपस्या नहीं, तपस्या के बिना सेवा फीकी है। समझाने की हिम्मत तब आती है जब पूरी समझ हो, पूरा निश्चय हो। निश्चय से बहादुर बनते हैं तो हिम्मत काम करती है। निश्चय का बल है। बाबा का जो ज्ञान है, उसका रस अन्दर भरा हुआ हो। बाबा का एक-एक बोल कितना गुह्य, गोपनीय और रहस्ययुक्त है। डीप जाओ तो पता चलेगा, गोपनीय है, परमात्मा से स्नेह जोड़ने वाला है, उसमें बहुत रहस्य समाया हुआ है। एक-एक बोल ऐसे सुनते, मन को लगा तो मन्मनाभव हो गए आनंद आ गया। मन्मनाभव के पहले देह सहित देह के सब संबंध त्याग। सर्व धर्मान परित्यज्य…. इस त्याग से तपस्या शुरू हो गई। दिल ने बाबा को अपना बना लिया। जैसे शादी होती है तो एक से जोड़ते, त्याग बहुतों से हो जाता। तो दिल से सबका त्याग। मामेकम्, देह सहित देह के सब संबंध त्याग। बाबा ने कितनी समझ दी है। बाबा को समझदार बच्चे चाहिए। एक-एक बात प्यार से समझाओ। हमारे पास इतना खजाना है, उसका जितना मंथन करो, जितना औरों को समझाओ तो जैसे अथॉरिटी आ जाती। एक योग की, हम किसके बच्चे हैं, योग से
पता चलता है। न सिर्फ बुद्धि से, बुद्धियोग से। बुद्धि से समझा यह बाप है, परन्तु उससे जो प्राप्ति, अनुभव की शक्ति है। वह अथॉरिटी वाला बना देती है। आज कईयों को आश्चर्य लगता यह कहां से बोलते हैं। बाबा कितनी अथॉरिटी से समझाता है। कभी बाबा को संकोच नहीं होता है, यह महात्मा है, सन्यासी है। जानते हैं यह न होते तो दुनिया पाप में जलकर खत्म हो जाती। परन्तु अभी हमको समझ है। बुद्धि से समझाएंगे तो कहेंगे अभिमान है, योग से समझाएंगे तो कहेंगे राइट है। नम्रता से समझाया। नम्रता से सत्यता अपने आप सिद्ध हो जाती है। सुनने वाले की आंख खुल जाती है, फिर उनका दिल कहता है और सुनूं। कभी वाद-विवाद कोई नहीं कर सकता है। बुद्धिवानों की बुद्धि बाबा नजदीक खींचता है। हम लड़ना नहीं जानते हैं, किसी को क्रिटिसाइज नहीं करते है।

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