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भाग्य लिखने की कलम हमारे हाथ में है, जितना चाहो बना लो - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
भाग्य लिखने की कलम हमारे हाथ में है, जितना चाहो बना लो

भाग्य लिखने की कलम हमारे हाथ में है, जितना चाहो बना लो

आध्यात्मिक

 शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। हम कितने भाग्यशाली हैं जो भाग्यविधाता बाबा ही हमारा बाप हो गया। भाग्य की रेखा खींचने की कलम भी बाप ने दे दिया है। जितना चाहें उतना लंबा खींच सकते हैं। पहले कहते थे भगवान के हाथ में है। अब बाबा कहता है तुहारे हाथ में कलम देता हूं। जो अभी भाग्य बनाना शुरू करते हैं उनकी लकीर लंबी हो जाए, थोड़े में ही खुश न हो जाएं या थोड़ा बनाके नशा न दिखावें कि मैंने इतना किया। सहयोग के लिए कहा जाता है कि सहयोग के लिए अंगुली दो, बाकी भले अपनी प्रवृति में रहो। लेकिन अंगुली भी बिगर हाथ के नहीं आती। अंगुली दिया माना बाबा को हाथ दिया। हाथ दिया तो हाथ भुजा के बिगर नहीं आ सकता है। तो कितना भगवान, भाग्य विधाता सबका कल्याण करने के लिए कहता है। बच्चे सिर्फ सहयोग की अंगुली दे दो। सहयोगी बनने वाली आत्माएं कितना समीप आ जाती हैं। कितना सहज बाबा उनको अपना बना लेते हैं। योगी बनने में टाइम क्यों लगता है? युद्ध क्यों करनी पड़ती है? क्योंकि सहयोगी बनने में थोड़ा देर लगाई है। इसलिए योगी बनने में भी देरी लगती है कैसे करुं, क्या करुं, योग नहीं लगता, माया के विघ्न आते हैं, कारण क्या? देही- अभिमानी होकर रहने की प्रैक्टिस कम है। यह स्मृति नहीं रहती कि हम भाग्य-विधाता के बच्चे हैं। कितना भाग्यवान हूं। अपने वा दूसरों के छिपे हुए संस्कार इमर्ज हो जाते हैं। हर आत्मा को आत्म-अभिमानी स्टेज से देखने की गुप्त प्रैक्टिस की कमी है। इससे समय, संकल्प व्यर्थजाता है। सदा रूहानियत के नशे में रहें, रूहानी राहत में रहें, खुशी की खुराक खाते रहें तो सदा मजबूत रहेंगे। ड्रामा की हर न्यारी और प्यारी सीन देखते हर्षित रहेंगे।


श्रीमत ही जीवन का आधार हो… बाबा हम बच्चों को इशारा करते हैं- बच्चेदेरी तुहारी है। मनोबल की कमी है। अनुभव कहता है कि मन्सा जितनी पावरफुल है, वायुमंडल अच्छा है, उतना अनेक आत्माओं को सहज योगी बनाने में मदद करता है। व्यर्थ संकल्पों के मायाजाल से छुड़ाता है। व्यर्थ संकल्प महाजाल हैं। कहेंगे, चाहते नहीं हैं लेकिन हो जाता है। दूसरा अच्छा नहीं करता है। ये याल चलने लग पड़ते हैं। अपनी गलती नजर नहीं आती है, दूसरे की गलती दिखाई पड़ती है। गलती क्या है? कुछ भी नहीं है। हर आत्मा का पार्ट न्यारा और प्यारा है। संगमयुग की भागवत लीला में हरेक बाबा के बच्चे का विशेष पार्ट है। भल उसने अपने पार्ट को नहीं समझा है कि भगवान ने क्या पार्टदिया हुआ है। लेकिन हमको तो बाबा ने इतनी समझ दी हुई है कि हरेक का विशेष पार्ट है। जैसे और सब ज्ञान की बातें सिमरण कर हर्षित होते हैं। योगयुक्त होकर अपनी स्थिति को अच्छा बनाकर, शान्त चित्त रह सकते हैं।

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