एक साल जंगल में बिताने के बाद युवराज अपने राज्य को लौटना चाहता था, पर गुरु की बात को टाल भी नहीं सकता था, इसलिए वह बेमन ही जंगल की ओर बढ़ चला। कई दिन गुजर गए पर युवराज को कोई नई आवाज़ नहीं सुनाई दी। वह परेशान हो उठा। उसने निश्चय किया कि अब वह हर आवाज़ को बड़े ध्यान से सुनेगा। फिर एक सुबह उसे कुछ अनजानी सी आवाजें हल्की- हल्की सुनाई देने लगीं। इस घटना के कुछ दिनों बाद वह गुरु के पास वापस लौटा और बोला- पहले तो मुझे वही ध्वनियां सुनाई दीं जो पहले देती थीं, लेकिन एक दिन जब मैंने बहुत ध्यान से सुनना शुरू किया तो मुझे वो सुनाई देने लगा जो पहले कभी नहीं सुनाई दिया था। मुझे कलियों के खिलने की आवाज सुनाई देने लगी। मुझे धरती पर पड़ती सूर्य की किरणों, तितलियों के गीत और घांस द्वारा सुबह की ओस पीने की ध्वनियां सुनाएं देने लगीं। यह सुनकर गुरुजी खुश हो गए और मुस्कुराकर बोले- अनसुने को सुनने की क्षमता होना एक अच्छे राजा की निशानी है। क्योंकि जब कोई शासक अपने लोगों के दिल की बात सुनना सीख लेता है। बिना उनके बोले, उनकी भावनाओं को समझ लेता है, जो दर्द बयां न किया गया हो उसे समझ लेता है, अपने लोगों की अनकही शिकायतों को सुन लेता है, केवल वही अपनी प्रजा का विश्वास जीत सकता है। कुछ गलत होने पर उसे समझ सकता है और अपने नागरिकों की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरी कर सकता है।
संदेश: अगर हमें अपनी फील्ड का लीडर बनना है तो हमें भी वो सुनना, सीखना चाहिए जो नहीं कहा गया है। यानी हमें उस युवराज की तरह बिलकुल अलर्ट होकर अपना काम करना चाहिए और अपने साथ काम करने वालों की ज़रूरतों और भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। तभी हम खुद को एक ट्रू लीडर की तरह स्थापित कर सकेंगे।