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संतों के गीता पर मंथन से बही ‘ज्ञानामृत’ की धारा - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
संतों के गीता पर मंथन से बही ‘ज्ञानामृत’ की धारा

संतों के गीता पर मंथन से बही ‘ज्ञानामृत’ की धारा

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गीता ज्ञानामृत द्वारा स्वर्णिम भारत का निर्माण विषय पर संत समागम का आयोजन

आबू रोड (राजस्थान)। ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय शांतिवन में आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर अभियान के तहत दो दिवसीय संत समागम आयोजित किया गया। ‘गीता ज्ञानामृत द्वारा स्वर्णिम भारत का निर्माण’ विषय पर आयोजित संत समागम में देशभर से 50 से अधिक नामचीन संत-महात्मा, मंडलेश्वर शामिल हुए। दो दिन चले समागम में संतों ने एक मत से कहा कि गीता सभी शास्त्रों की माता है। गीता में ही जीवन जीने की कला समाई हुई है। गीता हमें जीवन में नई राह दिखाती है। आत्मा का परमात्मा से मिलन कराती है। सच्चे गीता ज्ञान से ही स्वर्णिम भारत का निर्माण संभव है। कार्यक्रम में दस हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया। संस्थान की मुख्य प्रशासिका दादी रतनमोहिनी ने कहा कि दुनिया के प्रत्येक मनुष्य परमात्मा के बच्चे हैं। सबका अधिकार है कि वे परमात्मा से शक्ति लेकर सुखी रहें। अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी, फिल्म अभिनेत्री सिमरण अहूजा और भाग्यश्री ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

ब्रह्मा बाबा ने पहचाना कि मानव सृष्टि में बहुत सारे आत्मा रूपी हीरे छिपे हुए हैं। मानव सृष्टि में बहुत सारे हीरे आज राजयोगी कहलाते हैं जो ये सारे हीरे हैं। आज इनके द्वारा गीता का पैगाम भारत के कोने-कोने में समुद्र पार भी पहुंचाया जा रहा है। हमारा ये कदम आज स्वर्णिम भारत की ओर बढऩे वाला है। पिछले 15 साल में ब्रह्माकुमारीज़ के अनेक सेवाकेंद्रों पर गया हूं। भारत का स्वर्णिम युग का प्रारंभ हो चुका है। दुनिया के सारे लोग आबू के बाबू के काबू में आ जाएं तो सारी धरती जन्नत बन जाएगी। राजयोग राज पद दिलाने वाला ही योग है।

महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज
श्रीपंचायती उदासीन नया अखाड़ा, पटौदी, हरियाणा

मैं ने सुना था कि एक नारी को दूसरों के ऊपर आश्रित होना चाहिए लेकिन ऐसा सुनना मिथक साबित हुआ है। जहां यह ईश्वरीय विश्व विद्यालय में माताएं और नारियों का सम्मान और शक्ति देखते हुए वो मेरे मन की बात गलत सिद्ध होती है। जैसे बाल्यकाल में पिता के आश्रय में रहना चाहिए, युवावस्था में पति के आश्रय में रहना चाहिए, बुढ़ापे में पुत्र के आश्रय में रहना चाहिए। ऐसे बहुत कुछ सुना था, लेकिन यहां आकर मेरे विचार आज इस विश्व विद्यालय में सभी को देखते हुए बदल गए। वो बात गलत सिद्ध हो गई।

शंकरानंद सरस्वती महाराज श्रीमद् जगतगुरु विश्वकर्मा महा संस्थान सावित्री पीठ मठ, कासी, कर्नाटक

समाज को संस्कारित करने का बहुत बड़ा अभियान माउंट आबू की धरती से चलाया जा रहा है। ब्रह्माकुमारीज़ की शिक्षाएं जनकल्याण के लिए हैं। ताकि हम परमात्मा से जुड़कर अपनी खोई हुई सत्य ज्ञान, शांति, प्रेम, आनंद, शक्ति, पवित्रता, सुख को दोबारा से प्राप्त कर सकें। मैंने संस्थान के मुख्यालय को देखा है, जहां की विधि व्यवस्था स्वयं निराकार परमात्मा शिव बाबा चला रहे हैं। कोई देहधारी मनुष्य नहीं चला सकता। शास्त्रों में जो हमने पढ़ा, उसके अनुसार परमात्मा शिव अपना कार्य ब्रह्मा, विष्णु और शंकर द्वारा इस पावन भूमि पर स्थापना, पालना, संहार का कार्य कर रहे हैं।

महंत जन्मेजय शरण महाराज महामंडलेश्वर पीठाधीश्वर, भारत साधु समाज,महामंत्री, श्रीजानकी घाट, आयोध्या

बूंद लाखों बरसती हैं किंतु मोती वही बनती है जो स्वाति नक्षत्र में सीप में मुंह में पड़ता है। नक्षत्र वही पूजा जाता है जो किसी कार्य को सिद्धी द्वार तक पहुंचा दे। जन्म वही सफल है जो दादी रतनमोहिनी की तरह अपना संपूर्ण जीवन आध्यात्म को समर्पित कर दे। इस महान तपोभूमि से मैं कहना चाहता हूं कि यह ब्रह्माकुमारीज़ परिवार विश्व का एकमात्र परिवार है जो दुनिया के 140 देश के अंदर आध्यात्मिक मूल्यों के लिए, नैतिक मूल्यों के उत्थान के लिए, शांति और सद्भावना के लिए समर्पित रूप से कार्य कर रहा है। ये कार्य माता और बहनों के द्वारा हो रहा है।

डॉ. लोकेश मुनी, संस्थापक, अहिंसा विश्व भारती, नई दिल्ली

दादी मेरी मां हैं वे बहुत बड़ी राजयोगिनी हैं, इसलिए हम लोग भी राजयोगी घर में ही जन्म लेते हैं। तब जाकर योगी बन जाते हैं और जब योगी बनने के बाद योगी के पास मां के अलावा कोई शब्द नहीं रह जाता है। आगे हम सब का जन्म ब्रह्मलोक होते हुए स्वर्णिम सुंदर दुनिया में होने वाला है। मानस परिवार और दादी ने हम सब को बुलाकर परमात्मा के रंग में रंग दिया। आबू की धरती पर परमात्मा द्वारा रोज ज्ञान ध्यान के साथ ज्ञान रूपी मुरली सुनाते हैं। ज्ञान रूपी ध्यान मुरली आखिरी सांस तक नहीं छोडऩा है।

सूर्याचार्य कृष्णगिरी महाराज पीठाधीश्वर, जूना अखाड़ा, मुरली मंदिर, द्वारका, गुजरात

मौजूदा दौर में आध्यात्म ही है जो मनुष्य को सही राह दिखा सकता है। सभी धर्मों की शिक्षाएं लोगों को एकमत रहना सिखाती हैं। कभी भी दूसरे धर्मों का अपमान नहीं करना चाहिए। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान का ज्ञान मानवता को स्थापित करता है। हमारी सनातन संस्कृति अपनी असली संस्कृति है। देवी-देवताओं जैसा ही मानव का स्वभाव होना चाहिए। इससे मानव समाज देव तुल्य हो जाएगा। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान का प्रयास जरूर एक दिन रंग लाएगा। नारी शक्ति का यहां अनुपम उदाहरण देखने को मिल रहा है।

पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वरानंद सरस्वती महाराज

श्रीराम शक्तिपीठ संस्थान,

चारों दिशाओं में ही आज नारी शक्ति की जयजयकार हो रही है। ऐसी महान विभूतियां इस सृष्टि मंच पर रहेंगी तो निश्चित तौर पर आसुरी प्रवृत्तियों का सफाया होगा। ऐसे प्रयासों से एक दिन अवश्य विश्व में बदलाव आएगा। मानव के संस्कार देव स्वरूप हो जाएंगे।

बालयोगी उमेशनाथ महाराज, पीठाधीश्व श्री वाल्मिकी धाम, उज्जैन, मप,



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