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सुबह उठते ही करें महान,श्रेष्ठ और शक्तिशाली संकल - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
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समस्या-समाधान
  • योगी के लिए दिनचर्या और आत्म-निरीक्षण की विधि

शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वरीय ज्ञान और सहज राजयोग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद पहले-पहले तो हमें अपने जीवन में काफी परिवर्तन महसूस हुआ परन्तु अब ऐसा लगता है कि उन्नति की गति मंद पड़ गई है। जिस अव्यक्त स्थिति को हमें प्राप्त करना है, उसका चित्र तो हमारे सामने स्पष्ट है परन्तु उस तक पहुंचने में हमारी गति में सन्तोषजनक तीव्रता नहीं आई है। अतः वे जानना चाहते हैं कि अब गति में तीव्रता लाने के लिए क्या साधन अपनाया जाए? ध्यान से देखा जाए तो गति मंद अथवा अतिभंग होने के पांच ही मुख्य कारण होते हैं। यदि उन कारणों का निवारण करने का पुरुषार्थ हम करें तो आत्मोन्नति की पराकाष्ठा पर पहुंच सकते हैं।

अवस्था का आधार है चर्या-
मनुष्य की अवस्था का सारा आधार उसकी ‘चर्या’ है। चर्या में दिनचर्या भी शामिल है, सांध्यचर्या भी और रात्री चर्या भी। मनुष्य सोकर जब उठता है और आंख खोलता है। अथवा पहला संकल्प करता है तब से उसकी दिनचर्या प्रारम्भ हो जाती है और रात्रि को सुषुप्त अवस्था तक जो भी संकल्प-विकल्प या कर्म करता है, वे सभी उसकी चर्या में ही गण्य हैं। यहां तक कि जो स्वप्न वह देखता है, वह भी एक प्रकार से उसकी चर्या का ही अर्द्धचेत अवस्था में विस्तार है। चर्या नियमित, सन्तुलित एवं ज्ञानानुकूल न होने से भी मनुष्य का आध्यात्मिक पुरुषार्थ ढीला हो जाता है। अत: सबसे पहले मनुष्य को अपनी चर्या पर ही ध्यान देना चाहिए। यहां हम चर्या के कुछ आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।
ठीक मनसा से सोना-
प्रात: ठीक समय पर उठने के लिए और मानसिक-शारीरिक तौर पर चुस्त महसूस करने के लिए आवश्यक है कि हम ठीक समय पर सोयें। यद्यपि निद्रा पर जितनी विजय प्राप्त हो सके उतना अच्छा ही है। देखा गया है कि रात्रि को सोने के लिये 10
बजे का समय एक आदर्श समय होता है। क्योंकि इस समय सोने से मनुष्य प्रातः 3 या 4 बजे उठ सकता है और उस समय के एकान्त, शान्त और सतोगुणी वातावरण में योगाभ्यास एवं प्रभु-मिलन का आनन्द ले सकता है। यदि कोई मनुष्य 10 बजे की बजाय देरी से सोता है तो वह या तो प्रातः देर से उठता है या उसे दिनभर थकावट, आलस्य, भारीपन या निद्रा का प्रवाह महसूस होता है। इसका प्रभाव उसकी सारी दिनचर्या पर पड़ता है। अतः अपनी दिनचर्या को ठीक करना ज़रूरी है।
मानसिक तैयारी जरूरी-
रात्रि को निद्रा के लिए मानसिक तैयारी भी हमें ज्ञानानुकूल ही करनी चाहिए। शयन-शैय्या पर बैठकर पहले हमें कुछ समय शिव बाबा परमपिता परमात्मा की मधुर स्मृति का अभ्यास करना चाहिए। यदि हमारे पास अधिक समय न भी हो या हम थकावट महसूस कर रहे हों तो भी पांच मिनट ही सही, परन्तु हमें ईश्वरीय स्मृति में बैठना अवश्य ही चाहिए। सोने की चारपाई पर जाकर पड़ जाना यह योगी की चर्या नहीं है। योगी तो पहले अपने बिस्तर को ठीक करके, हाथमुंह स्वच्छ करके तब चारपाई पर बैठता है। सहज रूप से उस पिता, माता अथवा साजन रूप परमात्मा से वह मनोमिलन मनाता है, वह इस स्थूल लोक में सोने से पहले स्वयं को सूक्ष्म प्रकाशमय लोक में ले जाता है और अपने स्वरूप का और प्रभु का चिन्तन करते हुए उस परमपिता से निद्रा के लिए आज्ञा लेकर आत्मिक स्थिति में लेट जाता है। मानो वह अपनी कर्मेन्द्रियों रूपी नौकर-चाकरों को आराम के लिए छुट्टी दे देता है और स्वयं निःसंकल्प अवस्था में टिक जाता है। ऐसे सोने वाले योगी की निद्रा भी सतोगुणी या योगनिद्रा होती है और उसे तमोगुणी स्वप्न नहीं आते, बल्कि वह सतयुगी पावन सृष्टि में, सूक्ष्म देवलोक के अथवा पुरुषोत्तम संगमयुगी ज्ञान जगत के ही स्वप्न देखता है। वह जिस समय उठने का संकल्प करके सोता है, उस समय ही जाग जाता है।

उठने के समय के लिए विधि-

प्रात: उठते ही सबसे पहला संकल्प, मन रूपी आंख के सामने पहला दृश्य और बुद्धि में सबसे पहली स्मृति उस परमपिता परमात्मा ही की आनी चाहिए और चारपाई पर उठकर योग से ही अपनी दिनचर्या की शुरुआत करनी चाहिए। अपने मन में यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि आज दिनचर्या और अवस्था कल की अपेक्षा ज्यादा अच्छी रहेगी। प्रातः मनुष्य का मन सतोगुणी अवस्था में, चुस्त, मुद्रित और सन्तुष्ट होता है। उस समय प्रतिज्ञा करना अथवा शुभ संकल्प करना गोया कार्यक्षेत्र में उतरने से पहले अपने मनोबल को एक दिशा देने की तरह है जो बहुत ही लाभप्रद है। कहावत है कि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही हो जाता है। प्रात: के समय में सोचने से तो मनुष्य सचमुच वैसा ही हो जाता है। अतः अपने पुरुषार्थ में तीव्रता लाने के लिए कृत संकल्प होकर ही अपना पांव चारपाई से नीचे धरना चाहिए।

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