शिव आमंत्रण, आबू रोड। पवित्र जीवन तो वरदानी जीवन है। कई गृहस्थी बीके सोचते हैं कि जब हम अविवाहित थे, तब ज्ञान में आते तो कितना अच्छा होता। बस कई कुमार एक बड़ी गलती करते हैं, जानते हो कौन सी? न अमृतवेला योग करते, न मुरली सुनते। सेवा में आगे रहते हैं, इसलिए जीवन में रूहानियत नहीं आती। बिना योगबल के पवित्रता का सुख नहीं लिया जा सकता। योगबल से ही तो कर्मेन्द्रियाँ शीतल होती हैं। योगबल से ही सर्व विकार नष्ट होते हैं। यदि योग नहीं होता तो मनुष्य मनोविकारों को दबाये रखता है। ये दमन कष्टकारी होता है। अत: योग व ज्ञान का सुख लेने का दृढ़ संकल्प करो। योग अच्छा होने से ईश्वरीय सुख आपको तृप्तात्मा बनायेगा व आपके मन की चंचलता भी समाप्त होगी। आपको लगेगा नहीं की आप अकेले हैं। खुदा दोस्त हर जगह आपको मदद करेगा। उससे आपको इतना प्यार मिलेगा कि दैहिक प्यार गौण हो जाएगा। इसलिए एकान्त में बैठकर स्वयं से इस तरह चिंतन करो -मैंने ये कुमार जीवन अपनाया है, महान त्याग किया है। अब मैं योगी बनकर विश्व में बाबा का नाम रोशन करुंगा।
सतयुग में प्रकृति संपूर्ण सुखदायी होगी
एक बार पवित्रता का पथ अपना लिया तो बार-बार पीछे मुडक़र नहीं देखूगां। भगवान ने मुझे पवित्र भव का वरदान दिया है, मैं इस वरदान को फलीभूत करूंगा। मुझे प्रकृति को पवित्र वायब्रेशन्स देने हैं, मुझे दुखियों के दु:ख हरने हैं, मुझे विश्व के लिए लाइट हाउस बनना है-यह चिन्तन आपको अन्तर्मुखी बनायेगा, आपका युद्ध समाप्त हो जाएगा और आपके दिल से आवाज़ निकलेगा कि मेरे जैसा अच्छा जीवन किसी का नहीं। परमात्मा ऐसा सुख हमें देने आये है की सतयुग में प्रकृति की ओर से हमें कोई भी कष्ट नहीं होगा। प्रकृति हमारी सच्ची मित्र होंगी, सहायक होंगी, हमारे अधिकार में होंगी। सोचें, इतना बड़ा हमारा स्टेटस बाबा दे देते है की प्रकृति जिस पर आज किसी भी मनुष्य का अधिकार नहीं है, उस पर भी हमारा अधिकार हो जाता है।
हम कर्मेन्द्रियों के वश ना हो जायें
सोच लें, प्रकृति पर तो वैज्ञानिकों का भी अधिकार नहीं है, साइंस की शक्ति भी जहाँ फेल होती है, वहां हमारी यह साइलेंस की शक्ति कितनी सफल हो रही है। तो हम प्रकृति की अधीनता से स्वयं को मुक्त करते चलें और माया की अधीनता से स्वयं को मुक्त करते चलें, तब हम बहुत शक्तिशाली बन जाएंगे। प्रकृति की अधीनता का अर्थ है – देह में कमेन्द्रियों के प्रभाव से परे हो जायें। देह हमें आकर्षित ना करें, कर्मेन्द्रियों में चंचलता ना हो, कर्मेन्द्रियाँ हमें अपने वस ना कर लें, किसी भी तरह का रस हमें अपने अधीन ना बना लें। ऐसी आत्माएं प्रकृति के मालिक बन जायेगी।
भगवान के बच्चे तो बहुत शक्तिशाली होते है
यह मालिकपन की फिलिंग हम अपने अंदर में बढाते चलें और जो जितना देह से न्यारे होने की प्रैक्टिस करते है उसका अर्थ है की वह देह के आकर्षण से परे हो गए है, वह देह की अधीनता से मुक्त हो गए है। तो जो जितना देह से न्यारे होने का अभ्यास करते रहेंगे, वही मानो प्रकृति की अधीनता से मुक्त होते रहेंगे और समय पर यह प्रकृति भी उन्हें बहुत मदद करेगी। यह देह के रोग-शोक उन्हें ज्यादा कष्ट नहीं पहुचाएंगे।
प्रकृति को मुझे वाइब्रेशंस देते रहना है
हमारी यादगार विष्णु स्वरुप में दिखाया है की पांचों सर्प, विषैले सांप छत्र छाया बन गए है। तो ऐसा बहुत सुन्दर अभ्यास हम करते रहेंगे और लक्ष्य बनाएंगे-मैं इस प्रकृति का मालिक हूँ। मैं पवित्रता का फरिश्ता हूँ और इस सम्पूर्ण प्रकृति का मालिक हूँ, मैं मायाजीत हूँ। सारा दिन नशा रखना है कि मैं मायाजीत हूँ, मैं माया से बहुत अधिक पावरफुल हूँ और प्रकृति को मुझे वाइब्रेशंस देते रहना है।