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राजयोग से हम परमात्मा को सुना सकते हैं दिल की बात - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
राजयोग से हम परमात्मा को सुना सकते हैं दिल की बात

राजयोग से हम परमात्मा को सुना सकते हैं दिल की बात

शख्सियत

शिव आमंत्रण, आबू रोड । पंजाब के अजनाला शहर में मेरा थोक का कारोबार था। राजनीति में भी सक्रिय था। बड़े-बड़े नेताओं के साथ उठना-बैठना था। पंजाब विधानसभा में वर्ष 1992-1994 के बीच चंडीगढ़ में विधानसभा स्पीकर का पीआरओ भी रहा। जीवन में पद, प्रष्ठिा और पैसा होने के बाद भी आनंद, सुकून नहीं था। ऐसा लगता था कि जीवन में कुछ छूट रहा है।
यह कहना है वर्तमान में आबू रोड निवासी बनारसीलाल शिरीन (72) का। पिछले 11 साल से आप आबू रोड में ही अपना व्यापार कर रहे हैं। अमृतसर के सेटा गांव में 20 मार्च 1949 में जन्मे शिरीन ने शिव आमंत्रण से विशेष बातचीत में अपना अनुभव बताते हुए कहा कि एक दिन ब्रह्माकुमारीका सेवाकेंद्र से दीदी का फोन आया। उस दौरान अजनाला में नया सेवाकेंद्र खुला था। चूंकि मैं शहर की जानी-मानी शख्सियतों में आता था। इस कारण ब्रह्माकुमारी दीदी ने मुझे सेवाकेंद्र पर आने का निमंत्रण दिया, लेकिन व्यस्तता के चलते मैं जा नहीं सका। इस पर दीदी ने लगातार फोन किया। इस पर मैंने सोचा कि चलो एक दिन जाकर आते हैं। सेवाकेंद्र पहुंचने पर सामान्य बातचीत के बाद जब मैं आने लगा तो दीदी से पूछा कि आपके यहां जुडऩे की क्या फीस है? दीदी ने कहा पांच खोटे सिक्के। हालांकि मैं इसके पहले मप्र के आनंदपुर सेवा ट्रस्ट से जुड़ा था। जहां मेरी पूरी आस्था थी और साल में कम से कम एक बार जरूर जाता था। मैं दिनभर सोचता रहा कि आखिर दीदी ने खोटे सिक्के ही क्यों मांगे। घर में पड़े पुराने खोटे सिक्के लेकर दूसरे दिन सेवाकेंद्र पर पहुंचा। मैंने जाते ही वह पांच खोटे सिक्के दीदी को दे दिए। यह देखकर सभी बहनें हंसने लगीं। उन्होंने कहा कि पांच खोटे सिक्के अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार चाहिए। यह मानव जीवन के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह सुनकर मैंने कहा कि दीदी मुझमें तो 8-10 विकार हैं। इसके बाद उन्होंने राजयोग मेडिटेशन और सात दिन के कोर्स के बारे में बताया।

राजयोग कोर्स के बाद जीवन को मिली नई दिशा
राजयोग कोर्स के दौरान आत्मा-परमात्मा का परिचय, सृष्टि चक्र का ज्ञान, कल्प वृक्ष और परमात्म अवतरण जैसे कई रहस्यों को जानकर मैं अचंभित रह गया। सात दिन के कोर्स में मेरे जीवन से जुड़े सभी सवालों के जवाब मिल गए। परमात्मा के परिचय को लेकर जो भ्रांतियां थीं वह दूर हो गईं। इसके बाद मेरी पत्नी ने भी राजयोग कोर्स किया और हम दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी आध्यात्म के मार्ग पर चल पड़े। पहले दिन से ही हमने ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन, दिव्य गुणों की धारणा अपनाना शुरू कर दिया।

जब पहली बार माउंट आबू आए
डेढ़ साल पूरे नियम-संयम से चलने के बाद दीदी मुझे माउंट आबू लेकर पहुंचीं। यहां का दिव्य और शांत वातावरण देखकर मैं अचंभित रह गया। योग कक्ष में कई दिव्य अनुभूतियां भी हुईं। इसके बाद हम वापस अपने घर पहुंचे। लेकिन माउंट आबू में बिताए कुछ दिन की छवि हमेशा-हमेशा के लिए मेरे मन-मस्तिष्क में अंकित हो गईं।

…और सिगरेट-शराब, गुटखा का कारोबार छोड़ दिया
अजनाला शहर में जहां हमारा व्यापार था, वहां दस किमी दूर ही पाकिस्तान बार्डर लगती है। बार्डर के पास कारोबार होने से यहां सिगरेट-गुटखा, शराब आदि नशीली चीजों की बिक्री सबसे ज्यादा होती है। एक दिन ब्रह्माकुमारी दीदी ने कहा कि बनारसी भाई जब आप खुद गुटखा-सिगरेट आदि नहीं लेते हैं तो इन्हें क्यों बेचते हैं? इसके बाद मैंने अपनी दुकान पर सभी तरह की नशीली चीजें बेचना बंद कर दिया।

ग्राहक भी सोच में पड़ जाते थे
ब्रह्माकुमारीका का ज्ञान सच्चाई और सफाई के आधार पर ज्ञान है। इससे जुडऩे वाले हर एक इंसान में जीवन में यह दोनों दिव्य गुण स्वत: ही आ जाते हैं। यही कारण है कि जब भी कोई बाहर से बीके भाई-बहन मेरे अजनाला शहर में आते थे तो मैं उन्हें अपनी दुकान की भंडारी पर पैसे लेन-देन के लिए बैठाकर बाहर चला जाता था। यह देखकर मेरे ग्राहक पूछते थे कि भाईसाहब आप नए लोगों पर भी इतना भरोसा कर लेते हैं कि उन्हें अपनी दुकान की भंडारी सौंप देते हैं। फिर में उन्हें ब्रह्माकुमारीका के ज्ञान के बारे में बताता था। इससे भी क्षेत्र में राजयोग का ज्ञान लोगों को देने में सहयोग मिला।

एक ओंकार निराकार
वर्ष 1984 की बात है। जब पंजाब में दंगे हुए थे। इस दौरान मेरी दुकान पर सर्व आत्माओं के परमपिता शिव परमात्मा और दिव्य पुरुषों को चित्र लगा हुआ था। उसमें सभी धर्मों के धर्मपिता के साथ गुरुनानक देवजी का चित्र भी था। जिसमें वह अपनी अंगुली ऊपर की ओर दिखाते हुए दिखाए गए थे। एक दिन मेरी दुकान पर एक सिख भाई आए और कहा कि आपने हमारे गुरुजी को नीचे क्यों लगाया है, यह चित्र बनाने वाला कौन है? इस पर मैंने उन्हें समझाया कि सर्व आत्माओं के परमपिता परमात्मा हैं। गुरुनानक जी ने भी कहा कि एक ओंकार निकाकार, सतनाम्, अकाल आदि नामों से परमात्मा को पुकारा। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि मैं ही निराकार हूं। साथ ही गुरुनानक जी को हमेशा ऊपर की ओर अंगुली करते हुए दिखाया गया है। इस पर वह संतुष्ट होकर चला गया।

जब राजनीति छोड़े तो साथी बहनों से बोले- हमारे साथी को क्यों ले जा रहे हो
धीरे-धीरे जैसे मेरा आध्यात्म की ओर झुकाव बढ़ता गया तो मैंने वर्ष 1995 में राजनीति छोड़ दी। मैं केंद्रीय मंत्री रहे बूटा सिंह की टीम में था। इस दौरान कई मंडलों में अध्यक्ष के पद पर भी रहा। इस पर मैंने साथियों के फोन आने लगे। सभी मुझे राजनीति नहीं छोडऩे के लिए मनाने लगे। एक दिन मेरी साथी ब्रह्माकुमारी दीदी ने मिले और उनसे आग्रह किया कि आप हमारे इतने अच्छे साथी को हमसे मत छुड़ाइए। इस पर दीदी ने कहा कि हम किसी का घर-बार नहीं छुड़ाते हैं। घर को ही स्वर्ग जैसा बनाने और दिव्यगुण धारण करने की शिक्षा देते हैं। राजयोग तो जीवन जीने की कला सिखाता है न कि किसी का घरबार-कारोबार छुड़ाता है।

11 साल से आबू रोड में परिवार के साथ कर रहे कारोबार
शिरीन ने बताया कि परमात्मा का सत्य परिचय मिलने के बाद मैंने सोचा कि क्यों न अपना कारोबार माउंट आबू, महान भूमि, दिव्य भूमि से ही किया जाए, जहां से आध्यात्मिक उन्नति भी होती रहेगी। इसके बाद धीरे-धीरे अपनी संपत्तियां बेचनी शुरू कर दिया। वहां से अपना सारा कारोबार समेटकर 11 साल पहले आबू रोड शिफ्ट हो गया। यहां परमपिता परमात्मा के आशीर्वाद से अच्छा कारोबार चल रहा है। साथ ही मेरे दोनों बेटे, दोनों बहुएं, दोनों बेटी और दामाद सभी इस आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल कर रहे हैं।
मेरे जीवन का अनुभव है कि ब्रह्माकुमारीका का ज्ञान सच्चाई और सफाई के आधार पर ज्ञान है। ब्रह्माकुमार भाई-बहन जितने कपड़ों से साफ-स्वच्छ रहते हैं उतने ही उनके दिल साफ-स्वच्छ और विकार रहित होते हैं। यहां दिया जा रहा आत्मा-परमात्मा का ज्ञान स्पष्ट और सत्य है। इसमें अंधश्रद्धा और अंधविश्वास की कोई बात नहीं है। परमात्मा के आशीर्वाद और जीवन में आध्यात्म के समावेश से इतना सुकून, शांति, सुख और आनंद आ गया है जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है।

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