पूरी दुनिया में ऐसा कौन है जिसके जीवन में परीक्षायें नहीं आतीं? किसी के जीवन में आज परीक्षा आती है तो अन्य किसी के जीवन में एक वर्ष के बाद। परन्तु यह एक पढ़ाई है और पढ़ाई में से उत्तीर्ण अथवा पारंगत होने के लिए परीक्षा तो देनी ही पडती है। ये परीक्षायें केवल हमारी परिवक्वता को मापने का ही साधन नहीं होतीं बल्कि हमारे जीवन को मोड देनेवाली, हमे अनुभवी और मजबूत बनानेवाली और हमारे कई अवान्छित और पक्के संस्कारों को तोडकर हमारा रास्ता साफ करनेवाली भी होती है।
मान लीजिए कि आपकी किसी वरिष्ठ अधिकारी से न्याय होने की पूरी उम्मीद थी परन्तु आपको परिणाम उसके विपरीत ही देखने को मिलते है तो इनमे से प्रथम वृत्तान्त का फल यह होगा कि आपके मन को इस सत्यता का बोध होगा कि एक परमात्मा ही मन का सच्चा मीत है और कि मनुष्य तो अपने ही स्वार्थ सिध्दी के प्यासे है। ये परीक्षाये परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से हमारी पढ़ाई या परिपक्वता का साधन है। परीक्षाये सामने आती है तब लगता है कि ये हमारे मन को मरोड रही है। परन्तु टेढ़ी चारपाई को सीधा के लिए उसके कोनों पर जोर तो देना ही पडेगा।
वास्तव में परमात्मा ने तो हमे ये शिक्षा दे ही दी है कि न्यारे और प्यारे होकर चलो। जब हम न्यारे और प्यारे पर का संतुलन नही कर पाते तब कुछ परीक्षायें हमें झकझोर कर सिखाने की कोशीश करती है। यही बात निन्दा के विषय में भी ली जा सकती हैं। जिन्हें आनन्द रस प्राप्त नहीं होता वे निन्दा रस के व्यसनी हो जाते हैं। निन्दा की परीक्षा सामने आने पर जब मनुष्य अपने मान शान को नष्ट हुआ महसूस करता है तब उसे अपनी भी असलियत का पता लगता है और उसका मन उस परमात्मा की ओर मुडता है जो उससे अगाध प्रेम करता है। अत: वास्तव में तो निन्दकों से पाला पडने पर तो मनुष्य के मन में यह भाव उत्पन्न होना चाहिए कि ये मेरे मन को दुनिया से हटाकर प्रभु से जोडने के निमित्त है, इसलिए धन्यवाद के पात्र हैं।
परीक्षा – प्रशंसा और पैसे की…
ऐसे ही एक प्रकार की परीक्षा तब सामने आती है जब मनुष्य के काफी प्रशंसक हो जाते हैं। बहुत से लोग उसके निकट आने की इच्छा से भगवान की प्रशंसा छोडकर उसकी प्रशंसा करते है। अन्यश्च जब मनुष्य के पास खूब धन, वैभव और मान प्रतिष्ठा आना शुरू हो जाये, ऐसे में भी वह व्यक्ति उन वस्तुओं व व्यक्तियों से उपराम रहता है या नहीं – यह भी उसकी परीक्षा हो जाती है। उसका जीवन सादा बना रहता है या वो साधनों, सुविधाओं और सुखों का भोग करने की कामना करने लगता है – ये परीक्षा पत्र उसके सामने आता है। दूसरों को सुख सुविधाओं को इकट्ठा करते देख वह उनका अनुकरण करता है या सदा उसका सादगी रूपी लक्ष्य उसके सामने रहता है? इस प्रश्र का उसे प्रैक्टिकल उत्तर देना होता है। ऐसी परिस्थिति सामने आने पर ही जो सादगी और साधना के पथ पर मजबूत कदमों से आगे बढ़ता चलता है, वही अपने उच्च लक्ष्य तक ठीक पहँुच पाता है।
सच कहा गया है कि त्याग से ही भाग्य बनता है। साधना से सिध्दि होती है और एक परमात्मा से मुहब्बत करने से ही मंजिल तक पहुंचने मे सफलता प्राप्त होती है। इन विघ्रों को विदा करते हुए और परीक्षाओं को पास करते हुए इस वर्ष त्याग और तपस्या के बल से हमें अपने साधना के मार्ग पर काफी आगे निकल जाना है।