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निरंतर योगयुक्त जीवन से ही परमात्मा को संपूर्ण रूप से जान सकते हैं - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
निरंतर योगयुक्त जीवन से ही परमात्मा को संपूर्ण रूप से जान सकते हैं

निरंतर योगयुक्त जीवन से ही परमात्मा को संपूर्ण रूप से जान सकते हैं

समस्या-समाधान

इस संसार में दो ही सबसे बड़ी शक्तियां है- योग की शक्ति और प्योरिटी की शक्ति। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए है। दोनों के बल से परमपिता परमात्मा शिवबाबा इस संसार को बदलते है। और
इस धरा को स्वर्ग बना देते हैं। हम सभी बाबा के बच्चे जो बहुत-बहुत समय से योगाभ्यास करते आ रहे हैं। सभी ने अनुभव किया होगा। दुनिया में लोग समझते हैं कि योग का मार्ग भगवान से मिलने का रास्ता है। और हम सब जानते हैं कि योग परमातम् मिलन है। जिनका बहुत अच्छा योग होता है। उन्हें योग करते ऐसा ही लगेगा कि मानो बाबा से मिलन हो गया।

बाबा को सम्पूर्णरूप से जानने से तुम सम्पूर्ण बन जायेंगे
यूं तो योग बहुत बड़ा विषय है। बहुत सूक्ष्म विषय और सदा अभ्यास के द्वारा ही जाना जा सकता है। योग के समय हमें सबसे पहले यह बात अन्डरलाईन करनी चाहिए कि बहुत-बहुत अभ्यास की जरूरत है। बिना साधनाओं के सरल होते हुए भी ये योग सिद्ध नहीं होता। मैं एक बात पर सदा ही विचार करता हुआ आया हूं। आप सभी ने बाबा कि मुरली में ओ महावाक्य सुने हैं कि मैं जो हूं जैसा हूं, मुझे करोड़ो में कोई और कोई में भी कोई, मुझे जानते और पहचान पाते है। बाबा ने इससे आगे इससे भी सूक्ष्म बात कहीं कि जब तुम मुझे सम्पूर्णरूप से जान लेते हो। तो तुम भी सम्पूर्ण बन जाते हो।

निरंतर योगयुक्त से ही बाबा को सम्पूर्णरूप से जान सकते हैं
मैंने श्रीमद्भगवतगीता पर टीवी चैनल्स के लिए कुछ लेकर रिकार्ड करवाये। तो लास्ट अध्याय में आखरी श्लोको में ये बात देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैं जो हूं जैसा हूं केवल मुझे वहीं जान सकते हैं जो निरंतर मुझसे योगयुक्त हो। जो लोग आपसे भगवान के बारे में बहस करते हो कि भगवान ये नहीं है ये है। ऐसा नहीं ऐसा है। उन्हें गीता के अ_ारवें अध्याय के अंतिम श्लोकों को याद दिलाकर हम पूछ सकते हैं। क्या आप भगवान से निरंतर योग युक्त रहते हो। बिना निरंतर योगयुक्त होते कोई भी परमात्मा को सम्पूर्ण रूप से नहीं जान सकता।

योग का अर्थ हो गया, परमात्मा के पास रहना
कितना सुख मिलेगा उसमें जिसकी याद से ही बहुत सुख मिल जाता है। यदि हमें उसके साथ रहने को मिल जाये। तो आत्मा परम सुख के अनुभव में आ जायेगी। ये बात हम उन लोगों से पूछा करते हैं। जो लोग भगवान को सर्वव्यापी मानते हैं और बहुत बहस करते हैं। मैं सिम्पल एक क्वेश्चेन पूछता हूं सबसे कि जिस भगवान की याद से ही मन शान्त हो जाता है यदि आप उसके सदा ही साथ रहते हो तो मन कितना शान्त होना चाहिए।

योग को मनोरंजन बना, बने आकर्षन का केन्द्र
आज हम आपके सामने योग के भिन्न-भिन्न न केवल अवस्थाएं बल्कि तरीकों की चर्चाएं भी करेंगे। ताकि हम योग अभ्यास को मनोरंजन बना दें। योग जिसका अभ्यास हम मन और बुद्धि से करते हैं। एक ऐसा विषय है। उसको यदि भिन्न-भिन्न तरीकों से अभ्यास न किया जाये तो आज कि भाषा में बोरियत होने लगती है। यदि उसको मनोरंजन बना दिया जाये तो वहीं योग हमारे आकर्षण का केन्द्र बन जाता है।

सफल योगी का प्रथम गुण, बुद्धिमानी और समझदारी
योग के लिए पवित्रता पहली आवश्यकता है। पर जिसे सफल योगी बनना हो पहली शर्त ओ जो व्यक्ति बुद्धिमान हो। और बुद्धिमान के साथ में हम दूसरा शब्द प्रयोग करेंगे जो व्यक्ति समझदार हो, उसे चाहिए संगमयुग पर इस प्राप्ति के अनमोल समय पर स्वयं को कहीं भी उलझाये नहीं, कहीं भी नहीं। यदि मन उलझ गया तो योग बहुत दूर की चीज हो जायेगी। उलझने संसार में बहुत है। लेकिन ज्ञानी और दिव्य विवेकवान मुनष्य को सहज अपने को उलझनों से निकालके चलना चाहिए।
ये बहुत बड़ी समझदारी है। विवेकशीलता है। बुद्धिमानी है। हम कहीं उलझे नहीं। जो आत्माएं संगमयुग पर कहीं उलझ गये हैं। जिन्होंने अपने मन को उलझा लिया है। ओ ईश्वरीय सुखों से वंचित हो गये हैं।

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