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पवित्र बंधन में बंधने का स्वर्णिम काल :- बीके पुष्पेन्द्र - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
पवित्र बंधन में बंधने का स्वर्णिम काल :- बीके पुष्पेन्द्र

पवित्र बंधन में बंधने का स्वर्णिम काल :- बीके पुष्पेन्द्र

सच क्या है

शिव आमंत्रण आबू रोड। जीवन में जब कोई विशेष कार्य हवन-पूजन, आराधना, यज्ञ-जप-तप, ज्ञान-ध्यान की शुरुआत करते हैं तो तन-मन की पवित्रता पर विशेष जोर दिया जाता है। प्रकृति, पृथ्वी और आत्मा का मूल स्वरूप भी पवित्रता है। सात दिव्य गुणों में पवित्रता भी आत्मा का एक दिव्य गुण है। सृष्टि के आदि में प्रत्येक मनुष्य आत्मा अपने निज स्वरूप में संपूर्ण पवित्र थी। प्रकृति के पांचों तत्वों (जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी) में भी आपस में साम्य, एकता और पवित्रता थी। सृष्टि चक्र में जैसे-जैसे आत्मा जन्म-मरण के चक्कर में आती गई तो वह अपने मूल स्वरूप से दूर होती गई। अब फिर से आत्मा को अपने मूल पवित्र स्वरूप में वापस लाने, उसे पवित्र दुनिया में जाने योग्य बनाने के लिए पवित्रता के सागर परमपिता शिव परमात्मा पुन: इस धरा पर अवतरित हो चुके हैं। परमात्मा पुकार रहे हैं हे! आत्मन् अब जागो, अज्ञान निद्रा को छोड़ो। राजयोग की शिक्षा लेकर फिर से अपना राज्य भाग्य बना लो। वर्तमान समय पवित्रता के बंधन में बंधने का स्वर्णिम काल है। परमात्मा हम आत्माओं का आह्नान कर रहे हैं कि मेरे बच्चों जागो! मैं तुम्हें 21 जन्मों के लिए पवित्रता के बंधन में बांधने की सौगात लेकर आया हूं। तुम एक जन्म मेरे कदमों पर चलो तो मैं तुम्हें सदा-सदा के लिए दु:ख, दर्द से मुक्त कर दूंगा।
पवित्रता सुख-शांति की जननी है…
आम इंसान और साधु-संत, तपस्वी, ऋषि-मुनियों में मुख्य अंतर पवित्रता का है। पवित्रता के व्रत के कारण ही सभी उनके आगे सिर झुकाते हैं। जब कन्या कुमारी होती है तो सभी उसके आगे सिर झुकाते हैं, चरण स्पर्श करते हैं लेकिन जैसे ही परिणय सूत्र में बंध जाती है, विवाह हो जाता है तो वह सभी के आगे सिर झुकाने लगती है। इसके पीछे मुख्य कारण पवित्रता ही है। पवित्रता ही महानता, श्रेष्ठता, दिव्यता और दिव्यगुणों की खान है। पवित्र जीवन ही सुख-शांति का आधार है। पवित्रता जीवन का शृंगार है। जीवन की शोभा है। पवित्रता ही सत्यता, निर्भयता, निर्भीकता और निष्पक्षता लाती है। पवित्र जीवन ही प्रभु को प्रिय है।

किसे रक्षा की जरूरत?
सबसे ज्यादा रक्षा की जरूरत हमारे अपने मन को बुरे विचारों, भावनाओं से करने की है। क्योंकि जब हमारे विचार श्रेष्ठ, पवित्र होंगे तभी हम दूसरों के लिए भी शुभ चिंतन के लिए प्रेरित कर सकेंगे। यदि मन में शुभ, श्रेष्ठ विचार हैं तो ऐसा मनुष्य कभी गलत कर्म नहीं कर सकता है। विचार और कर्म एक-दूसरे के पूरक हैं। इस रक्षाबंधन पर बहनें उपहार के साथ अपने भाई से संकल्प कराएं कि सदा हर एक नारी के प्रति पवित्र भावना रखेंगे, सभी का सम्मान करेंगे और प्रत्येक नारी में अपनी बहन, माता को देखेंगे। जहां कभी भी नारी के सम्मान को आंच आएगी वहां मदद के लिए सदैव खड़े रहेंगे। वहीं बहनों को भी संकल्प लेना होगा कि सदा सभी के प्रति पवित्र दृष्टि-वृत्ति रखेंगे। राखी पर बहनें, भाई को तिलक लगाती हैं जो संदेश देता है कि सदा अपनी आत्मस्मृति में रहना। इसके बाद रेशम की डोर बांधतीं हैं अर्थात् जिस तरह तुम्हारी दृष्टि, सोच और भावना अपनी बहन के लिए पवित्र है, वैसी ही सभी के प्रति रखना। इसके बाद मुख मीठा कराया जाता है जो बताता है कि मुख से सदा हर एक नारी के प्रति मीठे बोल बोलना।

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