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बुद्धि को ज्ञान सूर्य परमात्मा पर स्थिर करें… - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
बुद्धि को ज्ञान सूर्य परमात्मा पर स्थिर करें…

बुद्धि को ज्ञान सूर्य परमात्मा पर स्थिर करें…

समस्या-समाधान

शिव आमंत्रण,आबू रोड आप अपनी बुद्धि को अपने सम्पूर्ण स्वरूप आत्मा और ज्ञान सुर्य परमात्मा पर स्थिर करें। यदि बुद्धि से अपने सम्पूर्ण स्वरूप पर विजुअलाईज करेंगे तो सम्पूर्णता के वायब्रेशन, सम्पूर्णता के संस्कार वर्तमान स्वरूप में प्रवेश करने लगेंगें। मैं एक उदाहरण दे रहा हूं कि की अभी रात है हम जानते हैं आसमान में कहीं न कहीं सूरज उदय हुआ है। यदि कोई मनुष्य अपनी बुद्धि से इस समय सूरज पर कन्सन्ट्रेट कर दे। दस मिनट पन्द्रह मिनट तो महसूस होगा। उसकी गर्मी उसकी एनर्जी शरीर में आने लगी। जिस चीज को भी हम विजुअलाईज करेंगे। उससे हमारा लिंक हो जाता है। इनर्जेटिक लिंक और उसकी एनर्जी हममें प्रवेश करने लगती है। इस सिद्धान्त समझना है। इसलिए योग अभ्यास में आत्मा को और शिव बाबा को विजुअलाईज करने का ज्यादा अभ्यास करना है। चलते फिरते भी। तो मैं आत्मा इस शरीर में आई हूं और इस शरीर से निकलकर मुझे वापिस चले जाना है। आत्मा को उस शरीर में प्रवेश करते हुए देखना और इससे निकलकर वापिस जा रही हूं। ये अभ्यास करना इससे तुरन्त अशरीरी अवस्था हो जाती है।

हमारे संकल्प वायबे्रशन के रूप में एनर्जी के रूप में हमारे सारे शरीर में फैलते रहते हैं
अशरीरी अवस्था के लिए हमें बहुत ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं कि मैं आत्मा शांत स्वरूप हूं। प्रेम स्वरूप हूं।
अब हमें याद आ गया कि हम क्या है। अब हमें उस स्वरूप पर स्थिर होने की अवश्यकता होती है। ऐसे तो देह से न्यारे होने के कई तरीके हो सकते हैं। जो बहुत सिम्पल और बड़ा प्रभावशाली है वह तरीका पर विचार करें। आप शान्त बैठकर विचार करें। इस शरीर से पहले मैं आत्मा एक और शरीर में थी। उससे पहले मैं किसी और शरीर में थी। इसके बाद मैं किसी और शरीर में जाऊंगी। जैसे आत्मा शरीर लेती छोड़ती, लेती छोड़ती आई है। इस प्रकार अशरीरीपन हो जायेगा। फरिश्ते रूप के बारे में हमें ये बात सहज रूप से स्पष्ट होनी चाहिए कि हम जो कुछ अपने मन से सोचते हैं, हमारे संकल्प वायबे्रशन के रूप में एनर्जी के रूप में हमारे सारे शरीर में फैलते रहते हैं। और वैसा ही शरीर बनता रहता है जैसा हम सोचते रहते हैं। तो इस शरीर के अन्दर प्रकाश का शरीर एनर्जी का शरीर विद्यमान रहता है। आत्मा दो शरीरों में बैठी है। लाईट का शरीर और तत्वों का शरीर जब कोई आत्मा शरीर छोड़ती है तो आत्मा लाईट के शरीर सहित बाहर जाती है।

फरिश्ते स्वरूप की स्थिति के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर सकाश दें
जब से आत्मा इस संसार में आती है। परमधाम से उसके बाद सदा ही सूक्ष्म शरीर में ही रहती है। सूक्ष्म शरीर के बिना स्थूल शरीर कार्य नहीं कर सकता। तो हमें ये अभ्यास करना चाहिए। हमें अपने इस स्वरूप को देखना चाहिए कि मैं आत्मा प्रकाश के शरीर में हूं। मानो मेरा ये शरीर अलग हो गया मुझसे और मैं आत्मा प्रकाश के शरीर में विराजमान हूं। इसे कहते हैं फरिश्ता स्वरूप। मैं लाईट हाउस हूं। अर्थात् मेरे अंग-अंग से लाईट फैलती है। फैलती ही है हम सब के शरीरों के अंग-अंग से। आत्मा से भी और क्योंकि सूक्ष्म शरीर सारे शरीर में फैला हुआ है। अंग-अंग से चारों ओर प्रकाश फैलता है। ये हमें अभ्यास करना चाहिए। बाबा आजकल बहुत जोर देते है कि सकाश दो। हम इस फरिश्ते स्वरूप की स्थिति के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर सकाश दे सकते हैं। हम अभ्यास करेंगे। मैं फरिश्ता यहां से निकलकर गया, वहां दिल्ली शहर के ऊपर एक मिनट के लिए और मुझसे प्रकाश फैल रहा है नीचे सभी मनुष्यों के ऊपर। फिर वहां से उठकर गया दूसरे सिटी के ऊपर, प्रकाश फैल रहा है शक्तियां फैल रही है। मेरे ऊपर बाबा से शक्तियां आ रही है मेरे माध्यम से नीचे जा रही है। ये एक सिम्पल प्रेक्टिस है सकाश देने की। यदि आपका योग कभी बिल्कुल न लगता हो। तो आप ऐसे दस शहरों को चुन लो। और एक-एक मिनट आप जाकर सकाश दें। बुद्धि स्थिर हो जायेगी। जैसे ही हम योग के वायब्रेशन दूसरों को देने लगते हैं। हमारा योग बहुत पावरफूल हो जाता है। बाबा ने इस सबके लिए हम सभी को पांच स्वरूपों के अभ्यास के लिए बहुत प्रेरणा दी है।

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