जिसे सच्चा योगी बनना है उसे मैं-पन के त्याग पर बहुत सूक्ष्मता से ध्यान देना चाहिए। कहां- कहां हमारे अंदर मैं-पन आ जाता है। इससे हम स्वयं को बचाते चलें, बचाना बिल्कुल सहज है। केवल हमें अवेयरनेस हो, जानकारी रहे कि मेरे अंदर मेरापन कहां आ गया। आप सभी ने मुरली में सुना हो कि यदि करनकरावनहार बाप की स्मृति सदा ही रहे कि बाबा करा रहा है तो तुम निरंतर योगी बन जाओ। मैं करता हूं, मेरी जिम्मेदारी है, मैंने ये किया, मुझे ये करना है, ये काम करने हैं…. ये मैं-पन मन को भारी कर देता है। इससे हम योगयुक्त नहीं रह पाते तो जिसे योगयुक्त होना है, उसे निरहंकारी बनना ही पड़ेगा।
योगी का सरलचित्त और सहज भाव होना जरूरी
योगी वो जो सरलचित्त हो, जिन्होंने जीवन को सहज भाव से जीना सीख लिया हो। हम सभी को जीवन प्राप्त है, जीवन जीने का आनंद प्राप्त है। किसी को कदम-कदम पर कांटों पर चलना पड़ रहा है। किसी का जीवन समास्याओं से भरा है और कोई इस जीवन को सुखपूर्वक तय कर रहा है। सब अपने ऊपर है। यह एक कला है। कैसे सहज भाव से इस यात्रा पर आगे बढ़ा जाए। ये यात्रा है और इसमें हमें इसे सहज भाव से जीना है।
सफल योगी होते हैं साक्षी दृष्टा
जिनको महान योगी बनना हो उन्हें साक्षी दृष्टा हो जाना चाहिए। कौन क्या कर रहा है, बिल्कुल सरल शब्दों में हर व्यक्ति जो कुछ कर रहा है। वह तो उसे करना ही है न। प्रोग्राम है उसे करने का। बिना प्रोग्राम के कोई कुछ नहीं कर रहा है। हम क्या विशेष करते हैं। कोई कहे क्यों करते हैं, यह तो प्रोग्राम था। आप सुनने आ गए, कोई ऐसे ही कहने लगे क्यों सुनने आ गए यहां। हर चीज प्रोग्राम अनुसार चल रही है न। हर आत्मा को भी तो प्रोग्राम मिला हुआ है। ऐसे सिम्पल लैग्वेंज दे दें इसे जो व्यक्ति दूसरों के बारे में सोच रहा है। उसे अपने बारे में सोचने का तो अवसर ही नहीं मिलता। जो दूसरों को देख रहा है, वह अपने को देखना भूल जाते हैं। जो अपने को ही नहीं देखते तो बाबा भी उन्हें नहीं देखता। जिनकी नजर दूसरों पर है। उन पर बाबा की नजर नहीं पड़ती, इसलिए साक्षीभाव अपनाना।
भगवान हमारा संबंधी हो गया है
जो कुछ इस संसार में हो रहा है और जो कुछ होगा। उसे खेल की तरह देखना। जो कुछ हमें करना है, जो कत्र्तव्य निभाने हैं, जो जिम्मेदारी है उन्हें भी सहज और साक्षीभाव से करना। ये ज्ञानयुक्त आत्मा की पहचान है। इस तरह हम योग के मार्ग में आगे बढ़ते हैं। इस योग के सब्जेक्ट को दो हिस्सों में बांट दें। एक है इमोशनल तरीका अर्थात् भावनात्मक तरीका। संबंधों के रूप में बाबा को याद करना और दूसरा है बुद्धियोग। मन और बुद्धि से योग लगाना। पहला तरीका बिल्कुल सिम्पल है। बाबा ने कहा है कि बच्चे तुमको नशा होना चाहिए कि भगवान तुम्हारा संबंधी बन गया है। कितनी नशे की बात है। भगवान हमारा संबंधी हो गया है। बाबा मेरा है, इसको सच्चे दिल से स्वीकार कर लेना। ये योग की सरल विधि है। जिसको कुछ भी न हो… बाबा मेरा है और ये छोटी बात नहीं है। बाबा पर अधिकार… मेरा है। इस पर हमें चिंतन को आगे बढ़ाना है… बाबा मेरा।