हम एक ऐसे संसार में रह रहे हैं जिसने 50 वर्षों में भैतिक रूप से बहुत विकास किया है। साइंस और टेक्नोलॉजी के द्वारा घर-घर में सुखों के साधन पहुंच गए हैं पर आप सब जानते हैं जिस मनुष्य के लिए ये सुख के साधन बने उसको सुख नहीं मिला। मनुष्य की टेंशन बढ़ती गई, रोग बढ़ते गए। आज हर शहर में मेडिकल कॉलेज मिल जाएंगे, गलियों में डॉक्टर्स की भरमार है परंतु रोगों की भी भरमार है। टेंशन, रोग, समस्याएं संबंधों में कड़वाहट, सुसाइड केस बहुत ज्यादा हो गए हैं। सिक्कम जाना हुआ, वहां पता चला कि तेजी से लोग सुसाइड कर रहे हैं। सभा में मिनिस्टर्स भी बैठे थे सेक्रेटरी भी तो मुझे कहा कि आप संदेश दो हमारे राज्य को, ताकि राज्य के सुसाइड केस कम हो जाएं।
मैनेजमेंट कोर्स बहुत हो गए लेकिन मैनेजमेंट कठिन होता जा रहा
समस्याएं बढ़ती जा रही हैं मन कमजोर होता जा रहा है, क्यों हुआ? आप अपने जीवन की यात्रा को सुखपूर्वक व्यतीत करें। सबन्धों में मधुरता भर दें और अपनी जिम्मेदारियों को एन्जॉय करें। जिम्मेदारियां आज टेन्शन बन गईं हैं। मनुष्य भागने लगा है, जिम्मेदारियों से। लेकिन हम उन्हें एन्जॉय करें और जिम्मेदारियों को खेल की तरह निभा सकें। इसके लिए अपनी इनर शक्ति को पहचानें कि हम सभी कौन आत्माएं हैं। हमारे पास दो महान शक्तियां रहती हैं मन और बुद्धि। गलती क्या हुई कि बुद्धि के विकास पर तो सब ने बहुत ध्यान दिया। जिस चीज से मनुष्य को सच्चा सुख मिलता है वो है मन।
शक्तियों के विकास और शुद्धिकरण को ही अध्यात्म कहते हैं…
हम ऐसा कह सकते है कि जीवन की गाड़ी के मन-बुद्धि दो पहिया सुदृढ होने चाहिए लेकिन बुद्धि का पहिया बहुत मजबूत और मन का पहिया टूटा-फूटा हो तो जीवन की गाड़ी ठीक से नहीं चल रही है। हमारा लक्ष्य है कि जो कुछ मनुष्य भूल गया है भौतिकता की चकाचौंध में हम अध्यात्मिकता को बिल्कुल इग्नोर करते गए हैं। हमारी शक्तियों का विकास हमारा शुद्धिकरण इसको आध्यात्म कहते हैं। अगर हम इसको छोड़ बैठे तो भौतिक उपलब्धियां हमें सुख कैसे देंगी। हमारे सामने सुंदर भोजन रखा हो खाने के लिए मगर मन उदास हो या हम बहुत बीमार हों तो क्या हम एन्जॉय कर सकेंगे। तो भौतिकता के साथ हमने स्प्रीचुअल प्रोग्राम का बैलेंस जब तक हमने नहीं सीखा हम जीवन का आनंद नहीं ले पाएंगे। इसलिए हम स्प्रीचुअली पर भी ध्यान दें। कुछ समय अपने लिए भी निकालें। हम बिजी हो गए हैं कार्यों में अपने को भूल गए हैं। इसलिए हर मनुष्य अपने से बहुत दूर होता जा रहा है। हमें अपने को अपने से मिलाना है। अपनी शक्तियों को पहचानना है। अपनी प्यूरिटी के बल को महसूस करना है।
एक ओर विकास है, दूसरी ओर उसका दुष्परिणाम है, हम कैसे बचें?
हमारे चारों ओर क्या हो रहा, प्रकृति ने हमें हवा दी श्वास लेने के लिए लेकिन हवा को हमने बिल्कुल प्रदूषित कर दिया है। ये प्रदूषित हवा हमारे अंदर जा रही है, इसलिए मनुष्य बीमार हो रहा है। हम सबने विकास के नाम पर बड़े बड़े टावर्स लगाए हंै। जैसे- टी वी, इंटरनेट, मोबाइल का टावर, इनसे कितनी बुरी तरंगें चारों और फैल रही हैं, जिससे मनुष्य में मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं। अब एक ओर विकास है दूसरी ओर उसका दुष्परिणाम है, हम कैसे बचें? विकास भी आवश्यक है और उसके दुष्परिणाम को भी हमेें समाप्त करना है। इसके लिए आध्यात्मिकता परम आवश्यक है। कहते हैं मनुष्य एक दिन में लगभग 21000 श्वास लेता है। ऐसे ही मनुष्य एक दिन में 30 हजार से 40 हजार संकल्पों की रचना करता है। इसमें से नेगेटिव बहुत होते हैं। जिनसे हमारे मन की शक्तियां बहुत नष्ट होती हैं। हमें ये जानना चाहिए अगर हम बहुत ज्यादा सोचते हैं तो हमारे मन की गति बहुत तेज हो जाती है। एक आम स्थिति में हमारे मन में 20 से 25 विचार निरंतर उठते हैं। अगर हम टेंशन में आ गए या क्रोध आ गया तो ये गति 35 से 40 तक हो जाती है। अगर हमारा चित्त शांत है तो हमारी गति धीमी 10 या 15 तक आ जाती है। सवेरे जब हम उठते हैं तो हमारा मन शांत होता है। एक मिनट में शायद 5-10 विचार ही उठते हैं। धीरे-धीरे गति बढ़ती है।
अपने विचारों को बहुत पॉजीटिव, शुभभावनाओं वाला बनाने की जरूरत
जिसको हम स्प्रीचुअल एनर्जी कहते है वो शक्ति हमारे मन में रहती है। कौन कितना शक्तिशाली ये उसके मन की शक्तियों से कैसे जाना जाता है। अब सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हमारे हर संकल्प में रचनात्मक ऊर्जा होती है जो कुछ हम सोचते हैं, उसके प्रकम्पन हमसे चारों ओर फैलते हैं और जिसके बारे में सोच रहे हैं उसको वो टच कर रहे हैं फिर उसको टच करके वो वापिस हमारे पास भी आ रहे हैं। ध्यान रखें अगर आप किसी व्यक्ति के प्रति नफरत के, घृणा के या बदले के भाव रख रहे हंै तो वो उसको इफेक्ट कर लौट कर हमारे पास आएंगे। जिससे दोनों को नुकसान हो रहा है। संबंध सुधारने हैं तो हमें अपने विचारों को पॉजिटिव, शुभभवनाओं वाला बनाने की जरूरत है।