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हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान रखने की जरूरत - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान रखने की जरूरत

हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान रखने की जरूरत

जीवन-प्रबंधन

शिव आमंत्रण, आबू रोड। हम आत्माओं का धर्म है शांति, प्यार, सद्भावना और निडरता। तो इस समय हमेंं अपने धर्म पर टिकना है। यानी बाहर परिस्थिति हमारे अनुकूल नहीं है लेकिन आत्मा को अपने स्वधर्म पर टिकना है। स्वधर्म मतलब निडर, शक्तिशाली, शांत, भविष्य के लिए असुरक्षा नहीं। आपस मेंं सद्भावना और प्यार, ये हमारा धर्म है। ये समय की पुकार है। आत्मा के धर्म मेंं जीने के लिए आज एक समीकरण पक्का करना है। हमारे मन की स्थिति परिस्थिति पर निर्भर नहीं होती है। ये एक बहुत बड़ी गलतफहमी है, जिसमेंं हम वर्षों से जी रहे थे। वैश्विक महामारी से पहले भी हमारे जीवन मेंं ऐसी स्थिति थी कि हम कहते थे, मुझे चिंता हो रही है क्योंकि ऊंगली कहीं बाहर जाती थी, किसी परिस्थिति या व्यक्ति के ऊपर। मुझे अच्छा नहीं लग रहा है क्योंकि…? हमने समझा कि आत्मा के संस्कार, संकल्प, सोच और भावनाएं हैं, वो परिस्थिति और व्यक्ति के व्यवहार पर निर्भर है। फिर कोविड वाली परिस्थिति पुन: आ गई। जैसे ही ये परिस्थिति आई, तो सारे विश्व ने मिलकर कहा, डरना और चिंता तो नार्मल है, स्वाभाविक है। ऐसा सारा विश्व कह रहा है। अब आप एक मिनट के लिए उस दृश्य को देखें जिसमेंं करोड़ों लोग इक होकर कह रहे हैं इस समय डर और चिंता होना स्वाभाविक है। तो सोचिए इस समय सृष्टि की क्या स्थिति होगी। सृष्टि की तरंगें क्या होनी चाहिए और हो क्या हो चुकी हैं। जबकि सृष्टि को इस समय शांति और शक्ति की ऊर्जा की जरूरत है।
सृष्टि के मन को शांत रहना चाहिए
बीमारी खत्म करने के लिए मन की स्थिति कैसी होनी चाहिए? किसी भी बीमारी मेंं डॉक्टर हमेंशा यही कहता है, निश्चिंत रहो, हम अपना काम कर रहे हैं। इसी तरह इस समय सृष्टि पर एक बीमारी आई है तो सृष्टि के मन को शांत रहना चाहिए। सृष्टि का मन मतलब हम सबका मन। हमेंं अपने लिए एक बात पक्की कर लेनी है, जो हमेंशा लाभदायक होगी। यहीं एक शब्द आता है-आत्मनिर्भर। हमारे मन की स्थिति, हमारी सोच परिस्थिति पर आधारित नहीं होती है। इसीलिए एक ही परिस्थिति मेंं चार लोग अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं। मान लें कि आपके घर मेंं कोई समस्या आती है तो घर का पहला सदस्य कहता है इतनी बड़ी बात समस्या आई है, दूसरा कहता है हां बात तो बड़ी है, तीसरा कहता है छोटी-सी बात है, चौथा कहता है ये तो होता रहता है। एक ही परिस्थिति मेंं चार लोग अलग-अलग तरह से सोचते हैं। क्योंकि उनकी सोच परिस्थिति पर आधारित नहीं होती है बल्कि उनके अपने संस्कारों, अपने मन की स्थिति पर आधारित होती है। जीवन मेंं अगर ये समीकरण पक्का कर लिया तो हम अपनी भाषा बदलेंगे। हम ये नहीं सोचेंगे और कहेंगे कि बात ऐसी है, तो डर लगेगा ही। हम कहेंगे कि बात बड़ी है इसलिए निडर और शांत रहना हमारी जिम्मेंदारी है। अगर सबने अपने मन का ध्यान रख लिया तो परिस्थिति का सामना करना आसान हो जाएगा।
हम जैसा चाहें वैसा भविष्य बना सकते हैं
अगर देखा जाए तो सृष्टि पर होने वाली हर चीज के जिम्मेंदार हम ही होते हैं। हर कर्म का परिणाम तो होता ही है। लेकिन ये न सोचें कि हमने क्या कर्म किया था जिसकी वजह से ऐसा हुआ। ये सोचें कि अब हमारा कर्म कैसा हो। अगर हम अपने निजी जीवन मेंं भी देखें तो हमारे जीवन मेंं परिस्थितियां आती हैं, किसी को व्यापार या नौकरी मेंं, किसी को बाहर परिस्थिति हमारे अनुकूल नहीं है लेकिन आत्मा को अपने स्वधर्म पर टिकना है। स्वधर्म यानी निडर, शांत और सुरक्षित रहना। स्वास्थ्य मेंं, रिश्तों मेंं कुछ हो सकता है। ये सब जो बातें आती है ये हमारे कर्म का परिणाम ही होती हैं। लेकिन अब हम इसका कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन अब हम जैसा सोचेंगे, जैसा बोलेंगे और जो कर्म करेंगे ये हमारा वर्तमान का कर्म होगा। हमारा वर्तमान का कर्म हमारा वर्तमान और भविष्य के भाग्य का निर्माण करता है। हमने क्या किया था जिसकी वजह से ये हुआ। इसको सोचना हमारे लिए यह बहुत अच्छी सोच नहीं होगी। जरूरी ये है कि अब हमेंं क्या करना है, यानी अब क्या कर्म करना है, अब कितनी सेवा करनी है, अब कैसे एक-दूसरे को सहयोग देना है। अब कैसे एक-दूसरे के मन का ध्यान रखकर अपने वर्तमान कर्म को इतना श्रेष्ठ बनाना है कि हम अपने लिए, देश के लिए. सृष्टि के लिए बहुत सुंदर भाग्य का निर्माण कर सकें। अतीत के कर्म तो हो चुके हैं, अब उसके लिए कुछ नहीं कर सकते, लेकिन वर्तमान कर्म पूर्ण रीति से हमारे हाथ मेंं है। जिस पर हम जैसा चाहे वैसा भविष्य बना सकते हैं।

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