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गृहस्थ जीवन के बाद भी 31 साल से संयम पथ पर भर रहे उड़ान - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
गृहस्थ जीवन के बाद भी 31 साल से संयम पथ पर भर रहे उड़ान

गृहस्थ जीवन के बाद भी 31 साल से संयम पथ पर भर रहे उड़ान

शख्सियत

शिव आमंत्रण, आबू रोड। मेंरे माता-पिता, बहनें और चाचा-चाची ब्रम्हाकुमारीका संस्थान से जुड़े हुए थे। लेकिन मेंरा इस परमात्म ज्ञान के प्रति कोई झुकाव नहीं था। शादी से पहले मुझसे पूछा गया कि ब्रह्मचर्य जीवन पसंद करोगे अर्थात ब्रह्माकुमार बनोगे या शादी करोगे? कोई जोर जबरदस्ती नहीं थी, इसलिए हमने शादी के लिए हां कर दी। हमारी धर्मपत्नी ज्योति के साथ इंगेजमेंंट हुई थी, तभी हमने देखा कि यह भी ब्रह्माकुमारीका आश्रम मेंं जाती है। हम लोगों ने इस ज्ञान के बारे मेंं बात की और हमेंं भी यह पसन्द आया कि ऐसा जीवन अच्छा है। हमारी शादी हुई और शादी के बाद ज्योति का आश्रम पर आना-जाना जारी रहा। जो भी हमारे रिश्तेदार थे उन्हें एक डर था कि ये लोग कहीं ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी ना बन जाएं। जैसे ही लोगों ने देखा फिर शादी के 15-20 दिन बाद ही लोगों ने यह पूछना शुरू कर दिया कि आपने अपने बच्चों के लिए क्या निर्णय लिया है।
1991 मेंं पहली बार माउंट आबू पांडव भवन आना हुआ फिर भी ज्ञान मेंं मेंरी बहुत ज्यादा रुचि नहीं थी। मेंरी बहन 1998 मेंं इस संस्थान मेंं समर्पित हो गईं। मेंरी शादी के दो-तीन साल बीतने के बाद धर्मपत्नी को इस ज्ञान के प्रति काफी लगाव होने के कारण मेंरा उनसे हमेंशा सवाल रहता था कि इतनी गहराई मेंं जाने की जरूरत क्या है। हमारी तो इच्छा है कि हम भी घर परिवार बसाएं। लेकिन मैंने देखा है की धर्मपत्नी का परमात्मा के प्रति काफी झुकाव और लगाव था। उसकी बुद्धि इन सब बातों मेंं जाती ही नहीं थी। साथ मेंं हमारे घर वाले भी उनके सपोर्ट मेंं होते थे। लेकिन मेंरे ससुराल वाले इनके खिलाफ थे। और हमारे सभी रिश्तेदार भी खिलाफ हो चुके थे। सबने हमारा मजाक बनाना शुरू कर दिया था। जब भी कोई रिश्तेदारी मेंं जाना होता था तो वह लोग हम पर हंसते थे। हम दोनों कहीं रिश्तेदारी मेंं अगर गए तो उनका बना हुआ भोजन स्वीकार नहीं करते थे। ज्योति खुद बनाकर हमेंं खिलाती थी। इससे काफी टीका-टिप्पणी हुआ करता था।
संयोग से यदि कहीं पत्नी साथ मेंं नहीं जाती थीं तो मैं रिश्तेदारों के हाथ का बना हुआ खा लेता था। जब मैं कई बार ऑफि़स के काम से बाहर जाता था तो वहां ब्रेड बटर बाबा की याद मेंं खा लेता था या जो पत्नी बना के देती थी उससे काम चला लेता था। जब भी कई बार जैन भोजन मिलता था वहां भी खा लेता था। बहुत बार चावल दाल दही से काम चला लेता था। अपने परिवार मेंं एक ही लडक़ा था। माता-पिता से लगाव था। वो ज्ञान मेंं चलते थे मेंरा उनके साथ बहुत अच्छा सम्बन्ध था और आज भी उनसे सम्बन्ध अच्छे हैं। शुरू मेंं जब आबू आता तो बोर हो जाता था। लेकिन धीरे-धीरे अकाउंट्स डिपार्टमेंंट के संपर्क मेंं आया फिर सेवा करने लगा। दस साल मैंने अकाउंट्स डिपार्टमेंंट मेंं सेवा दी।
लोगों का बदला नजरिया
हमारे जीवन, रहन सहन और खानपान से सब लोग वाकिफ हो गये थे। कुछ साल पहले जो लोग हमेंं क्रिटीसाइज़ करते थे। उनके पारिवारिक जीवन मेंं ऐसा बदलाव आया कि उनके ख़ुद के औलाद जिनको उन लोगों ने पढ़ाया लिखाया वही आज उनके विरोधी हो गए तथा उनका ध्यान नहीं रखते थे। उनसे अलग हो गए। उसके बाद वे लोग हमेंं अच्छी नजऱ से देखते हैं। पहले मैं ट्रेन से आता तो बाबा का बैज नहीं पहन के आता था। मैं मधुबन आकर पहनता था लेकिन अब पहन कर आता हूँ। क्योंकि इससे लोगों को ईश्वरीय संदेश मिलता है।

मुझे लगा कि ये अपना ही घर है
बीके ज्योति बहन ने बताया कि जब परमात्मा का परिचय मिला तो संपूूर्ण निश्चय भी हो गया और पहली बार जब बाबा के घर आयी तो मुझे लगा ये तो मेंरा अपना ही घर है। जिसकी मैं खोज कर रही थी वो मुझे मिल गया। बाबा के कमरे मेंं जब मुझे ले गए तो वहां के चित्र से मुझे अपनेपन की फीलिंग्स मिली। वहां से उठने का भी दिल नहीं हुआ, ये सबसे पहला मेंरा अनुभव जो बहुत ही गहरा था। जैसे जैसे मुरली सुनने लगी तो मुरली से बहुत प्रीत होने लगी। पहली बार जब दादी गुलज़ार हमारे यहां मुलुंड मेंं आयी तो दादी से मुझे मिलवाया गया और बताया गया कि दादी इन्होंने अभी-अभी विवाह किया है। इनका मुरली से बहुत प्यार है, रोज़ मुरली सुनती है और पढ़ती है। फिर दादी ने जैसे मुझे वरदान दिया की मुरली से प्यार माना मुरलीधर से प्यार। उस दिन के बाद हमने कभी मुरली मिस नहीं की। कोर्स के बाद जो भी नियम मर्यादाएं हमेंं बताया गया वो आज तक हमने कभी उल्लंघन नहीं की। सहज रीति बाबा जैसे हमेंं चला रहा है, बाबा के वरदानों मेंं पल रहे हैं हमारी कुछ मेंहनत नहीं लगी। हमेंं इस जीवन मेंं, ज्ञान मेंं चलने मेंं कोई कठिनाई नहीं लगी। भगवान ने मुझे अपना बना कर सुंदर जीवन बना दिया।

परमात्म याद ने जैसे डर एकदम निकाल दिया
लौकिक जीवन मेंं मेंरे ऐसे श्रेष्ठ संस्कार नहीं थे लेकिन जैसे ज्ञान मिला, बाबा मिला, दादी की दृष्टि मिली, बड़ी दीदियों की पालना मिली, तुरंत हमारे अंदर परिवर्तन आने लगा। इसमेंं मेंहनत भी नहीं लगी। इस मार्ग मेंं जिन लोगों को कठिनाई लगती है ऐसा नहीं है। जहां तक मेंरा अनुभव है कि भोजन की शुद्धि, पवित्रता का पालन यह सब सहज है। बस राजयोग मेडिटेशन के जरिए परमात्मा का ध्यान करने से शक्ति आ जाती है। मंैने जिस दिन से कोर्स किया तब से अभी तक वो नियम मर्यादा की शक्ति बाबा देता आ रहा है और बाबा चला रहा है। सेवाओं मेंं आते हुए हम दोनों के रमेंश भाई, उजा बहन प्रेरणास्रोत रहे हैं। जो लोग आज इस दूनियां मेंं टेम्परेरी सुख लेकर ख़ुश हो रहे हैं। वे थोड़े समय के लिए है, लेकिन जो पवित्रता का टेस्ट है वो कितना अच्छा है ये तो अनुभव वो करे तभी समझे। हम दोनों ने डिसाईड किया कि हमेंं पूरा जीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना है। हम इस मार्ग पर कंटिन्यू चलेंगे ये हम दोनों की बीच की बात थी। थोड़े समय तक शुरू मेंं एक डर हुआ अगर समाज ने हमेंं नहीं स्वीकारा तो, हमारे परिवार के बड़ों ने नहीं माना तो क्या होगा। लेकिन जैसे-जैसे मैं बाबा को बताती गई कि बाबा ये सब विचार मेंरे अंदर चलता है तो वो कैसे फेस करूं ? तो बाबा ने सामना करने कि पावर अंदर भर दी। वो डर जैसे एक दम निकाल दिया। चलाने वाला बाबा है कराने वाला भी परमात्मा है। जितना हम ज्ञान मेंं योग मेंं आगे बढ़ते जाते हैं तो ये लोक लाज, और समाज कि मर्यादा बाधक बन जाता है। शुरू मेंं तो इतना कॉन्फिडेंस नहीं रहता है, लेकिन बाबा की शक्ति और मिली तो शुरू मेंं थोड़ी तक़लीफ़ होते हुए भी मनोबल और बाबा की मदद के कारण इस समस्या का समाधान निकल गया।
लोग कहते रहे, दूसरे तरफ रिश्तेदार इन्सल्ट भी करते थे। कई लोग तो हमेंं हीनभावना से देखते थे। लेकिन हमेंं कोई फर्क़ नहीं पड़ा। कोई भी उल्टा संकल्प चला तो तुरंत बाबा से कनेक्ट होकर बोल देती थी, तुरंत बाबा के स्वमान, बाबा की शक्ति महसूस हो जाती थी। आज वही लोग कहते हैं कि आप लोगों ने जो निर्णय लिया, आप लोगों ने जो जीवन बनाया, यह आपका जीवन सर्वश्रेष्ठ जीवन है।

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