शिव आमंत्रण,सागर (मप्र)। 4 बचपन से ही भक्तिभाव के संस्कार थे। मुझे रामायण पढऩे का बहुत शौक था। आसपास मोहल्ले और संबंधियों के यहां जहां भी रामायण का पाठ होता था तो मैं उसमें शामिल होकर पूरी लगन से बिना खाए-पीए पाठ करती थी। साथ ही बहुत पूजा-पाठ, व्रत आदि भी किए। मेरे दादा-दादीजी और बुआ जब ब्रह्माकुमारीज से जुड़े तो मैं भी अपनी छोटी बहन दीपिका के साथ सेंटर जाने लगी। मेरे मन में बचपन से था कि कुछ ऐसा करना है जो अब तक खानदान में किसी ने नहीं किया हो, इसी उद्देश्य को लेकर मैंने आईएएस बनने की ठानी। इसके साथ ही मैंने तैयारी भी शुरू कर दी। मेरी आईएएस की तैयारी चल ही रही थी कि जुलाई 2013 में छोटी बहन दीपिका के समर्पण समारोह में माउंट आबू जाना हुआ। माउंट आबू में मुझे अलौकिक शांति की अनुभूति हुई। साथ ही यहां एक साथ हजारों ब्रह्माकुमारी बहनों और उनका दिव्य, पवित्र जीवन देखकर मैंने मन ही मन संकल्प किया कि मुझे भी अपना जीवन ऐसा बनाना है। यदि मैं आईएएस बन भी गई तो अपना एक जीवन सफल कर सकती हूं। लेकिन परमात्मा के कार्य में जीवन दिया तो जन्मो-जन्म का भाग्य बन जाएगा। कल वही आईएएस मुझे नमन करेंगे। माउंट आबू से लौटकर मैं भी छोटी बहन की तरह सेंटर पर समर्पित हो गई। तब से सागर के बाद मालथौन सेवाकेंद्र पर सेवाएं दे रही हूं। मैंने जीवन में जो राह चुनी आज इस पर गर्व होता है और परमात्मा पिता का दिल से धन्यवाद देती हूं। वाह मेरे प्यारे बाबा वाह।

छोटी बहन के समर्पण समारोह से मिली प्रेरणा
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