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जब डीप अंदर जाने का रस बैठ जाएगा तो बाबा के समीप रहेंगे - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
जब डीप अंदर जाने का रस बैठ जाएगा तो बाबा के समीप रहेंगे

जब डीप अंदर जाने का रस बैठ जाएगा तो बाबा के समीप रहेंगे

आध्यात्मिक

शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। जैसी हूं उसने अपना बना लिया। सेकण्ड में कहा तू मेरी हो, लेकिन सदा उसकी होकर रहने के लिए पिताव्रत, सतीव्रत चाहिए। बाबा से प्यार क्यों है? उसका भी इतना प्यार है। दो हाथ की ताली बजती है। बाबा ने सब कुछ आपे ही दिया है। बाबा हमें सिखाता है कि क्यों-क्या में अपनी एनर्जी वेस्ट नहीं करो। बुद्धि अच्छा काम करे, दिव्य बुद्धि दाता ने हमारी बुद्धि को दिव्य बनाया है। हमेशा ध्यान रखें – मेरी बुद्धि बाबा तेरे समान बने। दृढ़ संकल्प से एकाग्रता की शक्ति आएगी। फिर विचार सागर मंथन करो तो रत्न निकल आएंगे। जितना गहराई में जाएंगे उतना यहां की सुधबुध भूल जाएगी। लहरों से कौड़ी लेकर खुश हो जाएंगे। जैसे मछली मारने वाले उसमें ही खुश हो जाते हैं, ऐसे हम भी थोड़े में ही खुश हो जाएं हम वह थोड़े ही हैं। हम कोई ऊपर-ऊपर से कौड़ियां इक्ट्ठी करने वाले नहीं हैं तो बुद्धि को साफ स्वच्छ रखकर दृढ़ता की शक्ति, एकाग्रता की शक्ति से बुद्धि को स्थिर बनाना है। कितना समय बुद्धि को स्थिर बना सकती हूं? बाबा ने यह बहुत प्रैक्टिस कराई। बच्चे मेरे पास आकर बैठ जाओ। बाबा जो युक्तियां सिखाता है वह करो, ब्रह्मांड में बाबा के पास बैठ जाओ। अव्यक्त स्थिति भी व्यक्त भाव से दूर करने में मदद करती है। व्यक्त भाव, व्यक्त बोल, व्यक्त संकल्प नीचे उतारते हैं। उसमें कभी गमी, कभी खुशी थोड़े समय की खुशी होगी, गमी जल्दी आ जाएगी। उसको मिटाना मुश्किल। बाबा ने कहा सीधा सादा रास्ता बताता हूं जब डीप अन्दर जाने का रस बैठ जाएगा तो बाबा के समीप रहेंगे। फिर कहां भी हों साथ का अनुभव करते रहेंगे। सदा अन्दर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहेंगे। जो पास आएगा उसका भी जी चाहेगा – मैं भी ऐसे रहूं। बातें बहुत आएंगी लेकिन जो बाबा ने सिखाया है, किसी भी आत्मा का, व्यक्ति या वैभव का सहारा नहीं पकड़ो। जैसे चिड़िया तिनके का भी सहारा पकड़ती है ऐसे हमको नहीं पकड़ना है, स्वतंत्र रहना है। एक बल एक भरोसे के आधार से चलना है। जो हमारे संग में होगा उसको वह रंग चढ़ेगा। हमारा फर्जक्या कहता है? मेरी अपने लिए जिम्मेवारी क्या है? एक सेकण्ड में अन्दर से हर बात को समझकर सहज पार करते जाना। जैसे बाबा ने कहा कोई पहाड़ भी सामने आता है, उसको देखते अपना रास्ता लेकर आगे बढ़ते चलो। कैसी भी बातें आएं अन्दर से अपना रास्ता निकाल लें। हमको मंजिल पर पहुंचना है। बातें तो रूप बड़ा- कुछ भी हो जाए बड़ा धारण करके सामने आएंगी लेकिन हमको टाइम पर पहुंचना है। इतनी युक्ति साइलेंस से निकालनी है। हम तो चलें लेकिन हमको देखकर सबको रास्ता सहज लगे। यदि हम अच्छी तरह से आराम से आगे बढ़ते रहते हैं तो यह भी पुण्य आत्मा बनने का बहुत अच्छा साधन है, युक्ति है, जो हमें देख और भी चलने लगें।

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