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मन्मनाभव क्या है…? - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
मन्मनाभव क्या है…?

मन्मनाभव क्या है…?

सच क्या है

गीता में शुरूआत से अंत तक मन्मनाभव का पाठ है पर उसका अर्थ न किसी को पता है ना ही किसी को पता पड सकता है। कारण लिखा है श्रीकृष्ण भगवानुवाच। कोई भी देहधारी भगवान नही हो सकता। और तो और किसी देहधारी को याद करने से कोई प्राप्ती होना केवल असंभव है। सांप्रत किसी भी व्यक्ति को हम आत्मा है शरीर नही यह भी पता नही। आत्मा का पिता परमात्मा है यह तो और ही दूर की बात है। श्रीकृष्ण भगवान नही हो सकता कारण भगवान का रूप हर धर्म में निराकार दिखाया गया है। निराकार के साथ वह निर्विकारी, निरहंकारी भी है और आत्माओं को सोलह कला सम्पूर्ण बनाने का हुनर भी उसमे है। उनको नाम-रूप से न्यारा भी कहते है लेकिन नामरूप से न्यारी चीज दुनिया में कोई हो ही नही सकती।
वही हम सभी आत्माओं का बाप है। वह एक साधारण व्यक्ति का शरीर धारण करते है और उसका नाम रखते है ब्रह्मा। कलियुग के अन्त में यह होता है और इस क्रिया को शिव अवतरण कहा जाता है। यहां से फिर उनका ब्रह्मा मुख द्वारा ज्ञान देना शुरू होता है। यह ज्ञान जहाँ से दिया जाता है उसका नामकरण वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय करते है। आत्माओं के मन में जो भी विकल्प या सवाल है उन सबका समाधान करके श्रेष्ठ संकल्प देकर आत्माओं में शक्ति भरकर उनके द्वारा नई सृष्टि सत्ययुग का वह निर्माण करते है। यह जो निर्माण है वह स्थुल नेत्रों द्वारा दिखाई देनेवाला नही है इसलिये किसी साधारण या मूढ़मति व्यक्ति को यह बाते समझ में नही आती। जो इस ज्ञान की धारणा करते है उनको ही वह समझ में आता है और शक्ति की प्राप्ति भी वही कर सकते है। इसी के साथ काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के रूप में जो मायाजाल फैला हुआ है वह भी नष्ट होता जाता है। हर एक व्यक्ति के मन में यह विकार है और उनके अनुकुल परिस्थिति आने पर वह विकार उपस्थित होते है और विकर्म कराते रहते है। लोगों को यह विकर्म है इसका पता नही चलता, क्योंकि यह आदत बन गई है।
जो विश्व परिवर्तन की है वह शिव ज्ञान के द्वारा मिलनेवाली सूक्ष्म शक्तियों से संबंधित है। उसमे सुख है, शांति है, आनंद है, प्रेम है, स्नेह है, शक्ति है और इन सबका आधार पवित्रता है। यह पवित्रता केवल शिव से मिलती है, कोई साधु संत या व्यक्तिसे नही मिल सकती। सृष्टि का चक्र पांच हजार बरस का है, इसको कल्प कहा जाता है और कल्प के अंत सर्व आत्माओं के पिता शिव परमात्मा ब्रह्मा तन का आधार लेकर अवतरित होते है और सृष्टि परिवर्तन का दिव्य ज्ञान देते है। इस ज्ञान में स्थूल हथियार पंवार कुछ नही है। यह ज्ञान योग सूक्ष्म है और बुध्दि से संबंधित है। इसे धारण करने का मतलब शिव धनुष्य उठाना। शिव धनुष्य का मतलब लोग स्थूल धनुष्य लेते है, यह गलत है। इसको ही प्राचीन राजयोग कहा जाता है और यह केवल शिव परमात्मा पांच हजार वर्ष में एक बार सृष्टि परिवर्तन के लिए देते है। फिर यही सृष्टि परिवर्तन होती है, कलियुग की जगह स्वर्ग आता है। साधारण दिखाई देनेवाले बच्चों को श्रृंगार करके, देवीदेवता बनाकर वह नीजधाम ब्रह्मांड मे जाकर स्थित होते है और उनका दिया हुआ यह ज्ञान उनके साथ ही प्राय:लोप हो जाता है।
उन्होने जो ज्ञान दिया है वह इस दुनिया के ज्ञान से पूरा अलग है इसलिए सबको यह हजम नही होता। कारण वह बताते है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह सब विकार है और सारी दुनिया मे हर एक व्यक्ति इसमे से किसी न किसी विकार मे लिप्त है। इसमे काम विकार नबर एक पर है पर हर उसको ही चाहता है। किसी एक सुपरिटेंडेंट आफ पुलिस को मैने यह ज्ञान बताया तो उसने कहा, यह तो जीने का साधन है, इसे शत्रु कहना सौ प्रतिशत गलत है।
वैसे यह विकार दुनिया मे किसी को छोडता नही कारण इन्सान की अवस्था अभी रसातल में पहुंची हुई है। निराकार शिव सिर्फ यह विकार है बताकर छोड नही देते, उसपर मन्मनाभव का मंत्र भी देते है। ब्रह्माण्डी मेरी निराकार स्वरूप में याद करते रहोगे तो इन सब विकारों से मुक्त हो जाओगे। मन्मनाभव मंत्र यही है और कालचक्र के अंत मे केवल निराकार शिव ही वह दे सकते है, श्रीकृष्ण नही। श्रीकृष्ण तो उनका बच्चा है वही अभी ब्रह्मा के रूप में है और उसके मुखारविन्द से वह यह दिव्य ज्ञान प्रदान कर रहे है। जो जब जागेगा और यह ज्ञान लेगा तब उसके जीवन मे सवेरा आयेगा, जीवन खुशीयों से भर जायेगा। दुनिया की आत्माये घोर अज्ञान अंधियारे में सोयी पडी है। यह है ज्ञानसूर्य शिव के आधार से सवेरा, स्थूल सूरज तो हर रोज उगता है और उसका अस्त भी होता है लेकिन उस से मन की चिरन्तन खुशी कहां मिलती है। यह ज्ञानसूर्य है चिरन्तन खुशी देनेवाला। जितना चाहो, जितनी देरतक चाहो, उस से खुशी प्राप्त कर सकते है।
अब यह सारी सृष्टि भंभोर बन गई है और शिव ज्ञान के आधार से पुन: उसका परिस्तान मे रूपांतरण होता है। सतयुग, त्रेतायुग में लक्ष्मी, सीता को आगे रखा है इसलिये दुनिया की चढती कला हो गई। नवरात्र उसका ही यादगार है। द्वापार के बाद उनको पीछे रखा, परदे मे डाला इसलिए दुनिया गिरती कला में आ गई।
अब फिर निराकार शिव ब्रह्मा द्वारा परिस्तान की स्थापना कर रहे है। जो इस ज्ञान का स्वीकार करेगा वह सतयुगी दुनिया का मालिक बनेगा। यह हम नही स्वयं शिव भगवान बता रहे है।
जो करेगा सो पायेगा, हमारा फर्ज है बताना… नही तो आप बोलेंगे, भैय्या आप इतने हमारे करीब थे, बताते तो हम भी बन जाते ना। -अनंत संभाजी

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