शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। जीवन में त्याग और तप की राह दुर्लभ और कठिन है। लेकिन इस राह का आनंद और सुकून भी अपना है। जीवन में जब कोई कदम या निर्णय स्व इच्छा, स्व विवेक और स्व संकल्प से उठाया जाता है तो भले कितने ही कंकड़, पत्थर, शूल और कांटे पल-पल राह रोकने के लिए पड़े हों, लेकिन उसका संतोष और आनंद उस पथिक का राही ही महसूस कर सकता है। आध्यात्मिक जीवन वह जीवन है जिसमें कोई जबरजस्ती, किसी के दबाव में निर्णय लेकर नहीं चल सकता है। यह तो अनंत की वह यात्रा है जिसमें यात्री भी हम अकेले हैं और मंजिल भी तय करना है। लेकिन जब मन-बुद्धि इस राह को अंतर्मन से आत्मसात कर लेती है तो त्याग-तपस्या का मार्ग कठिन न होकर आनंदोत्सव के रूप में बदल जाता है। जीवन में मधुर संगीत गूंजने लगता है। जीवन उपवन की तरह खिल उठता है और मन से गीत निकलता है… वाह मेरा भाग्य वाह…. वाह भाग्यविधाता वाह। आंखों में सुनहरे भविष्य और महान लक्ष्य की चमक। चेहरे पर पवित्रता का तेज। वाणी में ओज। खुशी में थिरकते कदम। आनंद से सराबोर जीवन और आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व। ऐसी एक दो नहीं बल्कि 450 बालब्रह्मचारिणी बेटियों ने एकसाथ संयम के मार्ग पर चलते हुए त्याग-तपस्या का मार्ग अपनाया। ब्रह्माकुमारीज़ के इतिहास में पहली बार मुख्यालय शांतिवन में अलौकिक महासमर्पण समारोह विगत दिनों आयोजित किया गया। जब इन बेटियों से युवावस्था में इस दुर्लभ राह को चुनने का सवाल किया और जो जवाब आए वह आज भौतिकता की चकाचौंध में डूबी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत और आदर्शमूर्त हैं।
पवित्रता का व्रत अपने आप में कठिन साधना-
आज की युवा पीढ़ी कई मायनों में पहले से ज्यादा समझदार है। उसके अपने सपने हैं और जीवन के प्रति नजरिया और लक्ष्य साफ है। जब इन दैवी स्वरूपा बहनों से बात की तो ब्रह्माकुमारी बनने के पीछे किसी का कहना था कि दुनियावी मनुष्य से शाद करने पर एक जन्म साथ निभाता है, दुख भी दे सकता है। लेकिन परमात्मा ऐसा जीवनसाथी है जो सदा-सदा के लिए साथ निभाता है। जन्मोंजन्म के लिए साथी बनकर साथ देता है। वह पतियों के पति परमेश्वर हैं। कहने का भाव यही है कि उच्च शिक्षित समझदार इन बेटियों ने एकसाथ इतने बड़े पैमाने पर संयम का मार्ग अपनाया है तो कुछ तो ऐसा गूढ़ रहस्य होगा जो हर किसी को करीब से जानने का प्रयास करना चाहिए। पवित्रता के व्रत का पालन करना दुनिया में अपनेआप में एक महान तपस्या, साधना और सबसे बड़ा त्याग है। साधु-संत इसी पवित्रता को अखंड बनाने के लिए हिमालय की कंदराओं का रुख करते हैं। लेकिन इन बेटियों ने घर-गृहस्थ में रहते इतने सहज, सरल और साधारण तरीके से इस पर विजय पाई है यह दुनिया के लिए शोध का विषय है।
परमात्मा को पाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रह जाता-
इन बेटियों के चाल-चलन और चेहरे पर साफतौर पर कुछ पाने के भाव को देखा जा सकता था। इनका सादगी संपन्न, पवित्र जीवन इस बात की गवाही देता है कि सादगी जीवन वह अनमोल गहना है जो हमें परमात्मा के करीब ले जाता है। अपने जीवन को विश्व कल्याण और समाजसेवा में अर्पण करने वालीं महाराष्ट्र की कुमारियों ने पूरे आत्म विश्वास और खुशी के साथ बतातीं हैं कि मेरा जीवनसाथी ऐसा है जो पूरे 21 जन्म, जन्मोंजन्म साथ निभाएगा। वह कभी साथ नहीं छोड़ेगा, कभी दुख नहीं देगा। यह तो मेरा परम सौभाग्य है कि इस जन्म में परमात्मा को अपना बनाया। उनकी श्रीमत पर चलकर समाज के लिए कुछ करने का मौका मिला।
मुझे औरों के लिए, समाज के लिए जीना है-
वहीं दिल्ली की एक कुमारी बताती हैं कि बचपन से एक ख्वाब था कि अपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन मुझे औरों के लिए जीना है। मुझे समाज की भलाई के लिए कुछ करना है। लोगों के दु:ख,दर्द, तकलीफ कम हो सके ऐसे कार्य करना है। महाराष्ट्र की एक बेटी ने सिर्फ इसलिए अपने जीवन की दिशा बदल दी क्योंकि वह जब कॉलेज में थी तो एक क्लासमेट ने तनाव में आकर सुसाइड कर लिया। उसी पल उन्होंने संकल्प किया कि यदि जीवन में मैंने ऐसे दस लोगों को भी सुसाइड करने से रोक लिया तो जीवन सफल हो जाएगा। खुद को धन्य महसूस करुंगी।
युवा पीढ़ी में बदलाव की ललक और जुनून-
इन तपस्वी बहनों से बातचीत में एक बात निकलकर आई कि अपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन समाज कल्याण, समाज की भलाई के लिए जीना ही वास्तव में जीवन है। वर्तमान युग महापरिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में सबसे बड़ी समाजसेवा है परमात्मा के इस दिव्य, पुनीत और नई दुनिया के स्थापना के कार्य में अपनी सहयोग रूपी अंगुली लगाना। नई युवा पीढ़ी में बदलाव की जो ललक, उमंग-उत्साह और जोशहै वह बताता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत फिर से सोने की चिड़िया, विश्वगुरु बनेगा। स्वर्णिम भारत की तस्वीर जल्द इस धरा पर साकार होगी। परमात्मा की शिक्षाओं को जीवन में धारण कर श्रेष्ठ और महान बना सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में राजयोग मेडिटेशन से संयम और पवित्रता की राह फूल के समान हो जाती है। हमारा नजरिया साफ और स्पष्ट हो जाता है। मन में आनंद के गीत गुनगुनाने लगते हैं।
-बीके पुष्पेंद्र, संयुक्त संपादक शिव आमंत्रण, शांतिवन-