शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। एक गांव में एक ब्राह्मण था जो पंडिताई द्वारा जैसे-तैसे भरण-पोषण करता था। उसकी पत्नी अपने मन में कोई बात को छुपा नहीं पाती थी और किसी-न-किसी के सामने निकाल देती थी। एक दिन ब्राह्मण ने रोजी के लिए शहर जाने की इच्छा जताई तो ब्राह्मणी ने हां में हां मिला दी और अगली सुबह ब्राह्मण महाराज के भोजन की व्यवस्था कर उसे विदा किया। चलते-चलते एक छायादार जगह देखकर वह रुका, भोजन की पोटली खोली और जैसी ही रोटी का टुकड़ा मुंह में डाला तो वृक्ष पर एक बगुला बैठा था और उसके मुख में एक कीड़ा था जो इस ब्राह्मण की रोटी पर गिर गया। उसने मन में कहा-राम-राम, छी:-छी: बड़ा अनर्थ हो गया, सारा भोजन अपवित्र हो गया, मैं भी अशुद्ध हो गया, अब मुझे घर को लौटना पड़ेगा। पति को घर में आया देख पत्नी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। पंडित जी ने बहुत टालने की कोशिश की किन्तु ब्राह्मणी की जिद्द के आगे हार गए पर उससे वचन ले लिया कि उसकी बताई बात वह किसी अन्य से नहीं कहेगी। ब्राह्मणी ने वायदा कर लिया परन्तु अगले दिन जब वह कुएं पर पानी भरने गई तो एक महिला ने बातों-बातों में सारा राज उससे उगलवा लिया। ब्राह्मणी ने बता दिया कि पंडित जी के भोजन में बगुले के मुख से कीड़ा गिर गया था इसलिए वे वापस लौट आए थे। उस महिला ने इस बात को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करते हुए अपनी सहेली से कहा- क्या तूने सुना कि कल पंडित जी के मुख में एक बगुला घुस गया, गजब हो गया। यह बात उसकी सहेली ने दूसरी सहेली से इस प्रकार कहा- बड़े आश्चर्य की बात है कि पंडित जी के मुंह में तो बगुले आते और जाते हैं। बात बढ़ते-बढ़ते सारे गांव में और आसपास के गांव में भी फैल गई कि पंडित जी बड़े करिश्माई हैं, उनके मुख से जादुई शक्ति से तरह-तरह के पंछी निकलते हैं। एक दिन कई गांवों के लोग इक्कठे हुए और ग्राम पंचायत के सामने यह आग्रह रखा कि पंडित जी चमत्कार दिखाएं। पंडित जी बड़े असमंजस में थे। वे समझ गए कि उनकी पत्नी के मुख से फिसली बात को लोगों ने बतंगड़ बना लिया है पर अब करते भी क्या? पंचायत में हाजिर होना ही पड़ा। उन्होंने पीछा छुड़ाने के लिए यह डर दिखाया कि जो भी मेरे मुख से निकलते पंख देखेगा, वह पंछी बन जाएगा। यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और सभी भाग खड़े हुए। किसी-किसी ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि पंडित जी मानव को पक्षी बनाने में माहिर हैं।
कोई भी बात का विस्तारबहुत जल्दी हो जाता है…
कहने का भाव है कि कोई भी बात का विस्तार बहुत जल्दी हो जाता है और बात क्या से क्या बन जाती है। कभी-कभी वही बात का बतंगड़ बन कर व्यक्ति के लिए मुसीबतें खड़ी कर देती है। इसलिए अब के समय अनुसार जितना बातों के विस्तार में जाएंगे उतना तकलीफें बढ़ेंगी। जितना किसी बात को सार में लिया जाता है यानी कम से कम शब्दों का प्रयोग करके बात को रखा जाता है उतना ही अच्छा होगा। वैसे भी विस्तार करना आसान है लेकिन बात को संकीर्ण करना अर्थात् सारयुक्त रखना मुश्किल
है। जबकि सारगर्भित बात कहने वाले के वचनों का ही महत्व होता है और समाज उसकी इज्जत करता है।

जितना बातों के विस्तार में जाएंगे उतनी समस्याएं बढ़ेंगी
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