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दुख करना छोड़ें, जो हमारे साथ हो रहा है वही सत्य है - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
दुख करना छोड़ें, जो हमारे साथ हो रहा है वही सत्य है

दुख करना छोड़ें, जो हमारे साथ हो रहा है वही सत्य है

आध्यात्मिक

शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। विकट परिस्थिति में की स्थिरता हो। जो कुछ हो गया उसे कितना जल्दी हम स्वीकार कर लेते है उस पर हमारा पुरूषार्थ निर्भर करता है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में हई घटनाओं को अभी तक स्वीकार नहीं किया है वो अन्दर से उतना दुखी है। कोई ऐसी असाध्य बीमारी जो हो गई है और व्यक्ति उसे अस्वीकार करता है, दुखी रहता है। कोई ऐसी घटना या कोई ऐसा मित्र जिसने धोखा दे दिया है, अस्वीकार करता है। कोई ऐसी बात जो हमारे साथ हुई है, अन्याय सी लगती है, अस्वीकार करता है। हमारे भाग्य की लकीर या ब्राह्मण परिवार में किसी भी आत्मा के भाग्य की लकीर एक-दूसरे को नहीं काटती। इसलिए जो हमारे साथ हो रहा है वही सत्य है, वही होना चाहिए। ऐसी भावनात्मक स्थिरता ये लक्षण है एक राजा का। एक राजा स्थिर होता है, राजा होता है अपने शरीर का, अपने मन का, अपनी बुद्धि का, अपनी भावनाओं का। सबकुछ नियंत्रण में है। यदि राजा ही हिल जाए तो क्या कहेंगे। शरीर पर नियंत्रण से ज्यादा मन पर नियंत्रण आवश्यक है। भावनाओं पर नियंत्रण उससे अधिक सूक्ष्म है, संस्कारों पर नियंत्रण उससे भी अधिक सूक्ष्म है। विचार, भावनाएं, संस्कार तीनों को जो नियंत्रित करता है वो है राजा। महाभारत में बाणों की शैया पर लेटे हुए भीष्म राजा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक राजा में 36 गुण होते हैं। बहुत सूक्ष्म-सूक्ष्म बाते हैं। चाणक्य ने भी राजा में कौन से गुण होने चाहिए इसका वर्णन किया है। राजा अपने रहस्य किसी के साथ साझा नहीं करता है। राजा सबसे प्रेम से व्यवहार करता है फिर भी जो कर्मचारी हैं उनसे सूक्ष्म दूरी बनाकर रखता है। नहीं तो जो कर्मचारी हैं वो धीरे-धीरे स्वयं को ही राजा समझने लगेंगे, ये राजा के लिए हानिकारक है। ऐसी अनेक सूक्ष्म-सूक्ष्म बातें हैं एक राजा का प्रशासन कैसा होना चाहिए, व्यवहार कैसा होना चाहिए- बड़ों के साथ, स्त्रियों के साथ। विपदा के समय प्रजा से कैसा प्रेम होना चाहिए, कितना संतुलित उसका जीवन होना चाहिए। राजा अर्थात सदा देने वाला। ये सभी गुण लिखे हुए हैं। ब्राह्मण परिवार एक अलौकिक राज्य दरबार है। ये दरबार न्यारा-प्यारा, निराला, श्रेष्ठ और अलौकिक है। किसी के प्रति भी घृणा भाव न हो, चाहे कोई कैसा भी हो, कितना ही अपकार करने वाला हो। तपस्या की परिभाषा ही है जो असंभव सा दिख रहा हो उसको संभव कर देना। जब भी तपस्या करते हैं एक संकल्प करें और की हुई तपस्या का फल सारे संसार में बांट दें।
अध्यात्म में बांटने से बढ़ता है

मुरली सुनते ही एक संकल्प जो ज्ञान मेरे अन्दर गया इसके प्रकंपन सारे विश्व में फैल रहे हैं। भोजन कर रहे हैं उसका एक-एक निवाला विश्व की एक-एक आत्मा तक पहुंच गया। इस सृष्टि पर कोई भूखा ना रहे, कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन कर रहा हूं। दिनभर जो सेवा करते हैं उस सेवा का फल सारे विश्व को समर्पित कर दो। अध्यात्म और संसार में एक फर्क है संसार में बांटने से घटता है और अध्यात्म में बांटने से बढ़ता है।

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