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अति वाचालता का दुष्परिणाम - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
अति वाचालता का दुष्परिणाम

अति वाचालता का दुष्परिणाम

बोध कथा

क राजा बहुत अधिक बोलता था। उसका मंत्री विद्वान और शुभ चिंतक था। इसलिए सोचता रहता था कि राजा को कैसे इस दोष से मुक्त करुं और वह ज्ञान दू जो कि मनुष्य के हृदय में बहुत गहराई से उतरकर उसके स्वभाव का अंग बन जाता है। मंत्री उचित अवसर की तलाश में था कि राजा को अपने इस दोष का आभास हो और उसके द्वारा होने वाली हानि को समझकर निकल जाए। एक दिन राजा मंत्री के साथ उद्यान में घूमते हुए एक शिला पर बैठ गया। शिला के ऊपर आम के पेड़ पर कौवे का एक घोंसला था। उसमें काली कोयल अपना अण्डा रख गई। कोयल अपना घोंसला नहीं बनाती, वरन कौवे के घोंसले में ही अंडा रख देती है। कौवी उस अंडे को अपना समझकर पालती रहती है। आगे चलकर उसमें से कोयल का बच्चा निकला। कौवी उसे अपना पुत्र समझकर पालती थी। कोयल के बच्चे ने असमय जबकि उसके पर भी नहीं निकले थे, कोयल की आवाज की। कौवी ने सोचा- यह अभी विचित्र आवाज करता है, बड़ा होने पर क्या करेगा?’ कौवी ने चोंच से मार-मारकर उसकी हत्या कर दी और घोंसले से नीचे गिरा दिया। राजा जहां बैठा था, वह बच्चा वहीं उसके पैरों के पास गिरा। राजा ने मंत्री से पूछा-मित्र ! यह क्या है? मंत्री को राजा की भूल बताने का यह अवसर मिल गया। मंत्री ने कहा- महाराज! अति वाचाल (बहुत बोलने वालों) की यही गति होती है। पूछने पर मंत्री ने पूरी बात राजा को समझाकर बताई कि कैसे यह बच्चा असमय आवाज करने से नीचे गिरा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। यदि यह चुप रहता तो यथा समय घोंसले से उड़ जाता। इतना कहकर मंत्री ने राजा को मौका देखकर उसकी वाचालता दूर करने के लिए प्रत्यक्ष उदाहरण बताकर नीति बताई। चाहे मनुष्य हो, पशु-पक्षी असमय अधिक बोलने
से इसी तरह दुःख भोगते हैं। उसने वाणी के अन्य दोष और उसके दुष्परिणाम राजा को बताए। दुर्भाषित वाणी हलाहल विष के समान ऐसा नाश करती है, जैसा तेज किया हुआ शस्त्र भी नहीं कर सकता।

संदेश: बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वाणी की समय, असमय रक्षा करें। अपने समकक्ष व्यक्तियों से कभी अधिक बातचीत न करें। जो बुद्धिमान समय पर विचारपूर्वक थोड़ा बोलता है, वह सबको अपने वश में कर लेता है। बुद्धिमान् और प्रज्ञावान् मंत्री की बात सुनकर राजा अति वाचालता के दोष को दूर कर मितभाषी हो गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा।

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