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पांच हजार लोगों को दिलाया नशे को लेकर जागरूकता फैलाने का संकल्प - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
पांच हजार लोगों को दिलाया नशे को लेकर जागरूकता फैलाने का संकल्प

पांच हजार लोगों को दिलाया नशे को लेकर जागरूकता फैलाने का संकल्प

मुख्य समाचार

– राजयोग मेडिटेशन शिविर में मुंबई और राजस्थान से पहुंचे लोग
– पहली बार शांतिवन पहुंचे लोग गहराई से समझ रहे राजयोग की बारीकियां

शिव आमंत्रण,आबू रोड/राजस्थान।
 ब्रह्माकुमारीज संस्थान के शांतिवन परिसर में चल रहे राजयोग मेडिटेशन शिविर में मुंबई और राजस्थान से पांच हजार लोग पहुंचे हैं। इनमें से ज्यादातर लोग पहली बार आबू पहुंचे हैं जो गहराई से राजयोग ध्यान की विधि समझ रहे हैं। शिविर के दौरान मेडिकल विंग के कार्यकारी सचिव डॉ. बनारसी लाल ने सभी लोगों को जीवन में सदा नशे से दूर रहने, परिवार में जो व्यक्ति नशा कर रहा है उसे नशे की लत छुड़ाने में मदद करने और अपने आसपास के लोगों में नशे को लेकर जागरूकता फैलाने को लेकर संकल्प कराया। उन्होंने कहा कि नशा एक सामाजिक बुराई है जिसे हम सभी को मिलकर पूरे भारत से उखाड़ फेंकना है। हम सभी को मिलकर नशामुक्त भारत बनाना है। इसे लेकर ब्रह्माकुमारीज और भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग द्वारा संयुक्त रूप से देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है।
शिविर में आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में बताते हुए वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके शीलू दीदी ने कहा कि मनुष्य अपने जीवन में कई पहेलियां हल करता है और उसके लिए इनाम भी पाता है। आज मनुष्य के पास दुनियाभर का ज्ञान एवं जानकारी है, लेकिन ताज्जुब की बात है कि उसे स्वयं का ज्ञान नहीं है। इस छोटी-सी पहेली का हल कोई नहीं जानता कि मैं कौन हूं…? यूं तो हर एक मनुष्य सारा दिन मैं-मैं कहता रहता है, परंतु यदि उससे पूछा जाए कि मैं कहने वाला कौन है? तो वह कहेगा कि कृष्णचंद हूं या मैं लालचंद हूं। वास्तव में यह शरीर का नाम है, शरीर तो मेरा है, मैं तो शरीर से अलग हूं। मैं शरीर को चलाने वाली ज्योतिर्बिंदु स्वरूप, शरीर में भृकुटि के मध्य विराजमान एक चमकता हुआ सितारा आत्मा हूं। शरीर तो आत्मा का कर्म करने का साधन मात्र है। आत्मा ही शरीर की कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करती है और शरीर द्वारा किए हुए कर्म का सुख-दुख भोगती है। हम इस शरीर से जो भी कर्म करते है उन कर्मों के आधार पर ही हमारे संस्कार बन जाते है और इन्हीं संस्कारों के आधार पर ही व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता है। इस छोटी-सी पहेली का प्रैक्टीकल हल न जानने के कारण अर्थात् स्वयं को न जानने के कारण, आज सभी मनुष्य देह-अभिमान के चलते काम, क्रोधादि विकारों के वश हैं, जो सर्व दु:खों का कारण हैं।

मन, बुद्धि, संस्कार आत्मा की शक्तियां
वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके गीता दीदी ने कहा कि जिस तरह मानव शरीर की रचना का अध्ययन करना शरीर विज्ञान कहलाता है। उसी तरह आत्मा का अध्ययन करना आध्यात्मिक विज्ञान, सूक्ष्म विज्ञान या तात्विक विज्ञान कहलाता है। जिस तरह एक एटम, प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन व न्यूट्रॉन से मिलकर बनता है एवं हमारा शरीर पांच तत्वों जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु और आकाश से मिलकर बना है। उसी तरह आत्मा भी मन, बुद्धि और संस्कार के मिलने से बनती है। मन-बुद्धि और संस्कार ये तीनों आत्मा की शक्ति है। इनके द्वारा ही आत्मा इस शरीर द्वारा कर्म करती है।

1. मन आत्मा की विचार शक्ति-
आत्मा की तीनों शक्तियों में मन सबसे शक्तिशाली शक्ति है। मन आत्मा की विचार शक्ति का नाम है। मन रूपी शक्ति के द्वारा ही आत्मा कल्पना करती, सोचती और विचार करती है। विचार-प्रक्रिया ही समस्त इच्छाओं, लालसाओं तथा अनुभूतियों का आधार है। मन की गति के लिए कहा जाता है कि यह प्रकाश और आवाज की गति से भी तीव्र है। मन एक क्षण से भी कम समय में कहीं भी पहुंच सकता है। सूक्ष्म शक्ति होने के कारण यह समय तथा स्थान की सीमाओं के बंधन से परे है। मन और ह्दय में अंतर है, क्योंकि ह्दय शरीर का भौतिक अंग है जो रक्त संचरण को बनाए रखने का कार्य करता है। मन आत्मा की शक्ति है।  

राजयोग शिविर के दौरान मुंबई और राजस्थान से आए पांच हजार से अधिक लोगों ने लिया नशामुक्ति जागरूकता का संकल्प। 

2. बुद्धि विचारों को परखती है –
बुद्धि आत्मा की दूसरी शक्ति है। हमारे मन में जो भी विचार, संकल्प चलते हैं उन्हें परखने एवं निर्णय करने का काम बुद्धि करती है। बुद्धि आत्मा की तर्क शक्ति और परखने की शक्ति का नाम है। मन में जो विचार चलते है उन्हें पहचानना, समझाना, स्मरण करना, तर्क करना, विश्लेषण करना एवं निर्णय लेना बुद्धि का कार्य है। बुद्धि और मस्तिष्क में भी अंतर है, क्योंकि मस्तिष्क शरीर के नियंत्रण कक्ष के रूप में है, लेकिन बुद्धि आत्मा की निर्णायक शक्ति है। बुद्धि जो भी निर्णय देती है उसी के अनुसार मनुष्यात्मा कर्म करती है और उसी के अनुसार हमारे संस्कार बनते हैं। संस्कार के आधार पर ही व्यक्तित्व बनता है।

3. कर्म के आधार से बनते हैं संस्कार-
मन में उठे किसी भी विचार का बुद्धि जो भी अच्छा-बुरा निर्णय देती है उसी के अनुसार हमारे कर्म होते हैं। यह कर्म ही आत्मा के संस्कार बन जाते हैं। जिसे आत्मा अपने साथ अगले में ले जाती है। कर्म के आधार पर ही आत्मा उसका फल भोगती है। इनके आधार पर ही फिर मन में संकल्प उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार यह चक्र चलता ही रहता है। संस्कार ही धारणाओं, अभिरूचियों, संवेगों, भावनाओं, दृष्टिकोणों, स्वभावों, व्यक्तिगत विशेषताओं तथा आदतों का वह समूह है जिस पर आत्मा के विचार आधारित होते हैं। मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व उसके संस्कारों का ही प्रतिबिम्ब होता है।
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