सभी आध्यात्मिक जगत की सबसे बेहतरीन ख़बरें
ब्रेकिंग
थॉट लैब से कर रहे सकारात्मक संकल्पों का सृजन नकारात्मक विचारों से मन की सुरक्षा करना बहुत जरूरी: बीके सुदेश दीदी यहां हृदय रोगियों को कहा जाता है दिलवाले आध्यात्मिक सशक्तिकरण द्वारा स्वच्छ और स्वस्थ समाज थीम पर होंगे आयोजन ब्रह्माकुमारीज संस्था के अंतराष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू दादी को डॉ अब्दुल कलाम वल्र्ड पीस तथा महाकरूणा अवार्ड का अवार्ड एक-दूसरे को लगाएं प्रेम, खुशी, शांति और आनंद का रंग: राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी
साफ दिल से ही पूर्ण होते हैं हमारा संकल्प और आशाएं - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
साफ दिल से ही पूर्ण होते हैं हमारा संकल्प और आशाएं

साफ दिल से ही पूर्ण होते हैं हमारा संकल्प और आशाएं

आध्यात्मिक
  • मैं और मेरापन छोड़कर निमित्त भाव से करें सेवा

शिव आमंत्रण, आबू रोड/राजस्थान। साफ दिल नहीं है तो जो हमारी आशाएं या संकल्प हैं वह पूरे नहीं होते हैं। इसमें बाबा का दोष नहीं है, पता नहीं क्यों…फिर दिलशिकस्त हो जाते हैं। बाबा मेरे से बात ही नहीं करता, रेसपाण्ड ही नहीं देता।फिर कोई न कोई व्यक्ति को अपना साथी बना देते हैं। लेकिन बाबा क्यों नहीं उत्तर देगा, बाबा बंधा हुआ है, हमको बाबा ने अपना बनाया है, बाबा ने हमको ढूंढा है। हमको तो परिचय ही नहीं था। तो बाबा बंधा हुआ है, जैसे मां- बाप छोटे बच्चे के लिए ज़िम्मेवार हैं। यह तो बाबा है, यह तो धोखा देगा ही नहीं। बाबा तो क्षमा का, प्यार का सागर है, हमको भीख नहीं मांगनी चाहिए, हमारा तो अधिकार है। कई तो रॉयल भिखारी बन जाते हैं। बाबा आप करो ना, बाबा आपको करना चाहिए ना। बाबा आज मेरे फलाने सम्बन्धी की बुद्धि का ताला खोलना। बाबा आज मेरा यह काम ज़रूर कराना ऐसे जैसे भिखारी। हमारा अधिकार है, बाबा ने हमको ढूंढ़कर अपना बच्चा बनाया है। क्या आप बाबा को पहचानते थे? हमने बाबा को नहीं ढूंढ़ा, बाबा ने हमें ढूंढ़कर अपना बनाया है, तो हमारा अधिकार है। अधिकार से बाबा को याद करो, रूह-रूहान करो तो क्यों नहीं बाबा रेसपांड देगा। रेसपांड माना कोई आवाज़ नहीं देगा। लेकिन बाबा से जो आपने बात कही, समझो आपने बाबा पर अधिकार रखा, दिल से बाबा पर कोई कार्य छोड़ा तो बाबा खुद ज़िम्मेवार होकर उस कार्य को पूरा करता है। यह रेसपांड हुआ, तो आपको यह अनुभव होगा। कई बार बातों की उलझन में होते हैं, उधेड़बुन में लग जाते हैं तो बाबा के रेसपांड का अनुभव नहीं होता है। लेकिन बाबा का रेसपांड चाहिए। बाबा की मदद का अनुभव चाहिए तो उसका आधार बुद्धि एकदम क्लीन और क्लीयर चाहिए। अगर हम बाबा की सेवा में बिज़ी हैं, तो बाबा की सेवा में बुद्धि क्लीयर रहेगी। अगर बाबा की सेवा है यह याद नहीं है, मेरी ज़िम्मेवारी है, मैं कर रही हूं यह अगर आ गया तो सेवा करते वह सफलता की मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि मैं-पन आ गया। बाबा ने सुनाया है कि माया के आने के दो दरवाज़े हैं – एक मैं और दूसरा मेरा। अभी यह हद का मैं और मेरा इन दोनों दरवाजों को बंद कर दो। मैं और मेरे करने की आदत पड़ी हुई है तो जब मैं शब्द बोलो तो यह सोचो कि मैं कौन, असली स्वमान से मैं कहो और जब मेरा कहते हो तो कहो ‘मेरा बाबा’। सारे दिन में मेरे-मेरे का कितना विस्तार होता है और एक मेरा बाबा इसमें सब समाया हुआ रहता है। मेरापन क्यों होता है? मेरे से कोई प्राप्ति होती है, सुख मिलेगा, शान्ति मिलेगी, जो ज़रूरत है वह पूरी हो जाएगी। इसीलिए मेरा-मेरा आता है और बाबा से तो सबकुछ मिलता है। हद के मेरे से आपको अल्पकाल की प्राप्ति होगी और बाबा तो अविनाशी है, उससे अविनाशी प्राप्ति होगी। सब प्राप्ति होगी। तो अनेक मेरे के बजाए अगर मेरा कहना है तो कहो मेरा बाबा। मैं वह श्रेष्ठ आत्मा हूं, परमात्मा की बच्ची हूं। मैं अनादि बाबा के साथ थी, आदि में दिव्यगुणधारी आत्मा थी, वह याद करो। अज्ञान के वश जो मैं-मैं करते हैं, वह कितने बॉडी-कॉन्सेस होते। कभी अभिमान आएगा, कभी क्रोध आएगा। इसलिए इन दोनों दरवाज़ों को बंद रखना चाहिए। उसके लिए बाबा ने सबको डबल लॉक दिया है। एक पॉवरफुल याद और दूसरी नि:स्वार्थ रूहानी सेवा। यह डबल लॉक है। अगर यह डबल लॉक लगा लो, इसी में ही मन-बुद्धि को बिज़ी रखो तो समझो आपने माया के आने का दरवाज़ा बंद कर दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *