सभी आध्यात्मिक जगत की सबसे बेहतरीन ख़बरें
ब्रेकिंग
व्यर्थ संकल्पों से अपनी एनर्जी को बचाएंगे तो लाइट रहेंगे: राजयोगिनी जयंती दीदी राजयोगिनी दादी रतन मोहिनी ने किया हर्बल डिपार्टमेंट का शुभारंभ  मप्र-छग से आए दस हजार लोगों ने समाज से नशे को दूर करने का लिया संकल्प चार दिवसीय वैश्विक शिखर सम्मेलन का समापन वैश्विक शिखर सम्मेलन (सुबह का सत्र) 6 अक्टूबर 2024 श्विक शिखर सम्मेलन का दूसरा दिन- वैश्विक शिखर सम्मेलन- शाम का सत्र (4 अक्टूबर)
स्वर्णिम संस्कृति के उद्भव का अमृत काल - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
स्वर्णिम संस्कृति के उद्भव का अमृत काल

स्वर्णिम संस्कृति के उद्भव का अमृत काल

सच क्या है

हम सभी प्राय: स्वर्णिम संस्कृति के बारे में कल्पना करते हैं, उसमें जीना चाहते हैं और उस संस्कृति को अपनी यादों में चिरस्मृति के रूप में संजो कर रखना चाहते हैं। स्वर्णिम दुनिया के संकल्प मात्र से मन में एक खुशी-आनंद की सिहरन दौड़ जाती है और अंत:करण से निकलता है काश! उस दुनिया का हिस्सा मैं भी बन पाता। सवाल ये है कि उस दुनिया को इस धरा पर साकार करने में हमने क्या कदम बढ़ाए हैं? हमने जीवन में कितने महान कार्य किए हैं? समाज के लिए क्या दिया है? अपनी चिंतन की धारा से धरती पर कितने शुभ और श्रेष्ठ संकल्पों का सिंचन किया है? हमारे कर्मों से कितने लोगों ने जीवन को महान और दिव्य बनाने की प्रेरणा ली है? कितना परमात्म आज्ञा को शिरोधार्य किया है? ज्ञान को कितना कर्मों की चक्की में पीसा है? क्या हम स्वर्णिम दुनिया का स्वप्न देखने के साथ उसे लाने के लिए भी गंभीर हैं? आज ये प्रश्न हमें अपने अंत:करण से पूछने की जरूरत है।

हम खुद नहीं दूसरों को बदलना चाहते हैं-
मानव स्वभाव है कि उसे खुद की कमी-कमजोरियां नहीं दिखती हैं। जहां रिश्तों या कार्यक्षेत्र पर सामंजस्य नहीं बैठता है तो सामने वाले पर दोष मढ़ देते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान यही सिखलाता है कि आपके जीवन की प्रत्येक घटना और परिस्थिति के लिए सिर्फ आप ही जिम्मेदार हैं। आप ही उसे बदल सकते हैं। जब हम बदलेंगे तो जग बदलेगा। जब श्रेष्ठ दुनिया, स्वर्णिम दुनिया का स्वप्न देखना सुखद लगता है तो कर्म रूपी यज्ञ में अपनी आहुति देना होगी। उस दुनिया को इस धरा पर साकार करने में साथ देना होगा।

स्वर्णिम दुनिया की संधि बेला अब- वर्तमान का सारा काल ही अमृत काल, अमृत वेला है। ये वेला है पुरानी दुनिया से नई दुनिया की ओर बढऩे की। साइंस के गुमान में इंसान दुनिया की अनोखी और अविस्मणीय घटना को समझ नहीं पा रहा है। दिव्य नेत्रों से दुनिया के आदि-मध्य और अंत पर नजर दौड़ाएं तो तस्वीर साफ नजर आती है। ये अमृत काल महापरिवर्तन
का महा-इशारा है। स्वर्णिम संस्कृति के उद्भव का यह वही संधि चल रहा है।

श्रेष्ठ संकल्प ही स्वर्णिम संस्कृति का आधार- भारत में ही सतयुग अर्थात् दैवी-देवताओं की दुनिया थी। हम सभी देवी देवताओं के घराने की दिव्य आत्माएं हैं। जहां प्रत्येक आत्मा सुख-शांति, आनंद, प्रेम, पवित्रता से भरपूर थी। स्वर्णिम संस्कृति में प्रत्येक आत्मा के संकल्प शुभ और शक्तिशाली थे। यही कारण है कि वहां रामराज्य अर्थात् सुख की दुनिया थी। कोई भी चीज हमेशा अपने मूल रूप में नहीं होती है। यही सृष्टि का नियम है। मनुष्य आत्मा के जन्म-मरण के चक्कर में आने से धीरे-धीरे उसमें कलाएं कम होती गईं। जब हमने कलियुग में प्रवेश किया तो आत्मा जन्मोंजन्म की जानीं-अंजानें भूलों, पाप कर्म, विषयविकारों रूपी कालिमा से कलाहीन अर्थात् अपना मूल स्वरूप खो गई। अब यदि हमें पुन: मन रूपी मंदिर को सजाना है, आत्मा को एकता, समरसता, समानता, सादगी, सत्यता, साहस और शक्तियों से शृंगारित करना है तो अपने संकल्पों को श्रेष्ठ बनाना ही होगा। दुनिया की सबसे बड़ी घटना विश्व परिवर्तन की इस मुहिम में अपना हाथ बढ़ाना होगा। परमात्मा पिता की आज्ञा को शिरोधार्य कर उनकी शिक्षाओं को जीवन में अपनाना होगा। उनके बताए मार्ग पर चलना ही होगा। क्योंकि स्वर्णिम दुनिया को लाने का सपना एक परमात्मा के सिवाए कोई और कर नहीं सकता है। इस महान परिवर्तन का सारथी बनकर हमभी उस नई दुनिया के साथी बन सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *