शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। ज्ञानी अर्थात् समझदार, योग्य, जानकार। हर कर्म युक्तियुक्त, समयानुकूल करने वाला।धर्म-ग्रंथों में ज्ञानियों की अलग-अलग तरह से व्याख्या की गई है। ज्ञान ही वह प्रकाश है जो व्यक्ति को यश, कीर्ति, धन, मान सम्मान दिलाता है। ज्ञान मन के अंधकार को समाप्त कर जीवन को प्रकाशित कर देता है। ज्ञानी हर जगह आदर और सम्मान पाता है। लेकिन सवाल ये है कि ज्ञान सिर्फ विचारों में हो और कर्मों की कसौटी पर नदारद हो तो क्या वह ज्ञानी कहलाने के योग्य है? संसार में सच्चा ज्ञानी वही है जिसने स्वयं को और सृष्टि के सृजनहार को यथार्थ रूप में जाना है। आत्म ज्ञान और परमात्मा ज्ञान को जाना है। सृष्टि चक्र और कर्मों की गहन गति को जाना है। कालखंड की कहानी काे जाना है। संसार में रहते हुए कमल पुष्प समान जीवन जीने की कला को जाना है।
विदुर के अनुसार ज्ञानी कौन है?
महाभारत में एक वृतांत है कि धृतराष्ट्र ने एक बार विदुर से पूछा कि ज्ञानी कौन है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए विदुर ने कहा कि महाराज! जो व्यक्ति दुर्लभ वस्तु को पाने की इच्छा न रखता हो, नाशवान वस्तु के विषय में शोक नहीं करता हो, मुसीबत आने पर घबराते नहीं हो और उसका पूरी क्षमता से सामना करता है ऐसे व्यक्ति ज्ञानी कहलाते हैं। वह व्यक्ति जो अपने कार्य को पूरे उत्साह से आरंभ करता है और बिना रूके उसे परिणाम तक पहुंचाता है। मन को नियंत्रित करके रखता है। ऐसा व्यक्ति भी ज्ञानी कहलाने का अधिकार रखता है। सम्मान पाकर भी अहंकार न करे वह भी ज्ञानी है। जो व्यक्ति प्रशंसा और सम्मान पाकर भी अहंकार न करे और अपमान को सहन करने की क्षमता रखता है। समुद्र की गहराई की भांति गंभीरता हो ऐसे व्यक्ति वह ज्ञानी होते हैं।
परमात्मा की श्रीमत ही श्रेष्ठ ज्ञान-परमात्मा की दी हुई श्रीमत को यथार्थ रूप में जीवन में साकार करना ही श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ और परम ज्ञान है। परमात्म ज्ञान से अपने जीवन को संवारना, श्रेष्ठ संकल्पों की पूंजी जमाकर महान कर्मों से जीवन बगिया को कमल पुष्प समान बनाकर परम लक्ष्य को प्राप्त करने में रमी मनुष्य आत्मा ही सच्ची ज्ञानी है। जीवन में जब
ज्ञान का प्रकाश उदित हो जाता है तो परिस्थितियां, समस्याएं और परेशानियां नगण्य हो जाती हैं। ज्ञानी पुरुष सम-विषम दोनों परिस्थितियों में एक समान और स्थितप्रज्ञ होता है। उसका व्यक्तित्व पर्वत की तरह अडिग और स्थिर, आसमान की तरह विशाल, समुद्र की तरह गहरा होता है। जीवन ज्ञान की असली परीक्षा कर्मों में आने पर होती है। लेकिन जिसके कर्मों में महानता की झलक दिखे, जिसे दूसरे अनुकरण करना चाहें जिसके पदचिंह्रों पर चलना चाहें ऐसे महापुरुष ज्ञानी कहे जाते हैं।
परमात्मा खुद देते हैं आत्म और परमात्म ज्ञान-कालखंड में कलियुग के अंत और सतयुग के आदि में कल्पानुसार अनोख घटना घटित होती है। जब स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अवतरित होकर साधारण मानव तन (प्रजापिता ब्रह्मा) का आधार लेकर सच्चा गीता ज्ञान और सहज राजयोग की शिक्षा देते हैं। वह मनुष्य को नर से श्रीनारायण और नारी को श्रीलक्ष्मी के समान बनने की शिक्षा देते हैं। परमात्मा जहां बाप के रूप में पालना करते हैं तो शिक्षक के रूप में ईश्वरीय ज्ञान की शिक्षा देते हैं। सद्गुरु के रूप में वरदानों से हमारी झोली को भरपूर करते हैं। परमात्मा कहते हैं कि मेरे बच्चे, मुझसे योग लगाओ तो मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर दूंगा। तुम्हें स्वर्ग की बादशाही दूंगा और जन्मोंजन्म के लिए भाग्य के द्वार खोल दूंगा। लेकिन इस परम और सत्य ज्ञान को समझ पाना, इसे शिरोधार्य कर अपने जीवन को ऊंच बनाना आसान है। जब हम परमात्म शिक्षा और ज्ञान को यथार्थ रीति जीवन में उतारते हैं तो यह उतना ही आसान और सरल हो जाता है। राजयोग ही वह दिव्य ज्ञान है जो नए युग का सूत्रपात करता है। राजयोग की परम शिक्षा मनुष्य के अंधकार और तमस को मिटाकर ज्ञान प्रकाश से प्रकाशित कर देती है। यह दिव्य ज्ञान पाकर आज एक दो नहीं बल्कि लाखों लोग अपने जीवन को ऊंच और महान बना चुके हैं। उनका जीवन कौड़ी से हीरे तुल्य बन गया है। रोज वह परमात्म मिलन का अतीद्रिंय सुख के झूले में झूलते हुए अनुपम सुख का आनंद लेते हैं। परमात्म वरदान, शिक्षा और श्रीमत ही उनके जीवन का आधार है। आप भी इस परम ज्ञान को जीवन में अपनाकर अपना जीवन श्रेष्ठ, ऊंच और महान बना सकते हैं।