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दूसरों के भरोसे मत रहो - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
दूसरों के भरोसे मत रहो

दूसरों के भरोसे मत रहो

बोध कथा

एक गांव के पास एक खेत में सारस पक्षी का एक जोड़ा रहता था। वहीं उनके अंडे थे। अंडे से समय पर बच्चे निकले। लेकिन बच्चों के बड़े होकर उडऩे योग्य होने से पहले ही खेत की फसल पक गई। सारस बड़ी चिंता में थी कि किसान खेत काटने आवे, इससे पहले ही बच्चों के साथ उसे वहां से चले जाना चाहिए तब बच्चे उड़ भी नहीं सकते थे। सारस ने बच्चों से कहा -हमारे न रहने पर यदि कोई खेत में आवे तो उसकी बात सुनकर याद रखना। एक दिन जब सारस चारा लेकर शाम को बच्चों के पास लौटा तो बच्चों ने कहा कि आज किसान आया था और गांव वालों से फसल कटवाने की कह रहा था। सारस ने कहा – तुम लोग डरो मत! खेत अभी नहीं कटेगा अभी खेत कटने में देर है। कई दिन बाद जब एक दिन सारस शाम को बच्चों के पास आए तो बच्चे बहुत घबराए थे- वे कहने लगे कि अब हम लोगों को यह खेत झटपट छोड़ देना चाहिए। आज किसान फिर आया था, वह कहता था, कि गांव वाले स्वार्थी हैं। कल मैं अपने भाइयों को भेजकर खेत कटवा लूंगा। सारस बच्चों के पास निश्ंिचत होकर बैठा और बोला – अभी तो खेत कटता नहीं दो-चार दिन में तुम लोग ठीक-ठीक उडऩे लगोगे। अभी डरने की आवश्यकता नहीं है। कई दिन और बीत गए सारस के बच्चे उडऩे लगे थे और निर्भय हो गए थे। एक दिन शाम को सारस से वे कहने लगे – यह किसान हम लोगों को झूठा डराता है। इसका खेत तो कटेगा नहीं, वह आज भी आया था और कहता कि मेरे भाई बात नहीं सुनते, फसल सूखकर झर रही है। कल बड़े सवेरे में आऊंगा और खेत काट लूंगा। सारस घबराकर बोला -चलो जल्दी करो! अभी अंधेरा नहीं हुआ है। दूसरे स्थान पर उड़ चलो। कल खेत अवश्य कट जाएगा। बच्चे बोले – क्यों ? इस बार खेत कट जाएगा यह कैसे ? सारस ने कहा – किसान जब तक गांव वालों और भाइयों के भरोसे था। खेत के कटने की आशा नहीं थी। जो दूसरों के भरोसे कोई काम छोड़ता है, उसका काम नहीं होता, लेकिन जो स्वयं काम करने को तैयार होता है उसका काम रुका नहीं रहता। किसान कल स्वयं फसल काटने आएगा। इस पर सारस उसी समय अपने बच्चों के साथ वहां से उडक़र दूसरे स्थान पर चला गया।

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