- मन के अशुद्ध विचार-विकार को सदा-सदा के लिए दे दें विदाई
- मन का आत्मदीप जलाएं,सच्ची दीवाली मनाएं…
शिव आमंत्रण, आबू रोड। दीपावली का त्यौहार आते ही चारों ओर उमंग उत्साह की लहर छा जाती है। क्योंकि दीपावली अपने आप में पांच त्योहारों को लेकर आती है। वास्तव में देखा जाए तो यह पांच त्योहार मनुष्य जीवन की पांच पुरुषार्थ की बात है इसलिए हर रीति से इंसान को सुखी संपन्न बनाने के लिए यादगार त्यौहार है। तभी इतना खुशी, हर्षोल्लास के साथ दीपावली मनाई जाती है। विशेषकर पहला पुरुषार्थ जो है वह है सफाई का अर्थात् शुद्धि का। मनुष्य घरों की सफाई करते हैं। अपने स्थान की सफाई करते हैं। वास्तव में सर्वप्रथम सफाई की जरूरत मन-वचन- कर्म को साफ करना। हमारे दृष्टि और वृत्ति की सफाई करनी है। मन के अंदर से नकारात्मक और अशुद्ध विचार को हम दूर करें। श्रेष्ठ सकारात्मक विचारों को ले आएं, यही मन की शुद्धि है। वाणी की शुद्धि अर्थात् बोल में मधुरता ले आएं। कर्म की शुद्धि और व्यवहार की शुद्धि अर्थात् अपने संस्कारों में श्रेष्ठता लाएं और हमारा व्यवहार कर्म एक-दूसरे के साथ बहुत मधुर हो। नेचुरली जब यह शुद्धि हम अपने अंदर लाते हैं तो दृष्टि-वृत्ति के अंदर पवित्रता सहजता से आ सकती है। वास्तव में सफाई से मतलब पवित्रता और शुद्धि को अपने जीवन में लाना है।
जीवन में लाएं नवीनता…
दूसरा पुरुषार्थ दीपावली में होता व्यापारी अपने पुराने खाते को समाप्त कर नया बहीखाता आरंभ करते हैं। अर्थात् आज तक हमने कईयों के साथ जो भी मनमुटाव हुआ हो, कोई बुरा व्यवहार हो गया हो, उन पुराने खातों को समाप्त करें पुरानी बातों को समाप्त करें और आज से नए खाते का आरंभ करें अर्थात् नवीनता अपने जीवन के अंदर ले आएं। इसलिए व्यापारी लोग जब नई बहीखाता आरंभ करते हैं तो उस पर शुभ-लाभ जरूर लिखते हैं। शुभ लाभ तो तभी होगा जब लाभ का उल्टा करेंगे अर्थात भला करेंगे। जब हम सबका भला चाहते हैं, सबके प्रति शुभ भावनाएं और शुभकामनाएं मन में प्रवाहित होने देते हैं तब ही तो शुभ-लाभ की प्राप्ति होगी। फिर स्वास्तिका निकालते हैं इसको बनाकर श्रीगणेश करते हैं। स्वास्तिका शब्द संस्कृत के सु अस्ति शब्द से आया है। ‘सु माना शुभ और ‘अस्ति` माना जो सदा ही शुभ है। मतलब जीवन के अंदर हर एक पल जो कुछ भी होता है, इसी दृष्टिकोण से हम देखे हैं कि यह बात जो हुई हमें क्या चीज प्राप्त हुई। हमारे जीवन के अंदर कौन सा अनुभव को प्राप्त किया। वास्तव में देखा जाए तो बुरा कुछ भी होता है ही नहीं। कुछ भी परिस्थिति कोई भी समस्याए कोई और बात आती है तो हमें जीवन में अनुभवी बना कर जाती है। अर्थात् कुछ न कुछ लेकर आती है। शुभ-लाभ ही तो हुआ जो हमें अनेक प्रकार के विघ्नों से मुक्त करते हैं। जब व्यक्ति अनुभवी हो जाता है तब अनेक प्रकार की आने वाली परिस्थितियों में सावधान हो जाता। अपने अनुभव के आधार से उस मैच्योरिटी से चलता है। तब विघ्नों को पहले ही समाप्त कर देता है।
सदा परमात्मा की याद में ही बनाएं भोजन
दीवाली का त्यौहार मिठाइयां बनाना, खाना और प्यार से खिलाना, भले कोई चाहता है हमारा तबीयत ठीक नहीं मैं मिठाई नहीं खाऊंगा लेकिन हम उसे कहते हैं अरे यह तो दीवाली है। दीपावली पर तो मिठाई खाना शगुन है इसलिए मिठाई जरूर खानी है इस तरह हर एक त्यौहार पर मिठाई खाना शगुन क्यों है। मिठाई अर्थात् मुख मीठा। जो बोल हमारे मुख से निकले वह दूसरे को सुख दें। वह बोल मिठास और सम्मान से भरा हो। कोई गलती भी करे उसको भी शिक्षा देनी है, लेकिन मिठास से देनी है लेकिन कई बार अगर हम ध्यान न रखें तब अच्छी बात भी बोलने के दौरान उसमें टोंट होता है। हमें लगता है हमने तो अच्छे से बात की लेकिन उसके अंदर एक भी कोई नेगेटिव बात हो तो दूसरे तक वह नेगेटिव एनर्जी पहुंच जाती है। उसको दर्द देती है, इसलिए हमेशा मीठे बोल और सम्मान भरा बोल बोलना चाहिए। खुद भी बोलें जिससे हमारा मन मीठा हो जाएगा और जिसके साथ वह बोल बोलेंगे उनका भी मन और मुख हमेशा मीठा रहेगा। त्यौहार में बड़े प्यार से मिठाई बनाते हैं। पहले मिठाई खरीदने का रिवाज नहीं था मिठाई बनाने का संस्कार था। मतलब जो हम घर में बना रहे हैं वह प्रसाद बना रहे हैं तो मिठाई खुद बनाना और परमात्मा की याद में बनाना और खाना है। ताकि वह बनाते समय परमात्मा की याद की शक्ति, शांति की शक्ति, दुआओं की शक्ति, प्यार की शक्ति उस मिठाई के कण-कण में रहे। तो वह सिर्फ मिठाई में नहीं हर रोज के भोजन में होना चाहिए। भोजन परमात्मा की याद में बनाया जाए और फिर भोग लगाकर परमात्मा की याद में खाया जाए क्योंकि वह प्रसाद बना है। परमात्मा को भोग लगाकर उसमें परमात्म वाइब्रेशन को इस तरह भर दें कि जो इस मिठाइयों और भोजन का थोड़ा निवाला भी खा ले तो उसे खाते ही परमात्मा की शक्ति, परमात्मा का प्यार और परमात्मा के साथ कनेक्शन जुड़ जाए। तब जिसका कनेक्शन परमात्मा से जुड़ जाएगा तब तो उसका जीवन हमेशा मीठा और खुशनुमा रहेगा।
सभी को खिलाएं दिलखुश मिठाई…
दी पावली रावण के हार का उत्सव है। आइए इस दिवाली पर अपने अंदर के रावण को खत्म करते हैं। सिर्फ चार दिन की दीवाली नहीं जीवन ही दीवाली है। मिट्टी के इस शरीर में मैं पवित्र आत्मा हूं। यह दिया जब हम जलाते हैं तब अहंकार का अंधेरा खत्म हो जाता है। शांति का धर्म और प्यार की भाषा सम्मान की सत्यता और एकता की संस्कृति ऐसी दुनिया हम सबको मिलकर बनानी है। इस सृष्टि पर हमें दीवाली लानी है। पुरानी बातें दबी पड़ी हैं। गलतफहमी की धूल चढ़ी है। अपमान के दाग लगे हुए हैं। यादें जिनकी अब जरूरत नहीं है। आइए, घर के साथ-साथ मन के कोने-कोने में सफाई करते हैं। नए कपड़े, नए बर्तन, दीवाली नवीनता का समय है। जीवन को शुद्ध बनाने के लिए नई सोच, नया व्यवहार, एक नया संस्कार अपनाते हैं। दीवाली पर हम सबको बहुत सुंदर तोहफा देना चाहते हैं- मेवा, चॉकलेट, मिठाई। इस दीवाली रिश्तों में मिठास भरते हैं। मीठे बोल, प्यार भरे बोल, सम्मान भरे बोल, उन्हें और हमें दोनों को खुशी देते हैं। आइए सबको दिलखुश मिठाई खिलाते हैं।
ज्ञान, चरित्र, श्रेष्ठ संस्कार, सद्गुणों रूपी धन का भी संचय करें…
दी वाली पर सभी धन का आह्नान करते हैं अर्थात् श्रीलक्ष्मी जी का आह्नान करते हैं। धन की पूजा करते हुए वास्तव में हम अपने जीवन के अंदरशुभ भावनाएं और शुभकामनाएं को प्रवाहित करते हैं। तभी अपने संस्कारों में श्रेष्ठ लक्षणों अर्थात् श्रीलक्ष्मी जी का आह्नान करते हैं। तब घर-घर के अंदर दीपक जग जाता है अर्थात जब हम श्रीलक्ष्मी जी का आह्नान करते हैं तो आत्मिक ज्योत जगाते हैं। आत्मिक ज्योत का भाव है जब आत्मा की ज्योति जलती है, तब उसके जीवन में अनेक प्रकार का धन जैसे छलकने लगता है। ज्ञान धन, सद्गुणों का धन, श्रेष्ठ चरित्र का धन, श्रेष्ठ संस्कारों का धन, क्योंकि आज संसार में इस बातों का अभाव है, सिर्फ धन का भाव नहीं है। अर्थात मनुष्य जीवन के अंदर ज्ञान, चरित्र, श्रेष्ठ संस्कार, सद्गुणों का अभाव है इस वास्तविक धन का अभाव है जिसको अपने जीवन में आह्नान करते हुए जीवन को सजाएं। इसलिए दीपावली के दिन लोग नए वस्त्र को धारण करते हैं, नवीनता को अपनाते हैं अर्थात् अपने जीवन के अंदर इस तरह की नवीनता को अपनाते हुए श्रेष्ठ दीपावली जरूर मनाना है।