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दिव्यता-पवित्रता का ‘जागरण’ - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
दिव्यता-पवित्रता का ‘जागरण’

दिव्यता-पवित्रता का ‘जागरण’

सच क्या है

बीके पुष्पेन्द्र संयुक्त संपादक, शिव आमंत्रण्

नवरात्र पर्व। नवरात्र अर्थात् नव+रात्रि। नव से आशय नई, नवीन, मंगलकारी शुरुआत। रात्रि से आशय अंधकार, अज्ञान। नवरात्र सिखाता है कि जीवन में छाई अज्ञान-अंधकार और आसुरीयता रूपी रात्रि को सदा-सदा के लिए खत्म कर नव शुरुआत की जाए। मन के किसी कोने में छिपे आसुरीयता रूपी विकारों (द्वेष, ईष्र्या, परचिंतन, बदले की भावना, हीनभावना), असुरों को खत्म किया जाए।

नवरात्र महादुर्गा के नौ स्वरूपों के दर्शन, पूजन और गायन का त्योहार मात्र ही नहीं वरन् इन स्वरूपों में निहित ज्ञान, विशेषता, दिव्यता, पवित्रता, मानवीय संवेदना, एकता, भाईचारा और सद्भावना को एक सूत्र में पिरोने का आध्यात्मिक उत्सव है। यह उत्सव है दिव्यता और पवित्रता के आह्नान का। महाशक्ति (परमपिता शिव परमात्मा) से शक्ति लेकर आत्मा का अष्ट शक्तियों से शृंगार का। उत्सव है अपने मन का दीया दिव्य ज्ञान से आलोकित कर दूसरों को प्रकाशित करने का। उत्सव है श्रेष्ठ, सकारात्मक और रचनात्मक विचारों का सृजन कर उनकी अखंड ज्योत जलाने का। पुराणों के अनुसार आदि शक्ति ने पवित्रता के बल से कामांध असुरों का विनाश किया था। जैसे योगेश्वर शिव ने योगाग्नि से कामबाणधारी कामदेव के भस्म किया। इसका भावार्थ यही है कि प्रबल योग, तप से माता पार्वती ने सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव को पति परमेश्वर के रूप में पाया। यानी परमात्मा के समस्त दिव्य गुण, ज्ञान और पवित्र शक्तियों की अधिकारी बनीं। साथ ही समाने की शक्ति, सहन करने की शक्ति, परखने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, सहयोग करने की शक्ति, विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति और समेटने की शक्ति इन अष्ट शक्तियों का प्रतीक बन अष्ट भुजाधारी दुर्गा कहलाईं। शक्तियों ने भी महाशक्ति की साधना और आराधना के तप से खुद को शक्तियों से भरपूर किया। महादेवी मां दुर्गा साधु प्रवृत्ति वालों के लिए जहां ज्योति स्वरूपा सौम्या हैं तो बुरी वृत्ति, आसुरी वृत्ति वालों के लिए ज्योति स्वरूपा रौद्ररूपा। जिनके तप और बल के आगे आसुरीयता का सर्वनाश हो जाता है।

मां भगवती सर्व प्राणियों में शुद्ध चेतना, स्मृति, बुद्धि, वृत्ति, सद्ज्ञान, शांति, श्रद्धा, शक्ति, दया, क्षमा आदि की प्रेरक हैं। मनुष्यों में सद्ज्ञान विकसित करने में वह सरस्वती हैं। सुख- शांति, संतोष, समृद्धि देने वाली लक्ष्मी हैं। आसुरी वृत्ति या दुर्गुणों का संहार करने वाली दुर्गा और काली हैं। नवरात्र पर मां भवानी की कृपा पाने के लिए उनके बाह्य स्वरूपों का दर्शन, महिमा या उपासना पर्याप्त नहीं है। उनके सत्य स्वरूपों का दर्शन ज्ञान भी जरूरी है। उन स्वरूपों में रचे-बसे महान ज्ञान, गुण और अष्ट शक्तियों को धारण करना आवश्यक है।

मन को मोहित करती है दिव्यता: दिव्यता की आभा से आलोकित आत्मा का दिव्य स्वरूप हर मन को बरबस ही मोहित कर लेता है। आत्मा के त्याग-तपस्या और साधना के परिणामस्वरूप दिव्यता का प्रकाश मुखमंडल का शृंगारित होता है। आत्मा दैवी गुण और विशेषताओं से जितना भरपूर और संपन्न होगी, मुखमंडन दिव्यता रूपी आभा से उतना ही सुशोभित करेगा। दिव्यता स्वत: ही ईश्वरीय प्रेम, अनुराग और साधना से आत्मा में निहित हो जाती है।

पवित्रता हमें पूजनीय और वंदनीय बनाती है: सबसे बड़ा बल पवित्रता का बल है। देवी-देवताओं की महिमा और गुणगान पवित्र के कारण ही है। पवित्रता के बल के कारण ही आत्मा की रिद्धी-सिद्धी गायन योग्य होती है। कन्या को सभी देवी, लक्ष्मी का स्वरूप मानते हैं लेकिन विवाह के पहले जहां सभी उसके आगे शीश नवाते हैं वहीं विवाह के बाद वह सभी के आगे शीश नवाने लगती है। मतलब कन्या का गायन पवित्रता के बल के कारण ही होता है। हर नारी शक्ति स्वरूपा है। आत्मा के अंदर अष्ट शक्तियां निहित हैं, जरूरत है तो उन्हें पहचानकर परमात्मा से शक्ति लेकर पुन: बल भरने की। परमात्मा आज हमें अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हमारे दर पर आए हैं। जरूरत है तो हमें अपने दिव्य चछुओं को खोलकर उन्हें जानने, पहचानने और मानने की।

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