शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। जब कोई बच्चा सभ्यता, शुचिता, शालीनता और शिष्टाचारपूर्वक व्यवहार करता है तो हमारे मुख से बरबस ही निकल आता है कि देखो! बच्चे के कितने अच्छे संस्कार (आदत) हैं। जीवन चक्र में संस्कार, सृजन की वह प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है। आत्मा कुछ संस्कार अपने साथ पुनर्जन्म के लेकर आती है और कुछ संस्कारों का सृजन बच्चे के जन्म के साथ परिवार, शिक्षा, विचारधारा, वातावरण, सभ्यता, संस्कृति के आधार पर होता है। नव संस्कारों का सृजन हमारे हाथ में होता है। विचारों की पहरेदारी, संयम, सतर्कता और साधना से संस्कारों को दिव्य, श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। ऐसे दिव्य संस्कारों से युक्त मनुष्य ही देवात्मा, महात्मा और दिव्य पुरुष बनने की यात्रा को पूर्ण करती है। हम रोजाना की जिंदगी में कुछ आसान तरीके अपनाकर नव संस्कारों का सृजन कर सकते हैं, जो नए साल में आपके लिए नवाचार के साथ नई उपलब्धियों की ओर ले जाएंगे।
ऐसे नव संस्कार जीवन का बनेंगे अंग संकल्प: हमारी दैनिक जीवन से जुड़ी जो आदतें हैं उनकी शुरुआत सबसे पहले मन की धरणी में अंकुरण के साथ हुई थी। किसी विचार को बार-बार किया जाए, दोहराया जाए या समय-शक्ति रूपी खाद-पानी देकर सींचा जाए तो वह एक दिन पेड़ का रूप ले लेता है, जिसे उखाड़ना कई बार हमारी क्षमता से परे हो जाता है। जैसे- जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण, हीनभावना, निराशा, तनाव, चिंता, दु:ख और दर्द। ये लक्षण तभी उभरकर आते हैं जब वह मन के आकाश में अपना घर बना चुके होते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि मन रूपी मंदिर का शृंगार हम चुने हुए विचारों से ही करें। नव संस्कारों के सृजन के लिए जरूरी है कि मन में आने वाले एक-एक विचार की पहरेदारी की जाए। उनका चयन कर प्रवेश दिया जाए और उनमें श्रेष्ठ का चयन कर प्राथमिकता दी जाए। यदि हम अपने विचारों के प्रति सतर्क और जागरूक हैं तो उन पर अमल करना आसान हो जाता है।
संयम: किसी भी बड़े कार्य, महान कार्य के लिए संयम (धैर्य) होना पहली शर्त है। बिना धैर्य के कठिन और बड़े लक्ष्य को पाना आसान नहीं है। नव विचारों को अपने मन के सागर में रोजाना डालते जाएं। एक दिन आएगा जब ये सागर पवित्र, श्रेष्ठ और महान विचारों से सराबोर हो जाएगा। फिर जब इसमें हिलोरे आएंगी तो वह खुद के साथ दूसरों को भी शीतलता प्रदान करेंगी। क्योंकि सागर वही देता है जो उसमें भरा होता है। रोजाना कुछ न कुछ नव विचारों को संयम के साथ भरते चलें।
साधना: करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान… किसी भी कार्य को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए निरंतरता अर्थात् साधना जरूरी है। अभ्यास से कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाते है। नव संस्कारों के सृजन के लिए अभ्यास जरूरी है। इसकी साधना निरंतर बनाए रखें। संकल्प शक्ति, संयम के साथ साधना का जोड़ उत्प्रेरक का काम करता है।
शक्ति: श्रेष्ठ व सकारात्मक कार्यों को संयम पथ पर साधना के साथ करते हैं तो इससे जो आंतरिक संतुष्टी, संतोष मिलता है वह हमारी आत्मिक ऊर्जा को शक्ति प्रदान करता है। हमारा आत्मबल बढ़ाता है। आत्मबल बढ़ने से लक्ष्य को पाना आसान हो जाता है जो सफलता को निश्चित करता है।
समय: परिवर्तन सृष्टि का नियम है। श्रेष्ठ संकल्पों का मन में रोपा गया पौधा, संयम रूपी खाद और साधना रूपी पानी से समय के साथ बढ़ता जाता है और अंतत: अपनी पूर्णत: को पाता है। यही सिद्धांत जीवन में भी काम करता है। मन में शुभ संकल्पों का रोपा गया पौधा समय के साथ नव संस्कारों का सृजन कर देता है। संस्कारी व्यक्ति के सामने जीवन यात्रा में कितनी भी बाधाएं,
परेशानियां और समस्याएं क्यों न आएं पर वह अपने संस्कारों रूपी धरोहर से हर बाधा को पार कर लेता है। ऐसे व्यक्ति कालांतर में महात्मा-देवात्मा के स्वरूप की ओर बढ़ते हैं।
सार: एक-एक संकल्प अमूल्य है, जो आपका भविष्य और भाग्य तय करता है। संकल्पों को संवारिए, भविष्य अपने आप संवर जाएगा। इसलिए महत्वपूर्ण है कि हम जो संकल्प कर रहे हैं पहले उनकी क्वालिटी को चेक करें। क्योंकि आज हम जो हैं और जिस स्थिति में हैं उसमें हमारे संकल्पों, विचारों की अहम भूमिका है। संकल्प ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।