सभी आध्यात्मिक जगत की सबसे बेहतरीन ख़बरें
ब्रेकिंग
थॉट लैब से कर रहे सकारात्मक संकल्पों का सृजन नकारात्मक विचारों से मन की सुरक्षा करना बहुत जरूरी: बीके सुदेश दीदी यहां हृदय रोगियों को कहा जाता है दिलवाले आध्यात्मिक सशक्तिकरण द्वारा स्वच्छ और स्वस्थ समाज थीम पर होंगे आयोजन ब्रह्माकुमारीज संस्था के अंतराष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू दादी को डॉ अब्दुल कलाम वल्र्ड पीस तथा महाकरूणा अवार्ड का अवार्ड एक-दूसरे को लगाएं प्रेम, खुशी, शांति और आनंद का रंग: राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी
हमें सतयुगी रास्ते पर चलना ही होगा……….. - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
हमें सतयुगी रास्ते पर चलना ही होगा………..

हमें सतयुगी रास्ते पर चलना ही होगा………..

जीवन-प्रबंधन
  • अगर हम पुराने तरीके से सोचते रहें, बोलते रहें, करते रहें तो खुशी, सेहत और सुंदर रिश्ते संभव नहीं है

शिव आमंत्रण, आबू रोड। आने वाले समय में दु:ख और बढ़ने वाला है। लोग झूठ बोलते हैं, गलतियां करते हैं, धोखा देते हैं, कहना नहीं मानते, वो कलियुग है। उसके बीच रहते हुए मैं आत्मा सतयुग बना रही हूं। देखें अपने आपको मैं आत्मा सतयुग बना रही हूं। मैं आत्मा अपनी बैटरी को चार्ज कर रही हूं। खुद से पूछे मैं आत्मा कैसी हूं? मेरी हर सोच, मेरा बात करने का तरीका, मेरा व्यवहार कैसा है? कुछ ऐसे लोगों को अपनी आंखों के सामने लेकर आएं जो हमारे अनुसार नहीं हैं। जिनके व्यवहार के संग में आकर हम भी कलियुग वाले हो जाते हैं। वो तो कलियुग में हैं कलियुग वाला व्यवहार करेंगे ही हमारे सामने। जो उनके लिए सही वो सही है। अब देखें अपने आपको- मैं आत्मा सतयुग में हूं। मेरा युग और उनका युग ही अलग है। मेरे संस्कार और उनके संस्कार ही अलग हैं। हमें सतयुग बनाना है। अगर हमें सतयुग बनाना है तो कलियुग के लोगों से बिल्कुल डिफरेंट होना पड़ेगा। जब आपके आस-पास के लोग फोटो खींच रहें हो तो उस क्षण हम क्या करेंगे? मोबाइल जेब में रहने देंगे। लेकिन ये भी खयाल करना है कि हमें सतयुग बनाना है। एक तो हमें कलियुग की फोटो की जरूरत नहीं है। दूसरी उस दृश्य को हम इस तरह देख रहें हैं कि वह दृश्य सतयुग वाला हो जाए। फिर वो लोग उस दृश्य का फोटो खींचते रहें। हम उस सतयुगी दृश्य को बनाएंगे। वो लोग उस दृश्य का फोटो खींचकर खुशी मनाएंगे। अब हमारा तो रोल चैंज हो गया। अगर हमें सतयुग बनाना है तो दो बातें हैं- एक है सतयुग में जाना और दूसरा है सतयुग हमें बनाना है। दोनों बातों में बहुत फर्क है।
कलियुग में सतयुगी बनकर रहना ही राजयोग:-
जब हम पीसफुल, नि:स्वार्थ, प्रेममयी, शुद्ध आत्मा, स्वभाव संस्कार से बिल्कुल स्टेबल होंगे तो सतयुग महसूस होगा। अगर सामने वाला कलियुग में है तो कलियुग में गुस्सा करना, झूठ बोलना, धोखा देना एलाउ है। लेकिन सतयुग में गुस्सा करना नॉट एलाउड है। सतयुग में बुरा महसूस करना, रोना, उल्टा जवाब देना नॉट एलाउड है। अब ये कलियुग और सतयुग इकट्ठे रह पाएंगे? सतयुगी संस्कार लेकर सतयुग में रहना ये तो कोई भी कर सकता है। हमारे साथ सब प्यार से बात करें तब हम भी प्यार से बात करें, तो उसमें क्या ताकत चाहिए? वो तो कोई भी कर सकता है। सतयुग में सतयुगी जैसा रहना सबसे आसान है। कलियुग में कलयुगी जैसे रहना बहुत आसान है। कोई भी कर सकता है। लेकिन कलियुग में सतयुगी होकर रहना वो राजयोग मेडिटेशन है। मान लिया कि आपके आसपास लोग गलत प्रकार का भोजन खा रहें हैं। कोई जंक खा रहा, कोई सड़क पर बैठ कर पानी पुरी खा रहा है, कोई फ्राइड खा रहा, कोई सड़क पर बैठ कर नॉनवेज खा रहा है। आपको पता लग गया ये सब गलत भोजन है लेकिन २५-३० साल पहले आप भी वही खाना खा रहे थे। अब एक दिन जागृति आई कि मुझे ये सब भोजन नहीं चाहिए। क्योंकि मेरा शारीरिक-मानसिक रिजल्ट ठीक नहीं रहा तो मुझे आज से हेल्थ चाहिए। तो हमने निर्णय ले लिया मुझे नहीं खाना। तो आसपास के लोग थोड़ी ही खाना बंद कर देंगे? क्योंकि उन्होंने निर्णय नहीं लिया है। निर्णय किसने लिया है? हमने लिया है। जिस दिन हमने निर्णय लिया आसपास के लोग कुछ और खा रहें हों और मुझे कुछ और खाना है ये संभव है। हां ये आसान है ऐसा संकल्प ले लेंगे तो हो जाएगा। ये बिल्कुल सहज है। ऐसे समय पर हम आसपास के लोगों से ज्यादा उमीदें नहीं करने हैं। लोग तो हमें वही खिलाने की कोशिश करेंगे जो वो खा रहे हैं। जब कई बार हम नहीं खाएंगे तो वो हमारा मजाक भी उड़ाएंगे, चिढ़ाएंगे भी खा लो-खा लो थोड़ा सा। लेकिन जिसने निर्णय ले लिया वो आत्मा क्या करेगी? अगर हमारे पास वो पावर है ये निर्णय लेने की तो मुझे कोई प्रलोभित नहीं कर सकता। भले मेरे आसपास चारों तरफ लोग अनहेल्दी खाना खा रहे हों, पी रहा हो। अगर कोई कुछ भी खा पी रहा है और हम नहीं खाएंगे ये तो कर सकते हैं ना। कोई कुछ भी बोल रहा है और हम वैसा नहीं बोलेंगे। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो क्यों नहीं कर सकते? सिर्फ हमें अपने आप से पूछकर ये निर्णय लेना है। अगर निर्णय लेते हुए गलती से हमने अपने मन को कह दिया इतना सारा पढ़ने के बाद भी ये करना तो आसान नहीं है। तो मन क्या करेगा? फिर मन ये कहेगा आश्रम में बैठकर ये सब बातें करना बहुत आसान होता है। इतना समझने के बाद भी ये सब होने वाली नहीं हैं। फिर मन ये कहेगा ये सब बात इन बहनों को क्या पता? इन्होंने बच्चे पाले कभी? इनको मालूम है बच्चों को संभालने के लिए आज क्या-क्या करना पड़ता है? जैसे ही मन ने ऐसे वार्तालाप करना शुरू की तो हमने अपने आपको क्या छूट दे दी? छोड़ दो उनको बनाने दो सतयुग, जब सतयुग बन जाएगा तो हम उसमें चले जाएंगे।

हमें अपनी क्वालिटी ऑफ लाइफ सुधारना होगी:- महत्वपूर्ण यह है कि इस कलियुग को कैसे पार करना है? दिन प्रतिदिन हमारी क्वालिटी ऑफ लाइफ क्या होती जा रही है? बाहर साधनों के हिसाब से क्वालिटीज ऑफ लाइफ तो बहुत अच्छी होती जा रही है। लेकिन पर्सनल क्वालिटी ऑफ लाइफ बुरी और छोटी होती जा रही है। बुरी क्यों होती जा रही है? क्योंकि हम उसे होने देते हैं। सब लोग गुस्सा करते हैं तो गुस्सा तो करना पड़ता है। कलियुग के लोगों को नकल कर-कर के स्वत: हम लोग भी कलयुगी हो जाएंगे। कलियुग कैसे बनता है? कुछ लोग कलियुगी संस्कार क्रियेट करते हैं। बाकी सबलोग उनको नकल करते हैं। एक से होती है कलियुग की शुरुआत मान लिया आज तलाक आम बात हो गया है, लेकिन कभी न कभी किसी एक ने ही शुरुआत की होगी। सबने इकट्ठे तो नहीं शुरू किया होगा। किसी एक ने शुरू किया होगा।
जिस समय पहले एक ने जब तलाक दिया होगा तो उस समय समाज ने क्या कहा होगा? ऐसा कैसे कर सकते हैं? और ये कितने साल पुरानी बात होगी? लगभग ५० साल। ५० साल पहले हमारी मान्यता क्या थी? शादी हो गई या अब वहीं रहना है? चाहे कैसी भी परिस्थितियां हों। ऐसा थोड़ी ही है कि उससे पहले चुनौतियां नहीं थीं। बहुत चुनौतियां थीं बहुत परिस्थितियां थीं। हर तरह के संस्कार थे लेकिन यहां दिमाग में मान्यता थी कि शादी हो गई अब यहां ही रहना है। माता-पिता बेटी को क्या कह के भेजते थे, अब वहीं रहना है। आज क्या बोलते हैं? मुश्किल आ रही है तो वापस आ जाओ। तंग कर रहे हैं तो वापस आ जाओ। तो ये मान्यता क्यों चेंज हुई? किसी एक ने किया, दो ने किया, पांच ने किया बाकी ने नकल किया और धीरे-धीरे समाज ने क्या कहा? ये तो आम बात है। जैसे ही समाज ने इस बात को मुहर लगा दी ये सब अब आम बात है फिर बहुतों ने किया। हमारे दादा-दादी की जो पीढ़ियां हैं उस समय बाहर भोजन नहीं करते थे। ऐसी कोई धारणा नहीं थी। कोई उस समय कहता बाहर खाना खाने जाना है तो अजीब लगता था। बाहर खाना खाने कौन जाता है? आज के बच्चे कहते हैं घर कौन खाना खाएगा? ये सारा खेल इस ५०-१०० सालों में बहुत कुछ हमने बदल दिया। एक ने किया, दो ने किया, पांच ने किया बाकी ने नकल किया। कलियुग इसी तरह नीचे गिरता गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *