शिव आमंत्रण,आबू रोड/राजस्थान। भारत में परम्परागत तरीके से नवरात्र मनाया जाता है। नवरात्र का भावनात्मक अर्थ है दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा-अर्चना और नवरात्र का आध्यात्मि अर्थ है नव या नए युग में प्रवेश करने से ठीक पहले की ऐसी घोर अंधियारी रात्रि, जिसमें शिव, अवतरण लेकर मनुष्यात्माओं के पतित अवचेतन मन (कुसंस्कार) का ज्ञान अमृत द्वारा तरण (उद्धार) कर देते हैं। अवतरण अर्थात् अवचेतन का तरण। ऐसी तरित-आत्माएं फिर चैतन्य देवियों के रूप में प्रत्यक्ष हो कर कलियुगी मनुष्यों का उद्धार करती हैं। इस प्रकार पहले शिवरात्रि होती है, फिर नवरात्रि और फिर नवयुग आता है। महाविनाश से यह वसुन्धरा जलमग्न हो कर कल्पांत में अद्भुत स्नान करती है, फिर स्वच्छ हो कर नौ लाख देवी-देवताओं के रूप में नौलखा हार धारण करती है।
1) नवरात्रि का पहला दिन दुर्गा देवी के रूप में मन जाता है । वह ” शैलपुत्री ” के नाम से पूजी जाती है। बताया जाता है कि यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री थी । इसलिए पवर्त की पुत्री ” पार्वती या शैलपुत्री ” के नाम से शंकर की पत्नी बनी । दुर्गा को शिव-शक्ति कहा जाता है। हाथ में माला भी दिखाते हैं। माला परमात्मा के याद का प्रतीक है। जब परमात्मा को याद करेंगे तो जीवन में सामना करने की शक्ति, निर्णय करने, सहन करने, सहयोग करने इत्यादि अष्ट शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसलिए दुर्गा को अष्ट भुजा दिखाते हैं।
2) नवरात्र का दूसरा दिन देवी ” ब्रह्मचारिणी ” का है, जिसका अर्थ है- तप का आचरण करने वालीं। तप का आधार पवित्रता होता है, जिसके लिए जीवन में ब्रह्मचर्य की धारणा करना आवश्यक है। इस देवी के दाहिने हाथ में जप करने की माला और बाएं हाथ में कमण्डल दिखाया जाता है।
3) नवरात्र के तीसरे दिन देवी ” चंद्रघण्टा ” के रूप में पूजा की जाती है। पुराणों की मान्यता है कि असुरों के प्रभाव से देवता काफ़ी दीन-हीन तथा दुःखी हो गए, तब देवी की आराधना करने लगे। फलस्वरूप देवी ” चंद्रघण् ” प्रकट होकर असुरों का संहार करके देवताओं को संकट से मुक्त किया। इस देवी के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्द्धचंद्र, १० हाथों में खड्ग, शस्त्र, बाण इत्यादि धारण किये दिखाये जाते हैं। चंद्रघण्टा देवी की सवारी शक्ति का प्रतीक सिंह है जिसका अर्थ है- शक्तियां (देवियां) अष्ट शक्तियों के आधार से शासन करती हैं।
4) नवरात्र के चौथे दिन देवी ” कुष्माण्ड ” के रूप में पूजा की जाती है। बताया जाता है कि यह खून पीने वाली देवी है। कलि पुराण में देवी की पूजा में पशु बलि का विधान है। इसी मान्यता के आधार पर देवियों के स्थान पर बलि-प्रथा आज भी प्रचलित है। वास्तव में, हमारे अन्दर जो भी विकारी स्वभाव और संस्कार है उस पर विकराल रूप धारण करके अर्थात् दृढ़ प्रतिज्ञा करके मुक्ति पाना है।
5) नवरात्र के पाँचवें दिन देवी ” स्कन्द माता ” के रूप में पूजा की जाती है। कहते हैं कि यह ज्ञान देने वाली देवी है। इनकी पूजा करने से ही मनुष्य ज्ञानी बनता है। यह भी बताया गया है कि स्कन्द माता की पूजा ब्रह्मा,विष्णु, शंकर समेत यक्ष, किन्नरों और दैत्यों ने भी की है।
6) नवरात्र के छठवें दिन देवी ” कात्यायनी ” के रूप में पूजा की जाती है। ” कत ” एक प्रसिद्ध महर्षि बताये जाते हैं जिनके पुत्र ” कात्य ” ऋषि थे। इनके ही गोत्र से महर्षि ” कात्यायन ” उत्पन्न हुआ। महिषासुर दानव का वध जिस देवी ने किया था, उस देवी का प्रथम पूजन महर्षि कात्यायन ने किया था और इस कारण ही वह देवी कात्यायनी कहलाई। इनका वाहन सिंह दिखाया जाता है।
7) नवरात्र के सातवें दिन देवी ” कालरात्रि ” के रूप में पूजा की जाती है। इनके शरीर का रंग काला और सिर के बाल रौद्र रूप में बिखरे हुए दिखाये जाते हैं। इनका वाहन गधे को दिखाया गया है जिसका अर्थ है कि कलियुग में एक सामान्य गृहस्थ की हालत प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए गधे जैसी हो जाती है और जब वह गधा अपने मन -बुद्धि में कालरात्रि जैसी देवी को बैठा लेता है तो देवी उस गृहस्थ को परिस्थितियों से पार निकाल ले जाती है।
8) नवरात्र के आठवें दिन देवी ” महागौरी ” के रूप में पूजा की जाती है। कहते हैं कि कन्या रूप में यह बिल्कुल काली थी। शंकर से शादी करने हेतु अपने गौरवर्ण के लिए ब्रह्मा की पूजा की, तब ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उसे काली से गौरी बना दिया। इनका वाहन वृषभ बैल दिखाया जाता है जो कि धर्म का प्रतीक है।
9) नवरात्र के नौवें दिन देवी ” सिद्धिदायी ” के रूप में पूजा की जाती है। कहा गया है कि यह सिद्धिदायी वह शक्ति है जो विश्व का कल्याण करती है। जगत का कष्ट दूर कर अपने भक्तजनों को मोक्ष प्रदान करती है।
इस तरह नौ देवियों की आध्यात्मिक रहस्यों को धारण करना ही नवरात्रि पर्व मानना है। वर्तमान समय स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा इस कलियुग के घोर अंधकार में माताओ -कन्याओं द्वारा सभी को ज्ञान देकर पिर से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। परमात्मा द्वारा दिए गए इस ज्ञान को धारण कर अब हम ऐसी नवरात्रि मनायें जो अपने अंदर रावण अर्थात् विकार है, वह खत्म हो जाये, मर जाये। यही है सच्चा-सच्चा दशहरा मानना। ऐसा दशहरा मनायें ,तब ही दीवाली अर्थात् भविष्य में आने वाली सतयुगी दुनिया के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। इसलिए हे आत्माओ ! अब जागो, केवल नवरात्रि का जागरण ही नहीं करो बल्कि इस अज्ञान नींद से भी जागो। यही सच्ची-सच्ची नवरात्रि मानना और जागरण करना है । ऐसी नवरात्रि की आप सभी को मुबारक हो, मुबारक हो , मुबारक ।