जीवन की इस यात्रा को सुखदाई आनंद से भरपूर करने के लिए श्रेष्ठकर्म करने की आवश्यकता है। पहले एक हंसी की बात बताऊं कि मैं बहुत समय पहले ऑस्ट्रेलिया गया था तो वहां रोज एक पब्लिक प्रोग्राम रखते थे सौ लोगों को बुलाते थे होटल्स में हॉल होते ही है सौ के बैठने के। तो मुझे रोज ही कहते थे 45 मिनट इस टॉपिक पर बोलना है और फिर प्रश्न उत्तर करना है 45 मिनट से ज्यादा नहीं। मैंने कहा क्योंकि मेडिकल साइंस की ये मान्यता है और हमारे देश में तो ज्यादा है कि मनुष्य के ब्रेन की शक्ति केवल 45 मिनट है बाकी ज्यादा बोलोगे तो सब ऊपर से जाएगा। मैनें कहा हमारे भारत वाले सारी सारी रात बैठकर भगवत कथा सुनते है, कितनी ताकत है ब्रेन में! सच में ताकत है। हम अपने ब्रेन का निर्माण खुद करते हंै मैं डॉक्टर नहीं हूं पर बहुत सारी चीजें जान गया हूं। आपको आत्म ज्ञान यहां मिला है थोड़ा। आत्मा की जितनी डिग्री और पावर होती है उसी अनुसार गर्भ में ब्रेन का निर्माण होता है, किसी का ब्रेन बहुत शक्तिशाली किसी का बहुत कमजोर, किसी के ब्रेन में कुछ कमी किसी के कुछ। हम अब अपने ब्रेन को भी बहुत पावरफुल बना सकते हैं और जीवन की इस यात्रा को बहुत सुंदर बना सकते है। जीवन की यात्रा में घर परिवार में रहते हुए जीवन का आनंद लिया जाए। जीवन में सुख, शांति, खुशी और प्रेम रहे इस सबकी मनुष्य को बहुत जरूरत है।
एक अंगुली दूसरे की ओर है तो बाकी किसकी ओर
मैं एक सुंदर बात बताना चाहता हूं कि उठे तो भी मुस्कुराते हुए, सोए तो भी मुस्कुराते हुए। ऐसा जीवन पसंद है? उठते हंै मुस्कुराते हुए या उठते ही सिर भारी व मन भारी, और सो लूं जरा। उठें भी मुस्कुराते हुए तो जीवन मुस्कुराहट से भर जाएगा, भाग्य मुस्कुराने लगेगा और जो भी हमें देखेगा वो भी मुस्कुराने लगेगा। आज बहुतों की जीवन की यात्रा भारी हो गयी है। किसने भारी की? हमने खुद या किसी और ने? मनुष्य दूसरों की ओर अंगुली उठाता रहता है, जबसे मेरी शादी हुई पति ऐसा मिला, जीवन नरक बना दिया मेरा। वह भूल जाता है कि एक उंगली हमारा दूसरे की ओर है तो बाकी किसकी ओर इशारा कर रही है? अपने को जो देख लें वही महान बनता है। जो सदा शिकायत करते हैं वो शिकायत ही करते रह जाते हैं, उनकी कोई सुनता भी नहीं कहते इनकी तो शिकायत की आदत पड़ गयी है। इसलिए मुस्कुराने का नाम ही जिंदगी है।
अभी से जितना पीछे जाएं समय और सुंदर था
जब हम इस संसार में आए तब सतयुगी देवी-देवता थे। हम सब जानते हैं कि आज से 50 साल पहले संसार थोड़ा अच्छा था, मनुष्य अच्छे और ईमानदार थे। उससे 100 साल पहले राज तो अंग्रेजों का था पर अच्छाई बहुत थी लोग संतुष्ट थे। उससे और पीछे चलो गुप्त काल के लिए भारत के स्वर्ण काल इतिहास में प्रसिद्ध हैं। भारत में ताले नहीं लगते थे, कोई रोता नहीं था, कोई भूखा नहीं था, चोरी नहीं थी कितना सुंदर समय था। अब हजार साल पहले चलो तो कैसा समय होगा अति सुंदर। हम सभी मनुष्य अभी जो यहां बैठे है देवी देवता थे। आप इस सत्य को जाने और स्वीकार करें। हम केवल अपने वर्तमान जीवन को देखते हंै ये संसार कैसा है, कितना पाप बढ़ गया, आंतकवाद बढ़ गया, अशांति हिंसा बढ़ गई लेकिन हम देव युग में थे।
देवत्व हमारे अंदर छुपा है, हमें उसको जगाना है…
देवी देवताओं की जो भारत में पूजा हो रही है ये और कुछ नहीं, बल्कि हम अपने पूर्वजों को सम्मान दे रहे हैं। जैसे हम अपने दादा-दादी का फोटो रख लेते हैं फूलमाला भी चढ़ा देते है, धीरे-धीरे यही बात पूजा में बदल गई। हमारा देश तो देव भूमि था। यहां देवी देवताओं का वास था और वो देवी देवता कौन थे? हम ही थे। इसलिए हमारे अंदर सम्पूर्ण देवत्व छुपा हुआ है। पहचाने सभी छुपे हुए देवत्व को। सब को अनुभव है आप कहीं झूठ बोल दो, कभी न कभी झूठ बोला जाता है तो कहीं न कहीं थोड़ी देर के बाद आपकी दिल खाने लगती है। बहुत कम लोग होंगे जो पाप करके खुशी मनाते हों, उनका मन रोता है गलत हो गया अब नहीं करेंगे। देवत्व हमारे अंदर छुपा हुआ है हमें उसको जगाना है। हम सभी के पास बहुत सुंदर बुद्धि है लेकिन वो सो गई है। उसके ऊपर कई परतें चढ़ गई है उन परतों को हमें उतारना है, जिससे हमारा जीवन बहुत सुखी हो जाएगा।