रायपुर, 02 सितम्बर: वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने कहा कि आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने का तरीका है मौन की शक्ति यानि साइलेन्स पावर को बढ़ाना। साइलेन्स का मतलब सिर्फ चुप रहना नहीं है। साइलेन्स का आशय है कि मन शान्त हो और मुख के साथ सारी कर्मेन्द्रियाँ भी शान्त रहें। यदि हम सचमुच मौन की गहराई में जाना चाहते हैं तो हमें व्यर्थ विचारों से बचना होगा। यदि सभी लोग मौन धारण कर लें तो दुनिया से सत्तर प्रतिशत झंझट समाप्त हो सकते हैं।
ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के रायपुर सेवाकेन्द्र द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिदिन शाम को प्रसारित होने वाले आनलाईन वेबसीरिज एक नई सोच की ओर में अपने विचार व्यक्त कर रही थीं। विषय था -शान्त और सुखमय जीवन जीने के लिए मौन की शक्ति।
उन्होंने आगे कहा कि जीवन की सबसे कीमती चीज है मौन रहना। किसी भी आविष्कार के पीछे मौन अथवा साईलेन्स की शक्ति ही होती है। आजकल तमाम तरह के भौतिक और आर्थिक उन्नति के बावजूद भी दिनों दिन लोगों के मन में चिन्ता, तनाव, भय, अशान्ति और असुरक्षा बढ़ती जा रही है। इन सबसे बचने के लिए आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता है। यह हमें आन्तरिक रूप से शक्तिशाली बनाएगी।
ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने कहा कि पहले जब किसी उद्योग में नौकरी के लिए बुलाया जाता था तो लोगों की बौद्घिक क्षमता को परखा जाता था। किन्तु जब वह फील्ड में अनेक लोगों के बीच जाता था तो उसे कर्मचारियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में कठिनाई होती थी। इसलिए फिर भावनात्मक स्तर को देखा जाने लगा। लेकिन तब भी जब कम्पनी ने देखा कि उसे अच्छा परिणाम नहीं मिल रहा है तो अब आध्यात्मिक शक्ति को देखा जाने लगा है। आध्यात्मिकता अर्थात दूसरों को सम्मान देना। उन्हें आगे बढ़ाना। आध्यात्मिकता हमें यह सिखाती है कि हम आपस में कैसे रहें? हमारे बोल और कर्म कैसे हों? जब बौद्घिक क्षमता, भावनात्मक स्तर और आध्यात्मिक शक्ति तीनों ठीक रहती हैं तब शत प्रतिशत परिणाम मिलते हैं।
उन्होंने बतलाया कि आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने का तरीका है मौन यानि साइलेन्स पावर को बढ़ाना। साइलेन्स का आशय है कि मन शान्त हो और मुख के साथ सारी कर्मेन्द्रियाँ भी शान्त रहें। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी मौन की शक्ति के आधार पर ही अंग्रेजों को देश से खदेडऩे में सफल हो सके। महान विचारक पास्कलन ने कहा कि यदि सभी लोग मौन हो जाएं तो दुनिया के सत्तर प्रतिशत झंझट समाप्त हो सकते हैं। मौन यदि जीवन की पाठशाला है तो वाणी उसकी रंगशाला है। मौन सिर्फ होठों का बन्द होना नहीं है अपितु हमारी कर्मेन्द्रियाँभी शान्त हो जाएं।
उन्होंने कहा कि यदि हम सचमुच मौन की गहराई में जाना चाहते हैं तो हमें व्यर्थ विचारों से बचना होगा। यह मौन की शक्ति हमारे अन्तर्मन में ही जमा होती है। हमारा मन एक कम्प्यूटर की तरह है। यह चौबीसों घण्टे कार्य करता है। विदेशों में अनिद्रा बहुत बड़ी बिमारी बन गई है। हम शरीर को तो बिस्तर पर सुला देते हैं किन्तु हमारा मन फिर भी सक्रिय बना रहता है। वह आराम नहीं करता है। हमें मन को प्रेरणा और शक्ति देने वाले विचारों को ही मन में स्थान देना चाहिए।
आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने के लिए व्यर्थ विचारों से बचना होगा… ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
September 7, 2020 छत्तीसगढ़ राज्य समाचारखबरें और भी