नारी तुम अबला नहीं सबला हो। तुम पांव की जूती नहीं सिर का ताज हो। तुम दीन-हीन नहीं शक्ति का अवतार हो। तुम नरक नहीं स्वर्ग का द्वार हो। तुम ही शक्ति हो। तुम्हारा जन्म महान कार्यों और जग के कल्याण के लिए हुआ है। हे! मातृ शक्ति अब जागो, उठो और विश्व परिवर्तन के कार्य में खुद को अर्पण कर जीवन सफल करो। तुम्हें ज्ञानगंगा बनकर विश्व को ज्ञान की शीतल धारा से सींचना है। शांतिदूत बनकर शांति का पैगाम देना है। हे! शक्ति की अवतार अब तुम्हें पवित्र बनकर नवयुग, पवित्र दुनिया बनानी है। जन-जन में आध्यात्म की ज्योत जगाकर नई दुनिया बनानी है।
इस दिव्य संकल्प के साथ वर्ष 1937 में दादा लेखराज ने विश्व शांति का शंखनाद किया। आध्यात्म क्रांति के भागीरथ बनने पर परमपिता परमात्मा ने दादा लेखराज को प्रजापिता ब्रह्मा नाम दिया। तब से इस आध्यात्म के महायज्ञ में उन्हें सभी ह्रश्वयार से ब्रह्मा बाबा पुकारते हैं। बाबा ने अपनी जीवन की जमापूंजी लगाकर ओम मंडली नाम से संस्था की नींव रखी। खुद पीछे रहकर उन्होंने इसकी बागडोर माताओं-बहनों को सौंपी। बाबा के त्याग-तपस्या और समर्पण का कही कमाल है कि वर्ष 1937 में रोपा गया आध्यात्म का पौधा आज वटवृक्ष बनकर अपनी शांति की छाया से जन-जन को शीतलता प्रदान कर रहा है। शांति के इस महायज्ञ में अनेक बाधाएं, समस्याओं का सामने करते हुए बाबा अपने विश्वास, निश्चय और संकल्प पर अडिग रहे। बाबा का पूरा जीवन ही एक किताब और दर्पण की तरह रहा। उन्होंने भारत की प्राचीन परंपरा आध्यात्म और राजयोग के महत्व को फिर से लोगों को बताकर दिव्य कर्म करने की प्रेरणा दी। बाबा की दूरदृष्टि और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का ही कमाल है कि आज आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन का संदेश विश्व के 140 देशों में फैल चुका है। इस ज्ञान और योग की शिक्षा से लाखों लोगों की जीवन जीने के लिए नई दिशा मिली है।
बाबा के जीवन से हमें सीख मिलती है कि जीवन में बड़ा लक्ष्य पाने के लिए बड़ी सोच और दूरदृष्टि होना जरूरी है। व्यक्ति महान सिर्फ कर्म से बनता है। यदि हमें कुछ सीख दूसरों को देना है तो पहले खुद जीवन में उतारना होगा। आध्यात्म को जीवन में शामिल किए बिना सच्ची सुख-शांति नहीं आ सकती है। बाबा के जीवन की एक सबसे प्रमुख विशेषता नहीं कि उन्होंने कभी भी संपर्क में आने वाले लोगों में अवगुण नहीं देखे। वह सदा सभी में कुछ न कुछ गुण बताकर उनकी महिमा करते और उन्हें सदा आगे बढऩे के लिए प्रेरित करते रहते। उन्हें खुद पर और परमात्मा पर इतना अटल निश्चय था कि कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन वह एक पल के लिए भी विचलित नहीं होते। बाबा सदा कहते थे करनकरावनहार करा रहा है। इतिहास में ऐसे विरले ही महान विभूतियों ने जन्म लिया है जिन्होंने समाज को नई राह दिखाकर और खुद पीछे रहकर दूसरों को आगे बढ़ाया है। यह सब ऊंची सोच, महान लक्ष्य से ही संभव है।

ब्रह्मा बाबा: आध्यात्म क्रांति के भागीरथ
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