लोधी रोड सेवाकेंद्र की संगोष्ठी मे व्यक्त विचार
शिव आमंत्रण, दिल्ली। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो मोबाइल, लैपटॉप जैसे गैजेट्स से घिरे रहने के चलते लोगों में एक तरह की बेचैनी है। इस वर्चुअल वल्र्ड के चलते हम अपनी आसपास की दुनिया से दूर हो रहे हैं। इसी समस्या का हल बनकर सामने आया है ‘डिजिटल डिटॉक्स’। टेक्नोलॉजी से घिरे युवाओं के लिए यह एक बेहद अहम थैरेपी बनती जा रही है। इसका मतलब है खुद को डिजिटल दुनिया से दूर करना। इसी के तहत दिल्ली के लोधी रोड सेवाकेंद्र द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथियों में सीएससी ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड में मुख्य परिचालन अधिकारी ऋषिकेश पाटनकर ने कहा, कि टीचिंग असिस्टंट ने एक बार अल्बर्ट आइनस्टाईन से पूछा ‘सर, आपने ये जो प्रश्र इस वर्ष बच्चों को दिये है वह सेम पिछले वर्ष के है।’ तो अल्बर्ट आइनस्टाइन ने बताया, ‘प्रश्र तो वही है लेकिन उत्तर बदल गये है।’ तो कहने का मतलब यह है कि ‘दुनिया तो वही है लेकिन हमे उत्तर खोजने है।’ डिजिटल दुनिया सबके लिए समस्या बन रही है।
दूरसंचार विभाग के पूर्व उपमहानिदेशक निर्मल कुमार जोशी ने कहा, हमे इनको यह कहना चाहिए कि साधना और साधन के बीच संतुलन बनाए। कोई आप को टूर करने की जरूरत नही है, कहां जाने की जरूरत नही है। अपने फैमिली के साथ समय बिताये, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।
संगोष्ठी में आगे स्थानीय सेवाकेंद्र प्रभारी बीके गिरिजा, प्रेरक वक्ता बीके पियूष एवं संस्थान के आईटी प्रभाग की जोनल कोऑर्डिनेटर बीके रमा ने भी विषय के तहत सभी ऑनलाइन प्रतिभागियों को मार्गदर्शित किया।
बीके गिरिजा ने कहा, कहते है कि तन से जितना घूमते है उतना हमारा तन तंदुरुस्त रहता है, लेकिन जितना हमारा मन स्थिर रहता है उतना तंदुरुस्त रहता है। तो आज हमे मन को तंदुरुस्त करने की जरूरत है।
बीके पियूष ने कहा, ब्रह्माकुमारीज में हमे बताया गया है कि हर घंटे हम अपने को डिटॉक्स कर ले। माने दुनिया की जो बाते है उनसे अपने को अलग कर लेंगे और वुई गो बियाँँड…
बीके रमा ने कहा, हमारी ये जो नेक है वह एक एंगल में बेंट है। हम मोबाइल देख रहे है या उसपे कुछ कर रहे है तो ये जो हॅबिट है उसके कारण इस नेक पे वही वेट मल्टिप्लाय हो जाता है। उसके कारण स्पाइन के बहुत सारे प्राब्लेम आ रहे है। तो उसका जितना जरूरी है उतना ही लाभ ले।