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काम जीते जगत् जीत… - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
काम जीते जगत् जीत…

काम जीते जगत् जीत…

आध्यात्मिक

इस दुनिया मे आजतक जितनी महान आत्माये होकर गई है उन्होने मुख्यता काम विकार पर जीत पाने का पुरुषार्थ किया है। विकारों के कारण ही इसको रात कहते है और रात मे अनेक आसुरी प्रवृत्तियों का वास होता है और भटकन होती है।
रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, योगिराज अरविंद आदि अनेक नाम आप ले सकते है। ब्रह्मचर्य जीवन मे बहुत मायने रखता है और उसी के आधार पर ही सब क्वालिफिकेशन आते है। इसलिए बोलते है कामजीते जगत्जीत। काम के पीछे क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकार आते है। अष्टांग योग मे प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए भी अत्यल्प काम का निर्देश है।
इन विकारों के कारण ही इस दुनिया में कोई चीज काम की नही रही है। इसी कारण कृष्ण को शामसुन्दर कहा जाता है। दुसरी बात श्रीकृष्ण भगवान नही है। कोई भी देहधारी भगवान नही हो सकता और सारी दुनिया की आत्माओं को पालना नही दे सकता। श्रीकृष्ण इस भूतलपर पूरे चौरासी जन्म लेनेवाली व्यक्ति है। इस भूतलपर चलनेवाला सृष्टि का चक्र पांच हजार बरस का है और पूरा चक्कर काटकर चौरासी जन्म लेकर वह आते है। चौरासी जन्मो मे उनके 21 जन्म पावन, आत्म भान वाले और 63 जन्म पतीत, देहभान वाले है। पहले 21 जन्म पावन होने कारण उधर वह सुंदर, सोला कला संपूर्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम है और आगे आनेवाले 63 जन्मों मे देहभान के कारण वह पतीत बनता जाता है इसलिए वहां शाम कहा जाता है। फिर कल्प पूरा होने के बाद परमात्मा शिव उनके तन में अवतरीत होते है, सर्व आत्मिक शक्तियों से संपन्न बनाकर पावन बनाते है और फिर वह सुंदर बनते है। सिर्फ श्रीकृष्ण नही उनके साथ लाखो आत्माओं को वह पावन बनाते है लेकिन हर एक मे उनका ज्ञान और शक्तियां धारण करने की क्षमता कम-जादा होने कारण पावन बनने का हर एक आत्मा का प्रमाण नंबरवार है। लोगों के अंदर यह भ्रम है, कि श्रीकृष्ण भगवान है। वही श्रीकृष्ण चौरासी जन्मों के बाद ब्रह्मा नाम से जाना जाता है जब शिव का अवतरण होता है।
बात चल रही थी काम विकार की। काम विकार के कारण यह दुनिया कोई काम की नही रही हुई है यह खुद ब्रह्मा तन में अवतरित शिव पिता कह रहे है। लोग सब वेदशास्त्र पढने के कारण अपने को बहोत होशियार समझते है और होशियार समझने से बुध्दि का अहंकार भी आता है। अहंकार आने से किसी ने कुछ सच भी कहा तो उसके अंदर जाने की, जांच करने की बुध्दि की इच्छा नही रहती कारण जादा पढने का परदा बुध्दिपर पडा हुआ रहता है। वेदशास्त्र पढे है लेकिन रामराज्य किसको कहा जाता है यह भी उनको मालूम नही है।
जहां पवित्रता है वहां आत्मा की सर्व प्राप्तियां है। ओम शान्ति का मतलब है मै आत्मा ब्रह्माण्ड निवासी शान्त स्वरूप हूं। तो गीता मे लिखे श्रीकृष्ण की जगह शिव को आत्मिक स्वरूप में याद करनेसे आत्मा की लुप्त शक्तियां फिर से जागृत होती है। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय यह नाम ही अपने आप मे अपना कर्तव्य सिध्द करता है। परमात्मा शिव ने इसकी स्थापना की है। यहां से इश्वरीय गवर्मेंट का कार्य चलता है। यह ईश्वरीय गवर्मेंट आत्माओं को पवित्र बनाकर देवता बनाती है। विकारों के प्रभाव से हम चक्र के शुरूआत मे जो आत्माये पावन थी वह विकारों के कारण पतित, पत्थरबुध्दि बनी है। हंस थे, बगुले बन गये है। अब इस ज्ञान व योग से परमात्मा उनको फिर से पावन बनाते है, मनुष्य से देवता बनाते है। और यह कार्य केवल आत्माओं के परमपिता शिव की ही अथारिटी है, कोई साधु, संत, महात्मा इसके काबिल नही है। कई बरसों से यह कार्य चल रहा है। अब आप जब जागेंगे तब आपके जीवन मे शिव का सवेरा आ जायेगा… -अनंत संभाजी

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