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महिलाएं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखें……… - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
महिलाएं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखें………

महिलाएं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखें………

शख्सियत

बॉलीवुड अभिनेत्री शालिनी चन्द्रन यशराज, रेड चिल्ली जैसे बड़ी कंपनी केसाथ काम कर चुकी हैं। ‘शानदार’ फिल्म में करण जौहर, शाहिद कपूर, आलिया भट्ट जैसे कई नामचीन हस्तियों के साथ काम करके अब तक चार सीरियलऔर करीब ४० कमर्शियल एड फिल्में भी कर चुकी हैं। आध्यात्मिकता में भी उनकी विशेष रूचि है। आबू रोड प्रवास के दौरान शिव आमंत्रण से विशेष बातचीत में उन्होंने अपने अनुभव सांझा किए……..

शिव आमंत्रण आबू रोड। आज की नारी का सफर चुनौती भरा जरूर है पर आज उसमें चुनौतियों से लडऩे का साहस आ गया है। अपने आत्म विश्वास के बल पर आज वह दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रही है। आज की नारी आर्थिक व मानसिक रूप से आत्मनिर्भर है। परिवार व अपने कैरियर दोनों में तालमेल बैठाती नारी का कौशल वाकई काबिले तारीफ है। ऐसी ही हिम्मत के साथ जीवन में नए मुकाम हासिल करने वाली झारखंड जमशेदपुर टाटानगर के एक साधारण परिवार में जन्मी फिल्म अभिनेत्री शालिनी चन्द्रन हैं। आपने अपने लगन और मेहनत से आज फिल्म जगत में अच्छा मुकाम हासिल किया है। शालिनी ने अपने जज्बा-जुनून से साबित किया है कि सकारात्मक सोच हो तो बड़ी से बड़ी विघ्न-बाधाओं को पार करके मंजिल को पाया जा सकता है। बता दें कि शालिनी एक बेहतरीन अदाकारा हैं जो बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर अच्छे मुकाम पर हैं। वे अपनी सफलता की ऊंचाइयों का श्रेय राजयोग मेडिटेशन केअभ्यास के साथ-साथ सकारात्मकता और धैर्यता को देती हैं। ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय आबू रोड स्थित शिव आमंत्रण के साथ चर्चा में उन्होंने अपने जीवन के अनुभव और सफलता के राज साझां किए। उन्हीं के शब्दों में जानिए कैसा रहा ये सफर…

बचपन से ही अकेले रहकर खुद एक्टिंग करती रहती थीं…फिल्म अभिनेत्री बनने से पहले बचपन से ही मुझे दो चीजों में ज्यादा रूचि रही। एक मनोविज्ञान दूसरा नैचुरल एक्टिंग। मैं बचपन से ही अकेले रहकर खुद एक्टिंग करती थी। मैंने कोई एक्टिंग एजुकेशन या ड्रामा में भी कभी भाग नहीं लिया। बस अंतर्मन से आवाज आती कि मुझे एक्ट्रेस बनना है। जैसे-जैसे मैं बड़ी हुर्ई तो लगा कि मैं ग्लैमर की दुनिया में फिट नहीं हो सकती हूँ। कुछ और कर लूंगी। इसी बीच मेरे भाई को स्वप्र में साक्षात्कार हुआ कि तुम मुंबई में बहुत बड़ी हीरोइन बनोगी। मुझे विश्वास नहीं हुआ तो फिर भाई ने मुझे काफी प्रोत्साहित किया। मैंने वल्र्ड फेमस एक्टिंग गुरु बैरी जॉन जो शाहरूख खान, मनोज वाजपेयी जैसे कलाकारों के भी गुरु रह चुके हैं, उनसे ही कोर्स पूरा करके फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा।एक महीने के अंदर मुझे धारावाहिक कहानी घर-घर की में पार्वती का लीड रोल मिल गया। जबकि उस कहानी के लिए उन्होंने ऑल इंडिया लेवल ऑडिशन रखा था। इसके बाद यशराज फिल्मस, रेड चिल्ली जैसी बड़ी कंपनियों के साथ काम करने का मौका मिला। अब तक हमने चार धारावाहिकों में काम किया और करीब ४० कमर्शियल एड फिल्मों में काम किया। हाल ही में ‘शानदार’ फिल्म में करण जौहर, शाहिद कपूर और आलिया भट्ट जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। फैंटम फिल्मस के बैनर तले मुझे पोलैंड जाकर विदेश में शूटिंग करने का मौका भी मिला।

अभिनय जैसे क्षेत्र में होकर भी नैतिक मूल्यों केसाथ समझौता नहीं किया…
ऊंची मंजिल पाने केलिए सबसे बड़ा गॉडफादर आपका कर्म के आधार से बना हुआ भाग्य है। फिल्म इंडस्ट्री कीकिसी भी हस्ती से मेरी दूर-दूर तक कोई जान-पहचान नहीं थी। जैसा हम सोचते हैं, करते हैं, वैसा फल मिलता ही है। मैं बचपन से ऐसे घर में पली-बढ़ी हूँ जहां संस्कारों को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है। लेकिन टॉलीवुड में जब गई तो कुछ निगेटिव परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लेकिन बॉलीवुड में ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि मैंने अपने चरित्र और नैतिक मूल्यों केसाथ कभी समझौता नहीं किया। टाइम पर पहुंचना और टाइम पर अपना काम ठीक से करना, ये मेरा दायित्व है। इस बात के लिए इंडस्ट्री में लोग मेरा बहुत आदर भी करते हैं।

सारी शक्ति और नियंत्रण हमारे ही पास है…अभिनेत्री शालिनी बताती हैं कि मैं कई बार अत्यधिक डिप्रेशन में चली गई। अंत में मेरे साथ एक ऐसा मोड़ आया जहां सारे संबंध बिखर रहे थे। तनाव कीचरम सीमा आत्महत्या तक आ चुकी थी। रिलेशनशिप में मैं स्थिर जीवन खोज रही थी। मैं अपने जीवन में सत्यता केसाथ फादर फिगर भी खोज रही थी। जो मुझे अपने पिता कीतरह ही ध्यान रख सके। तनाव का एक कारण बचपन के साथ-साथ हीन भावनाओं से ग्रसित होना भी था। इसलिए मैंने काफी सारे धर्मों को देखा। इसी सफर में ब्रह्माकुमारीका संस्थान से जुड़ी और इससे मैं अध्यात्म की राह पर चल पड़ी। तब से सबकुछ सकारात्मक रूप में बदल गया। वैसे आजकल की महिलाएं आर्थिक रूप से काफी खुद पर निर्भर हैं। लेकिन जब उनकी भावनाओं पर बात आती है तब उन्हें अपने आप पर भरोसा नहीं होता है। उनको कोई चाहिए जिनका वो सहारा ले सकें। लेकिन किसी दिन अचानक वो सहारा किसी कारण से मृत्यु, तलाक, धोखा, जुदाई में बदल गया तो वो फिर तनाव में चलीं जाती हैं। मैंने तय किया कि भावनात्मक रूप से कमजोर नहीं, मजबूत बनना है। उसके लिए हमें निरंतर प्रयास के साथ खुद का ध्यान रखना पड़ेगा। हर तरह की शक्ति हमारे पास है और सारा नियंत्रण भी हमारे हीपास है।जहां हम असफल होते हैं, जिंदगी वही पाठ बार-बार सिखाने की कोशिश करती है…जितना हमारे अंदर खालीपन होता है, उतना ही दूसरों से अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। अगर आशाएं पूरी नहीं होती हैं तो निराशा, तनाव व क्रोध उत्पन्न होते हैं। फिर आप दूसरे व्यक्ति को चेंज होने का इंतजार करते हैं। दु:ख तब और भी बढ़ जाता है जब हमारे अनुसार कुछ भी होता नहीं दिख रहा हो। तो फिर वही दोषारोपण, शिकायत के साथ नकारात्मकता जीवन में आने लगती है। जीवन में ऐसी ही घटना एक के बाद एक घटती जा रही होती है। फिर भी उस बात पर ध्यान नहीं जाता कि वही घटनाएं बार-बार क्यों हमारी वृति में घूम रही हैं? जिस पाठ में हम बार-बार असफल होते हैं, जिंदगी भी वही पाठ बार-बार सिखाने की कोशिश करती है। सृष्टि की हर एक चीज आपको आगे बढ़ाने में मदद करने की कोशिश कर रही है। परंतु हम उन सकारात्मक इशारों को समझ नहीं पाते हैं क्योंकि बुद्धि अनेक तरह की नकारात्मकता में उलझी रहती है।

समाज को बनाने-बिगाडऩे में मीडिया-फिल्म इंडस्ट्री एक पावर…फिल्म इंडस्ट्री ऐसा मानती है कि जो दुनिया, समाज में आज हो रहा है हम वही दिखाते हैं। परंतु हमारे समाज केबुद्धि जीवी वर्ग का मानना है कि मीडिया-फिल्म की वजह से हमारा समाज बहुत प्रभावित हो रहा है। लेकिन सच्चाई तो यही है कि मीडिया-फिल्म में जो दिखाते हैं वही हमारे सोसाइटी में बढऩे लगता है। निश्चित रूप से मीडिया-फिल्म इंडस्ट्री एक पावर है। न मीडिया गलत है, न ही इंडस्ट्री गलत है। लेकिन जो कंटेंट आजकल बन रहे हैं वह बहस का विषय है। तो उनकी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि मीडिया सभ्य-समाज का दर्पण बने। जैसे फैशन और आपसी संबंधों का ताना-बाना, जिससे हमारे बच्चों और हमारे समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़े। क्योंकि आप (मीडिया) समाज केरोल मॉडल हैं। आप जो करेंगे बच्चे उसका अनुसरण करते हैं।

तनाव, आकर्षण और नशा पतन के कारण…
अभिनेत्री शालिनी ने कहा आध्यात्मिकता को आज की युवा पीढ़ी अलग ढंग से लेती है। उनको लगता है इसे अपनाने से जीवन और भी बोरिंग हो जाएगी। पता नहीं क्या-क्या छोडऩा पड़ेगा। उन्हें ऐसा लगता है कि बिना संघर्ष-लड़ाई के कुछ हासिल होने वाला नहीं है। 127-ऑवर्स मूवी को ऑस्कर अवार्ड विजेता डैनी बॉयल ने बनाया है। इस फिल्म को देखकर युवा बहुत प्रेरित हो सकते हैं। युवाओं केलिए तनाव, आकर्षण और नशा की बुरी लत पतन के कारण हैं। इससे बचें और खुद को चेक करें कि दिमाग में क्या चल रहा है। यदि आध्यात्मिकता को अपनाते हैं तो आकर्षण का नियम कहता है खुद की वृत्ति और सोच जब सही कर ली तो जिन चीजों के पीछे भाग रहे थे, वो आपके पीछे आएगी। उसे पाने का एक मात्र तरीका है आध्यात्मिकता। मेडिटेशन के अभ्यास से आप रोज कुछ न कुछ सकारात्मक बदलाव खुद में देखेंगे।

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