- आचार्य परमानंद महाराज ने जीवन, परमात्म अवतरण और राजयोग की अनुभूतियों पर रखे अपने विचार
शिव आमंत्रण, आबू रोड। परमात्मा को पाने की चाह, ईश्वर की खोज और स्वयं को जानने की ललक में मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में घर छोड़ दिया। वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय से व्याकरण में डबल आचार्य की डिग्री ली और आज सतना में स्वयं के आश्रम का संचालन कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं मप्र, सतना जिले के 34 वर्षीय युवा आचार्य परमानंद महाराज की। पांच साल पहले आप ब्रह्माकुमारीज़ के संपर्क में आए और तब से नियमित रूप से राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास कर रहे हैं। शिव आमंत्रण से विशेष बातचीत में आपसे आत्मा, परमात्मा, सृष्टि चक्र, परमात्म अवतरण आदिविषयों पर विस्तार से चर्चा हुई। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश….
सवाल: लोगों की मान्यता है कि ईश्वर कण-कण में हैं, आप इससे कितने सहमत हैं? जवाब: हमारे उपनिषदों में कहा गया है कि कण-कण ईश्वर से है, लेकिन लोगों ने उल्टा कर दिया है कि कण-कण में ईश्वर हैं। दोनों बातों में जमीन-आसमान का अंतर है। ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् अर्थात कण-कण ईश्वर से बना है, ईश्वर से ही सब निर्मित है। ईश्वर अपनी ईथर एनर्जी से इस संसार को चला रहे हैं। जब लोगों ने ईश्वर को कण-कण में मान लिया तो फिर प्रकृति की पूजा शुरू हो गई। यहीं से मूर्ति पूजा की शुरुआत हुई और साकार को भगवान मान लिया गया है। उपनिषद के जो ऋषि थे वह बोलकर चले गए लेकिन उनके जो अनुयायी थे, उन्होंने उसका अर्थ उल्टा कर दिया। जो आगे होते हैं, पीछे के लोग उनका ही अनुशरण करते हैं। इसलिए आज लोगों ने ईश्वर को कण-कण में मान लिया है। चूंकि लोगों में इतनी भ्रांतियां हो गईं हैं कि कण-कण में ईश्वर है इससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल है। जरूरत है तो लोगों को अपने धर्मग्रंथ पढ़ने होंगे।
सवाल: ब्रह्माकुमारीज़ में कौन सी बात ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया? जवाब: ब्रह्माकुमारीज़ के बारे में जब मुझे पता चला कि यहां एक दो नहीं बल्कि हजारों युवा जोड़े (पति-पत्नी) हैं जो घर-गृहस्थ में रहते हुए पूरी तरह से पवित्रता का पालन करते हैं। इस बात ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया कि इतनी बड़ी साधना कोई इंसान नहीं करा सकता है। क्योंकि एक साथ स्त्री-पुरुष रहें, वासना न आए और काम से बचे रहें यह आमतौर पर संभव नहीं है। इस पर मुझे लगा कि जरूर यह कार्य कोई दिव्य शक्ति, महाशक्ति, परमात्मा का ही हो सकता है। इस सवाल को जानने के लिए मैंने राजयोग मेडिटेशन का कोर्स किया। मेरे मन में सवालों की इतनी लंबी लिस्ट थी कि कोई मुझे संतुष्ट नहीं कर पा रहा था फिर मैंने परमात्मा से ही अपने सवालों के जवाब जानने का संकल्प किया। पति-पत्नी साथ में रहकर पवित्र रहना, इससे बड़ी कोई साधना हो नहीं सकती है। लेकिन राजयोग के ज्ञान से यह संभव है।
सवाल: राजयोग का कोर्स सात दिन का है, लेकिन आपको समझने में तीन माह लग गए क्यों? जवाब: जब मुझे ब्रह्माकुमारी संस्था के बारे में परिचय मिला तो मन में आया कि एक बार इस आध्यात्मिक ज्ञान को समझने का प्रयास किया जाए। इसी जिज्ञासावश मैंने राजयोग मेडिटेशन का कोर्स करने का संकल्प किया। पहले दिन कोर्स में बताया गया कि आप आत्मा हैं, शरीर तो आत्मा का कर्म करने का साधन है। आत्मा शरीर रूपी मंदिर में विराजमान एक चैतन्य मूर्ति है। मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की तीन शक्तियां हैं। यह बात मुझे अच्छी लगी और मैं सहमत हो गया। लेकिन जब परमात्मा का परिचय का चैप्टर आया और इसमें कोर्स करा रहीं ब्रह्माकुमारी बहन ने बताया कि गीता में किए वायदे अनुसार परमपिता परमात्मा का इस धरा पर अवतरण हो चुका है तो मुझे विश्वास नहीं हुआ। मेरे मन में अनेक तरह के सवाल-जवाब उमड़ने लगे। इस सवाल को लेकर मैंने वेद, उपनिषद, गीता का अध्ययन किया और जानने का प्रयास किया कि कहां परमात्मा के अवतरण की बात लिखी गई है। तीन ब्रह्माकुमारी बहनें ने अपने- अपने रीति से मुझे तार्किकता और ज्ञान के आधार से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि परमात्मा इस धरा पर आ चुके हैं। वह साधारण ब्रह्मा तन का आधार लेकर गीता ज्ञान और सहज राजयोग सिखा रहे हैं। इस पर मैंने ठाना और ब्रह्ममुहूर्त में परमात्मा का ध्यान करना शुरू किया। मैंने परमात्मा शिव बाबा से ही इस सवाल का जवाब जानने की ठान ली। मैं राजयोग का अभ्यास करता रहा और मन में एक ही संकल्प चलता कि हे! ईश्वर यदि तू इस धरा पर आ चुका है तो अपने होने की उपस्थिति मुझे कराओ। शिव बाबा का कमाल है कि मुझे राजयोग ध्यान के दौरान परमात्मा की दिव्य अनुभूति हुई। मुझे अपने सारे सवालों के जवाब अमृतवेला ब्रह्ममुहूर्त में योग के दौरान मिलते गए। अब आत्मा, परमात्मा, सृष्टि चक्र आदि को लेकर मेरे मन में कोई दुविधा या संशय की स्थिति नहीं है। मैंने अपने ज्ञान, अध्ययन और योग में अनुभूति से यह महसूस किया है कि परमात्मा एक हैं और वह इस धरा पर आकर अपना कार्य कर रहे हैं। परमात्मा तर्क का विषय नहीं है उसकी तो बस अनुभूति की जा सकती है। इसके अलावा वाराणसी के बीके संपत भाई ने धर्म-शास्त्रों के आधार पर लंबे मंथन-चिंतन के बाद यह स्पष्ट किया कि परमात्मा का इस धरा पर दिव्य अवतरण हो चुका है।
सवाल: गीता में किए वायदे अनुसार परमात्मा परकाया प्रवेश कर ब्रह्मा मुख ज्ञान देते हैं, आप क्या कहेंगे? जवाब: जब मैंने धर्म की ग्लानि को अच्छे से समझा, गीता का अध्ययन किया तो लगा कि वास्तव में धर्म की ग्लानि तो यही है। यही समय कलियुग के अंत का समय है। क्योंकि आज मनुष्य की सोच एकदम पतित है। अपने सुख के अतिरिक्त दूसरे के सुख की बात कोई नहीं सोच रहा है। शास्त्रों में जो 84 लाख की बात आई है वह हमारे वेदों और उपनिषदों में कहीं नहीं है। पहले आए हैं वेद और वेद से फिर उपनिषद निकले हैं। फिर उपनिषद से शास्त्र बने हैं। शास्त्र से फिर पुराण बने हैं। पूरी सृष्टि के रचनाकर एक परमात्मा हैं। परमात्मा ही सृष्टि के संचालन के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शंकर तीन देवों की रचना करते हैं। परम सत्य यही है कि परमपिता परमात्मा ही सृष्टि के रचनाकार, निर्माता हैं। एक परमात्मा ही ईश्वर, भगवान हैं। बाकी सभी देवी-देवता हैं।
सवाल: आप परमात्मा से कैसे मिलन मनाते हैं? जवाब: परमात्मा को इन चक्षुओं से देखा नहीं जा सकता है। उनकी तो बस अनुभूति की जा सकती है। रोज ब्रह्ममुहूर्त में 3.30 बजे उठकर परमात्मा का ध्यान करता हूं, उनसे बातें करता हूं। इससे नई-नई अनुभूतियां होती हैं। स्वयं को आत्मा समझकर जब हम परमात्मा का ध्यान करते हैं तो एक समय के बाद हमें उनकी उपस्थिति की दिव्य अनुभूति होने लगती है।
सवाल: राजयोग से क्या परिवर्तन आया? जवाब: राजयोग के अभ्यास के बाद से अब मैं स्वयं के हाथ से बना पवित्र भोजन ही स्वीकार करता हूं। आध्यात्मिकता में सबसे महत्वपूर्ण है आपका भोजन। कहा जाता है जैसा अन्न-वैसा मन। इसलिए मैं हमेशा भोजन की पवित्रता का ध्यान रखता हूं। यदि बाहर जाना होता है और भोजन बनाना संभव नहीं हो पाता है तो फलाहार पर रहता हूं।
सवाल: कभी शादी का ख्याल नहीं आया? जवाब: जब मैं 13 वर्ष का था, तभी ईश्वर की खोज में घर छोड़ दिया था। मेरी शिक्षा- दीक्षा वाराणसी में हुई। वहां से काशी हिंदू विश्वविद्यालय से व्याकरण में डबल आचार्य की डिग्री ली। मेरा बचपन से ही संकल्प था कि मुझे मोह-माया से परे जीवन जीना है। मुझे ईश्वर काे जानना है, स्वयं को जानना है। मैंने अनेक धर्म-ग्रंथ पढ़े, कई विदेशी लेखकों को पढ़ा, सभी को पढ़ने के बाद मैंने यही जाना है कि काम और कुछ नहीं हमारी मूर्खता है। हम बालू से तेल निकालना चाहते हैं। हम वहां सुख ढूंढ़ना चाहते हैं जहां सुख है ही नहीं।