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परमात्मा के साकार रथ से पालना लेकर भारत से अमेरिका तक शिव का झंडा लहराया - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
परमात्मा के साकार रथ से पालना लेकर भारत से अमेरिका तक शिव का झंडा लहराया

परमात्मा के साकार रथ से पालना लेकर भारत से अमेरिका तक शिव का झंडा लहराया

शख्सियत

शिव आमंत्रण आबू रोड । कोई भी धर्म की आत्मा हो, आत्मा अपनी जनम-जनम की प्यास बुझाने के लिए परमात्मा को अपनी मान्यता अनुसार किसी न किसी रूप में ढूढ़ता ही है। लेकिन तकदीरवान आत्माओं को भगवान जब मिलते हैं तो वे सिर्फ भक्त भगवान का फर्ज नहीं निभाते। उससे कहीं बढक़र मात-पिता बंधु सखा के रूप में पालना देकर कई जन्मों के लिए तृप्त कर देता है। ऐसी ही एक विशेष आत्मा बीके विनोद जो ब्रह्माकुमारीज़ के ज्ञान को भारत से अमेरिका तक फैलाया। आज 78 वर्ष की आयु में युवा की तरह सेवा में लगे हैं। 58 वर्ष पहले परमात्मा के साकार तन प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा जो पालना ली है उसका बखान शिवआंमत्रण के साथ किया।

शिखरजी की यात्रा तीन बार करो तो भगवान मिल जाएगा
मेरा नाम विनोद कुमार जैन हैं। जैन परिवार में मेरा जन्म हुआ। हमारे माता पिता बहुत धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने ऐसा नियम बनाया था कि जब तक जैन मंदिर नहीं जाएंगे, तब तक पानी, दवाई, नाश्ता, कुछ भी नहीं खाना है। बचपन से 20 सालों तक मैंने ये नियमों का पालन किया। 20 साल के उम्र में मेरा धनबाद इंजीनियरिंग कॉलेज में सलेक्शन हो गया। कॉलेज के पास में वहां कोई जैन मंदिर नहीं था। तब बहुत वैराग्य होने लग गया दुनिया से, फिर मैंने सोचा जैन मंदिर नहीं है तो नाश्ता कैसे करें। फिर मैं कभी नाश्ता किया कभी नहीं किया, ऐसे ही जीवन चलता गया। फिर मैं जैन साधु के पास गया। मैंने कहा मुझे इसी जीवन में भगवान की प्राप्ति करनी है। आप कोई उपाय बताइयें। तो उन्होंने कहा आप पारस नाथ मंदिर, इसको जैन धर्म में बहुत ऊंचा तीर्थ स्थान मानते हैं, इसको शिखरजी भी बोलते हैं। तो आप शिखरजी की यात्रा करो तीन बार। तो आपको भगवान मिल जाएगा।

यात्रा पूरी की तो भगवान का परिचय मिला
मैंने शिखरजी की यात्रा चार बार यात्रा की। मैंने कहा एक यात्रा अगर नियम के अनुसार नहीं हुई हो तो एक्स्ट्रा करनी चाहिए। परंतु इस तरह की यात्रा रात्रि को 12 बजे शुरू होती है, ठंडे पानी से स्नान करके पहाड़ी पे जाना होता है नंगे पैर से। कोई लाठी नहीं लेनी सपोर्ट के लिए। तो रात को 12 बजे चलते हुए पहाड़ी पर सुबह नौ बजे पहुंचते हंै। बहुत ऊंची पहाड़ी होता है। पहाड़ी के ऊपर जहां चरण बने हुए हैं तो उनके ऊपर चावल चढ़ाते हैं, पूजा करते फिर नीचे आते-आते पांच या छ: बज जाते हैं। शाम में तो पूरा 18 घंटे की यात्रा है ये। नॉर्मल व्यक्ति जो होता है वो एक दिन रेस्ट करके फिर दूसरी यात्रा शुरू करता है, परंतु मुझे तो लगन था तो मैंने लगातार चारों यात्रा की चार दिन में कोई रेस्ट नहीं की। जब वहाँ यात्रा पूरी की तो मुझे ब्रह्माकुमारीज के द्वारा भगवान का परिचय मिल गया। मेरे लिए तो ये जैन साधु की कही हुई बात सच हुई। तो फिर ब्रह्माकुमारीज के ज्ञान में 09-03-1960 से चलने लगा। मेडिटेशन सेंटर में तो मुझे पहली ही दिन भृकुटी के बीच में लाइट दिखाई दी।
श्रीमत का हमेशा से पालन किया
मैंने मन में विचार किया कि जो मैं सोच रहा था कि भगवान मिले वो तो मिल गया तो उसी टाइम उसी सेकेंड आत्म अनुभूति हो गई। मैं उसी सेकेंड डिसाइड कर साकार बाबा को पत्र लिखा। 1964 में साकार बाबा को पत्र लिखा कि बाबा आप कह रहे हैं कि विनाश बहुत जल्द होने वाला तो मैं इंजीनियरिंग क्यों करूँ? क्योंकि इंजीनियरिंग उस टाइम में चार साल का कोर्स था। मैंने कहा बाबा चार साल इंजीनियरिंग करूं उसके बाद मैं बाबा की सर्विस में लगुं इससे अच्छा है टाइम क्यों वेस्ट करूं और अभी से मैं समर्पण हो जाता हूं। मुझे अब इंजीनियरिंग पढऩे की आवश्यकता नहीं है। तो बाबा तो अंतर्यामी हैं, वो तो मेरे भविष्य को जानता है। उनका जवाब आया कि 4 साल की इंजीनियरिंग पूरा करो, फिर बाबा राय करेंगें, डायरेक्शन देंगे की क्या करना है? तो भगवानुवाच जो साकार बाबा कहते थे मैं उसको हमेशा मानता था। श्रीमत का हमेशा से पालन किया है। शुरू से अंत तक, अभी तक। तब चार साल की इंजीनियरिंग पूरा कर फिर बाबा को लिखा कि बाबा इंजीनियरिंग पूरी हो गई। मुझे जॉब नहीं करना है मुझे अब बस आपका ही परिचय देना है सबको। उस टाइम में तो इंडिया में ही था, विदेश तो नहीं था। फिर बाबा को जब पत्र लिखा तो बाबा के पत्रों का जवाब जल्दी आ जाता था। एक हफ़्ते के अंदर बाबा के पत्र का उत्तर आ गया। बाबा ने कहा बच्चे दो साल का पोस्ट ग्रेजुएशन करो। दो साल का पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिर बाबा को लिखा बाबा मुझे जॉब नहीं करना सरेंडर होना है। तो बाबा ने कहा कि बच्चे तुम ऑलरेडी सरेंडर हो। क्यों कि तुम्हारा मन और बुद्धि आलरेडी सरेंडर है इसलिए तुम्हें फिजिकली सरेंडर होने की आवश्यकता नहीं है।
1964 में कई और साक्षात्कार हुए
उस समय एक दिन सेंटर पर जाते हुए, उड़ जा रे पंछी ये देश हुआ बेगाना वाला गीत सुनते ही शरीर एकदम हल्का हो गया, लाइट का शरीर हो गया और हाथ धीरे-धीरे ऊपर उठने लगे, आंखें आधी खुली आधी बंद, आत्मा और परमात्मा का अद्भूत साक्षात्कार हुआ। मैंने सोचा साइंस के हिसाब से हर चीज़ नीचे जाती है तो मेरे हाथ क्यों ऊपर उठ रहे हैं आकाश की तरफ। मेरा कोई कंट्रोल भी नहीं था उस टाइम, मैं चाहूं हाथों को नीचा कर दूं तो नहीं कर सकता था, रिवर्स ग्रेविटेशनल फ़ोर्स थी, फिर मैंने सोचा मन में ये कौन सी फ़ोर्स है कि हाथ उपर जा रहे हैं, तो तभी विश्वास हुआ कि बाबा का ही चमत्कार है, हर चीज़ नीचे जाती है और बाबा ऊपर खींच रहे हैं। सुरेंद्र बहन जो आजकल बनारस में सब ज़ोनल इंचार्ज हैं वों मेरी टीचर थी, तो मैंने उनसे पूछा कि ये क्या बात हुआ की मेरे हाथ ऊपर उठ रहे थे और बाबा ने ऊपर भी बुलाया। फिर उन्होंने बताया जब वो भोग लेकर ऊपर गई सूक्ष्म वतन में तो बाबा ने कहा बच्चा विनोद बहुत मीठा है इसको मीठी टोली खिलाओ, तो थाली के अंदर मीठी टोली नहीं थी फल थे। फिर जब मैं नीचे बैठा था तब मुझे बाबा ने ऊपर बुलाया तभी मेरे हाथ उठने लगे। मुझे सूक्ष्म वतन में बुला कर मेरे हाथों में मीठी टोली खिलाई और फिर मैं नीचे आ गया। फिर बहन जी को बाबा ने कहा की नीचे जा कर इनको मीठी टोली खिलाना तो इस तरह ये मेरा पार्ट शुरू हुआ। 1964 में कई और साक्षात्कार हुआ मुझे। कभी कृष्ण का साक्षात्कार, कभी नारायण का, कभी सत्तयुग का, कभी शिव बाबा का। बाबा से पत्र व्यवहार में हमेंशा मेरे नाम के पत्र आते थे परंतु धीरे-धीरे बाबा के पत्र इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल में भी आना शुरू हो गया फिर बाबा के बहुत नज़दीक आ गया।

बाबा ने कहा आज से आपका खाना सेंटर से आएगा
एक बार की बात है की गुरुवार का दिन था मैंने और मोहन सिंघल ने हलवा बनाया अपने हॉस्टल में, की आज बाबा को भोग लगाना है। सेंटर पर हलवा ले जाएंगे, तो बनाया। हलवा लेके गए सेंटर पर, तो सुरेन्द्र बहन भोग लगा रही थी क्योंकि उनका ध्यान का पार्ट था। जब हम भोग लेकर आए,थाली में भोग रखा, तब बाबा ने खींचा, तो सुरेंद्र बहन ने पूछा बाबा आपने पहले क्यों नहीं खींचा। बाबा ने कहा बच्चे इतने प्यार से बाबा के लिए भोग बना रहे हैं, जब तक वो भोग नहीं आएगा तब तक मैं भोग स्वीकार नहीं करूंगा। बाबा का शुरू से ही बहुत प्यार था। एक बार की बात है कि मैंने और मोहन सिंघल ने डिसाइड कर लिया कि हमको हॉस्टल का खाना नहीं खाना है। हालांकि भोजन वेजीटेरियन ही होता था बिना प्याज लहसूऩ का, परंतु खाना नहीं है, ख़ुद बनाएंगे। तो हमने एक कमरा लिया किराये पर हॉस्टल में, बर्तन लिए, स्टोव लिया और ख़ुद खाना बनाना शुरू कर दिया। परंतु स्कूल के जो स्टूडेंट्स थे वो शैतान होते हैं। उन्होंने हमारा ताला तोड़ा और हमने जो खाना बनाया था वो सब खा लिया। बर्तन झूठे छोड़ चले गए। हम जब लंच टाइम में आए तो ये सब कुछ देखा तो थोड़ा डिस्टर्ब हुए। मैंने और मोहन ने पत्र लिखा कि बाबा हम चाहते हैं कि पवित्र खाना बनाएं और पवित्र हाथों से खाना बनाकर खाएं, परंतु ये प्रॉब्लम आ रही है। तो बाबा ने कहा आज से आपका खाना सेंटर से आएगा। तो चार साल हमनें धनबाद सेंटर से खाना खाया।

आत्मा का जो भारीपन था वह एकदम हल्की हो गई
बाबा ने मुझे झोपड़ी में मिलने का टाइम दिया। एक साइड मैं बैठा एक साइड बाबा बैठे थे। बाबा ने कहा तुमको अपने मुंह से सुनाना है, बाबा इतनी किताब नहीं पढ़ेगा। तो मैं सुनाता गया नोट पढ़ के। तब बाबा का राइट हैंड मूव होता था हल्का सा। मुझे लगता था मेरे पाप आधे माफ़ हो रहे हैं। कुछ बातें मैं भूल गया था लिखना उस किताब में तो वो भी याद आ गई। मैंने कहा बाबा मैंने ये भी किया मैंने ये भी किया। फिर बाबा ने हाथ हिलाकर वो भी आधी माफ़ कर दिया। फिर उसके बाद मुझे ऐसा लगा की मेरी आत्मा का जो भारीपन था वो एकदम हल्की हो गई आत्मा। फिर बाबा ने कहा की जो आधी गलतियां हैं वो योगबल के द्वारा उसको ख़त्म करो। तो इस तरह बाबा के बहुत नज़दीक आ गए। हम दिल से बाबा को प्यार कर दिल पर चढ़ गए। बाबा क्लास के बाद अपनी झोपड़ी की तरफ़ जा रहे थे। सुबह की क्लास के बाद, मैं भी बाबा के पीछे-पीछे चलने लगा, फिर बाबा गार्डन में जाकर रुक गए। और उस टाइम में अंगूर की बेल-लटक रही थी झोपड़ी के आगे तो बाबा ने एक अंगूर तोड़ा और मेरी मुँह में दिया फिर बाबा ने पुछा कैसा है? मैंने कहा भगवान की हाथ से खा रहें बाबा बहुत मीठा है, तो इस तरह से ही बाबा ने अपने हाथों से खिलाया।

भगवान ने मेरे मन के संकल्प को जान लिया
1968 की बात है, मैं धनबाद से माउंट आबू आया छुट्टी में तो पूरे मधुबन में मैं और दो भाई और थे जम्मू से, उसके बाद मिलन मनाकर जाने वाले दिन हम बच्चों को बाबा ने बुलाकर कहा तुम्हारे से आज विशेष मिलेंगे। तब मुझे और भी बड़ी ख़ुशी हुई, भगवान ने निमंत्रण दिया है मिलने का। तो हम तीनों बाबा के कमरे के बाहर खड़े थे। जहां बाबा का बैड और संधिली है वो बाबा का बेडरूम और मीटिंग रूम था, आधा जो हिस्सा है वो बाबा का डाइनिंग और स्नान करने का जगह था तो हम तीनों बाहर खड़े हो गए।… बाबा के कमरे के बाहर तो लच्छू बहन जो थी वो बाबा की केयर टेकर थी। तो लच्छू बहन को बाबा ने कहा कि वो दो भाई जो जम्मू के हैं उनको पहले बुलाओ और विनोद भाई को कहो वेट करेंगे बाहर। तो अंदर गए वे दोनों बाबा के पास तो फिर कुछ हीं सेकेंड में वो बाहर भी आ गए, मिल के बाबा से, टोली लेकर। परंतु कुछ ही सेकेंड में मेरे मन में संकल्प उठा कि बाबा के सबसे नज़दीक तो मैं हूँ, मुझे पहले क्यों नहीं बुलाया? पर वो तो भगवान है वह तो जानता है मेरे अंदर संकल्प क्या चल रहे हैं? फिर बाबा ने जब अंदर बुलाया, तो बाबा ने कहा बच्चे मैं जानता हूँ तुम क्या सोच रहे हो? तो बाबा ने कहा तुम ये सोच रहे हो ना कि पहले क्यों नहीं बुलाया? तो उसका कारण है कि तुम्हें अव्यक्त अनुभव करवाना था, वतन का अनुभव कराना था, उनको नहीं कराना था। उनका मुझे भविष्य मालूम है और तुम्हारा भी भविष्य मालूम है इसलिए तुमको दुसरे नंबर में बुलाया। तो फिर बाबा ने अव्यक्त वतन का अनुभव कराया।
मुझे तो भगवान चाहिए था वो तो मिल गया
इसलिए ब्रह्मा के बारे में भक्ति में कहते हैं कि उनका शरीर तो मेल का था का परंतु उन्होंने मां का पार्ट कैसे प्ले किया? वो बताया है शास्त्र में। जैसे मां होती हैं ना अपने बच्चों को दूर से आता है तो उसी का खातरी करती, वैसे बाबा हम बच्चों का बहुत खातरी करते थे। जितनी बार बाबा से मिलते थे, उतनी बार बाबा गिफ़्ट देते थे। चाहे टोली देंगे, चाहे दृष्टि, गिफ़्ट देंगे, सौग़ात देंगे, देंगे ज़रूर। एक बार की बात है बाबा के पास गया मैं बाबा ने कहा बच्चे तुम्हें क्या चाहिए? मैंने कहा बाबा एक चीज़ चाहिए थी वो तो मिल गया। मुझे तो भगवान चाहिए था वो तो मिल गया। तो बाबा को यह शब्द इतना अच्छा लगा कि एक गिफ़्ट दी स्पेशल। तभी मनमोहिनी दीदी खड़ी थी वहाँ पर एक गिफ़्ट उन्होंने दी दिल से निकला स्थूल चीज़ क्या चाहिए यह तो नश्वर है साथ जाने वाला तो बाबा ही है। तो बाबा को मैं दिल से चाहता था बाबा आप मिल गये तो दुनिया में और क्या चाहिए तो बाबा अपने बच्चों की बहुत केयर करता था। जब मैं बीस 21 साल का था तब बाबा रात को कहते थे पहरा दो पांडव भवन में। इस तरह हमने साकर बाबा के साथ बहुत मौज किया। एक बार की बात है मैं डेली मुरली को स्टैपल कर फोल्ड कर रहा था तो बाबा आए बहुत प्यार से दृष्टि दिया। आत्मा को जैसे सब कुछ मिल गया। पांडव भवन के पीछे जहाँ रसोई है वह जगह ख़ाली थी। वहाँ गाय रहती थी तो बाबा ने एक बार गाय के लिए भूसा मंगाया। बाबा के कोर्टयार्ड में भूसा इकट्टा कर दिया और कुछ कुमार थे और मैं भी था। बाबा ने कहा भूसे को पीछे जहां गोडाउन है वहां रखना है। तो टोकरा लिया भूसा भर कोर्टयार्ड से ले आते-जाते थे। तब बाबा हिस्ट्री हॉल के कोर्नर पर खड़े होकर दृष्टि देते रहते थे। कुछ देर में सारा भूसा पीछे हो गया। तभी भूसे के अंदर थोड़ी धूल होती थी। धूल गले में चली गई तो मैंने कहा बाबा गले में डस्ट चली गई है। वो तो सर्जन है सुप्रीम सर्जन तब उन्होंने गुड़ मंगाया और अपने हाथ से खिलाया। तब कुछ ही सेकेंड में मैं ठीक हो गया।
वो भगवान है मनुष्य आत्मा नहीं
एक बार माउंट आबू में चार बहनें थीं और बेगरी पार्ट चल रहा था तो चारों बहनों को डायरिया हो गया। उस टाइम में विश्व किशोर दादा थे और पैसा था नहीं। विश्व किशोर दादा खोज रहे थे जेब में ही मिल जाए कहीं कुछ एक आना-दो आना तो मेडिसिन बहनों को लाकर दें। तब उनको नहीं मिला फिर कहीं से मिल गया। एक आना लेके वो कैमिस्ट के दुकान पर गए और डायरिया की दवाई ले आए। एक आने की एक ही दवाई दी उन्होंने, तो एक दवाई ले के वो आ गए। तब वे सोच में पड़ गए की दवाई तो एक है और पेशेंट चार है, इतने में ब्रह्मा बाबा आ गए। बाबा ने कहा क्या सोच रहे हो विश्व किशोर? दादा ने कहा की एक ही टैबलेट है और चार पेशेंट हैं। मेरे समझ नहीं आ रहा है कि कैसे चारों ठीक हो और किसको दुं किसको न दुं। तब बाबा ने कहा इतनी आसान सी बात है। इतना सोच रहे हो। बाबा ने एक चाक़ू मंगाया। चाक़ू से टेबलेट को 4 भाग कर दिए और चौथाई-चौथाई सबको दी। कुछ ही मिनटों में चारों ठीक हो गयी। भगवान अपने बच्चों को कैसे ठीक करता है बाबा की ब्लेसिंग बहुत बड़ी चीज़ होती है दवाई तो निमित्त मात्र था। एक बार की बात है कि मुझे वीआईपी के सिग्नेचर लेने का बहुत शौक़ था। मेरे पास एक छोटी सी सिग्नेचर बुक थी वो लेके मैंने बाबा के पास गया। मैंने कहा बाबा आपकी सिग्नेचर चाहिए,ये सिग्नेचर बुक है, तो बाबा ने कहा ने कहा लच्छछु को दे दो, तो मैंने उस बहन को दिया तो बहन ने कहा कल ले जाना। नेक्स्ट डे आकर मैंने बहन से बुक मांगा कि दे दो। तो बहन ने कहा की वो भगवान है मनुष्य आत्मा नहीं। तब मुझे मेरी गलती एहसास हुआ कि मैं भगवान की सिग्नेचर माँग रहा हूँ। वो कोई वीआईपी तो नहीं है वह तो सुप्रीम गॉड है।

माता-पिता से बढक़र पालना दी
हर बुधवार को बाबा के साथ हम पिकनिक करते थे और हर गुरुवार जो हिस्ट्री हॉल है उसमें बाबा के साथ हम ब्रह्माभोजन करते थे। तो सात दिन हम रहते थे मधुबन में। जब भी आए सात दिन तक परमिशन रहती थी। तो एक बार बुद्धवार पड़ता था, एक पर गुरुवार और एक बार रविवार। बुधवार को भोग होता था पिकनिक होती थी, गुरुवार को ब्रह्माभोजन होता है, रविवार वो रेगुलर दिन होता था। तो बाबा जो थे, भक्ति मार्ग में जो कहते हैं तुम्हीं हो माता-पिता तुम्हीं हो बंधु-सखा तुम ही हो। तो बाबा से हमने माता पिता बंधु सखा सब का अनुभव किया हुआ है। हम रात को मुरली के बाद अपने कमरे में चले जाते थे। फिर बाबा कमरे में लच्छू बहन के साथ आते थे और देखते कम्बल, रज़ाई है। रात के सोने के कपड़े हैं, ठण्ड तो नहीं लगेगी।
जो पाप किए हैं सुनाओगे तो बाबा आधी माफ कर देगा
इंजीनियरिंग में दो महीने की समरवेकेशन होती थी उस समय हम धनबाद से माउंट आबू आते थे। उस समय इतनी टैक्सी, कार भी नहीं होती थी। बस द्वारा आबूरोड से ऊपर जाते थे माउंट। तभी बाबा कहते थे कि इस जन्म में जो पाप किए हैं वो पांच साल के बाद भी याद रहती हैं। जो पाप किए हैं वह सुनाओगे तो बाबा आधी माफ़ कर देगा। मैंने चौसठ पेज की नोटबुक खरीदी ब्लैंक। उसमें ५ साल में मैंने जितने भी गलतियां की थीं वो सब लिख दी। नोटबुक लेकर फिर माउंट आबू आया। बाबा से मिला, मैंने कहा बाबा आपने मुरली में कहा की आधी माफ़ कर देंगे तो मैंने जो गलतियां की है उसका ये बुक मैं आपको देता हूँ। बाबा ने कहा बच्चे मैं थोड़े ही पढूंगा, तुमको अपने मुंह से सुनाना पड़ेगा।

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