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जैसी ऊर्जा हम सामने वाले को देंगे वही हमें मिलेगी… - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
जैसी ऊर्जा हम सामने वाले को देंगे वही हमें मिलेगी…

जैसी ऊर्जा हम सामने वाले को देंगे वही हमें मिलेगी…

जीवन-प्रबंधन

आज चार लोग एक घर में इकठ्ठे नहीं रह सकते। पति-पत्नी के तलाक की दर बढ़ गई है। आज छोटे-छोटे बच्चों को तनाव और हताशा हो गई है। हमने सिर्फ कहा काम तो होता गया, काम तो होता गया। पति-पत्नी दोनों काम करते हैं दोनों सारा दिन ऐसे वातावरण में होंगे जहाँ ऊर्जा ये होगी कि गुस्से से ही काम होता है तो उनको तो वो ऊर्जा तो मिलती ही रहेगी। वो दो लोग जब घर पहुंचेंगे शाम को तो उनके पास क्या ताकत बचेगी। एक-दूसरे को सहन करने की, तालमेल करने की, सहयोग करने की फिर उस पर से बच्चे को भी समझने की, संभालने की कहां ताकत बची और फिर छोटी-छोटी बात में वही तनाव और क्लेश। क्योंकि हमने कहा- काम करवाने के लिए ये चाहिए। गुस्सा वो नकारात्मक ऊर्जा है जो किसी के लिए भी उपयोगी नहीं हो सकती है। हर बच्चे की एक क्षमता होती है हमें उसको पढ़ाना है। पढ़ने के लिए उसको बोलना भी है, हमें उसके नियम भी रखने ही हैं लेकिन हमें डांटने की ऊर्जा देनी है वो प्रश्न चिन्ह है। हां, ये हो सकता है अगर उसको आप कुछ बोलो ही नहीं तो वो पढ़ेगा नहीं, तो बोलना तो है ना लेकिन डांटकर बोलना है और फिर अगर डांट से भी नहीं सुना तो हाथ उठाकर बोलना है ये
प्रश्न चिन्ह है।

शांति से काम लेंगे तो समझ आएगा कैसे बदलना है….

एक दिन एक होमवर्क रखा था कि आज सारा दिन हम स्थिर रहेंगे चाहे कुछ भी हो जाए तो एक बहन घर गई उसकी तीन साल की बेटी वो उससे झगड़ा करने लगी कि मेरे को छोड़ के चली गई। मेरे को साथ में लेकर नहीं गई, रोने लगी। तो कहती है पहले सामान्यत: मैं क्या करती थी दो झापड़ लगा देती और किचन में चली जाती, नाश्ता बनाने के लिए। सरल काम है ना दो झापड़ मारा और किचन में चले गए। वो थोड़ी देर रोकर अपने आप चुप हो जाएगी। लेकिन आज निश्चय किया था कि आज गुस्सा नहीं करना है तो फिर मैंने उसको प्यार से बोला हां, मैं नहीं लेकर गई तुम सोई हुई थी। मैं तुमको शाम को लेकर जाऊंगी तो
वो और जोर से रोने लगी। उसको अंदर से विचार आया कि कितना समय बर्बाद हो रहा है। इसके साथ सुबह-सुबह, नाश्ता बनाना है, देरी हो रही है लेकिन गुस्सा उस दिन नहीं करना था तो मैंने नहीं किया चार-चार बार मैंने उसको प्यार से बोला, फिर भी वो कठोरता से बात करती रही। मैंने फिर प्यार से बोला वो फिर भी कठोरता से बात करती रही। लेकिन पांचवीं बार उसने भी मुझसे प्यार से बात की। वो बहन के आंख में उस दिन आंसू आ गए। अब उसे समझ में आया इनको कैसे बदलना है। लेकिन सामान्यतः मैं कौन सा तरीका उपयोग करती थी, समय नहीं है ना। 15 मिनट लग गए उसको वो पांच बार करने की प्रक्रिया में लेकिन 15 सेकंड का काम था, दो थप्पड़ मार के किचन में जाना, 15 सेकंड से ज्यादा नहीं लगता किसी बच्चेको थप्पड़ मारने में लेकिन बार-बार उससे प्यार से बात करें वो फिर भी चिल्ला रहा है। हम फिर भी प्यार से बात करें तो 15 मिनट लग गए, लेकिन वो 15 मिनट में हमने क्या कर दिया। नहीं तो ये दृश्य तो हर रोज ही होता होगा। किसी ना किसी बात पर और रोज वो ही 15 सेकंड वाला तरीका उपयोग होता होगा। मारा, डांटा किचन में गए। मारा, डांटा, खाना, खिला दिया। मारा, डांटा पढ़ाई करा दी। वो तो रोज होता है और रोज हमारी भी और उनकी भी शक्ति कम होती जाती है।

बच्चों को बदलने के लिए ताकत चाहिए….
बच्चों को बदलना उनसे वही काम प्यार से करवाना इसमें ताकत चाहिए। मार के करवाना, डांट के करवाना जल्दी होता है तो ये कमजोरी उनकी नहीं है, ये कमजोरी हमारी है कि हमारे पास न वो 15 मिनट का समय है। न हमारे पास उतना धैर्य है कि हम बार-बार प्यार से कोशिश करेंगे। लेकिन अगर हमने ये प्यार वाला तरीका अपनाया तो वो सिर्फकुछ ही दिन करना पड़ेगा 15 मिनट, उसके बाद उस बच्चे के अंदर वो ताकत बढ़ती जायेगी। अब उस बच्चेको भी आदत पड़ी हुई है कि ये मुझसे डांट के काम करवाते हैं, इसी तरह कार्यालय में भी लोगों को आदत पड़ी हुई हैं डांट के काम करवाने की। आप एक ऑफिस में बोल दो चाहे कुछ भी हो जाए गुस्सा नहीं करेंगे! काम करना है करो या नहीं करना है तो मत करो, तो लोग आपके लिए काम करेंगे या नहीं? वो आपके लिए काम करना चाहेंगे। अभी तो काम करना पड़ता है और काम करना चाहें दोनों में बहुत फर्क होता है। वो ऐसे काम करना चाहेंगे कि आप उनकों बोलेंगे 6 बज गये बंद करो घर जाओ! तो बोलेंगे नहीं सर आधा घंटा और चाहिए खत्म करके जाना है, क्योंकि उनको अब जो ऊर्जामिल रही है सारा दिन वो सम्मान की मिलती है।

जब हम किसी को डांटते हैं तो उनका अनादर करते हैं….
जब हम किसी को डांटते हैं तो हम उनका अनादर करते हैं जो हमारा अनादर करते हैं। हम उनके लिए मजबूरी से काम करते
हैं क्योंकि हमें वो पगार चाहिए लेकिन जो हमारा आदर करते है, हमें जो प्यार करते हैं हम उनके लिए फिर केवल पगार के लिए नहीं बल्कि हम उनके लिए और उनके साथ काम करना चाहते हैं, लेकिन इसका प्रयोग करना पड़ता है क्योंकि इसमें थोड़ा-सा समय लगेगा, धैर्य लगेगा। क्योंकि पुरानी वाली मान्यता बहुत गहरी बैठी हुई है। जैसी ऊर्जा हम उनको देंगे उनसे वही ऊर्जा हमें मिलेगी। सारा दिन हरेक के प्रति अपनी सोच की जांच करते रहो।

एक आदर वाला संकल्प करें, एक सोच विश्वास की पैदा करे….

हम सब्जी लेने जाते हैं सामान चुनते हैं वो सब्जी तौल रहा है। आप एक संकल्प करते हैं आजकल तो ये लोग बहुत गोलमाल करते हैं, बहुत धोखा करते हैं। आजकल ये लोग, ये सब लोग ऐसे ही हो गए है। ये अनादर की ऊर्जा है। हम कुछ नहीं बोलते और कभी-कभी तो बोल भी देंगे ठीक से तौलो, ये अनादर की ऊर्जा है। अगर ये संकल्प हमने पैदा किया और उधर तक भेजा तो वो निश्चित गड़बड़ करेगा। एक आदर वाला संकल्प करें एक सोच विश्वास की पैदा करें। कल उसी दुकानदार के पास जायें, उसी सब्जी वाले के पास जायें, ऑटो में बैठते हैं पहले से संकल्प करते हैं ये धोखा तो नहीं करेगा, अब उन लोगों को सारा दिन वो संकल्प सबसे मिलता है हरेक जो उनकी दुकान पर आता है, हरेक जो ऑटो में बैठता है वो उनको ये ही उर्जा दे रहा है तो निश्चित रूप से वो क्या करेंगे वो ही करेंगे। संकल्प करना ये उनको एसएमएस करने के समान है कि ये करो। ऊर्जा है ना! एसएमएस क्या है आपने संदेश भेजा मुझे संदेश मिला और मैं इतनी आज्ञाकारी हूँ कि आप जो संदेश भेजेंगे मैं वो ही करूंगी क्योंकि आपका संदेश मेरे अंदर एक संदेश उत्पन्न करना शुरू करता है। संकल्प, विचार शक्ति क्या है एक तीर की तरह होता है। कौन हैं वो सारे लोग जो हमें सारा दिन मिलते हैं! हमारी ही तरह हमारे ही परिवारों के लोग हैं न। ये मेरी ही तरह हैं बहुत ईमानदार हैं। आप एक बार तीर भेजो, दो बार तीर भेजो, तीन बार भेजो।

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