अंतर्मन- परमात्म श्रीमत अर्थात्शि वबाबा की एक-एक समझानी की जीवन में धारणा हो…
हमेशा हिम्मत रखना, हिम्मत है, तो मदद है ही है…
अगर मैं खुशी वाले संकल्प करता हूं तो मेरे भीतर खुशी बढ़ती है और अगर मैं दु:ख वाले संकल्प करता हूं तो मेरे भीतर दु:ख बढ़ता है। परमात्मा शिवबाबा हम बच्चों से बस एक ही चीज चाहता है कि हम अपने अंदर स्वीकार करने की शक्ति को बढ़ायें। शिवबाबा आया है गृहस्थ आश्रम स्थापन करने। दुनिया में गृहस्थ और आश्रम दोनों को अलग-अलग कर दिया है और भगवान एक करने आता है। इसके लिए ही बाबा ने हमें पढ़ाई पढ़ाकर निमित्त बनने की, सब कुछ करते न्यारे हो जाने की, खुद को मेहमान समझने का ज्ञान दिया है। ताकि हम कहीं मोह में फंस ना जाएं। किसी भी चीज से और साथ ही हमारे अंदर मैं और मेरापन भी खत्म हो जाए। क्योंकि इन दोनों मैं और मेरापन के संतुलन से ही स्थूल में सतयुग की स्थापना होती है। जब हमारे हर कर्म और संकल्प के बीच में परमात्मा बाप होगा अर्थात् उसकी शिक्षाएं होंगी, तभी हम कैसी भी परिस्थिति में मजबूत रह पायेंगे। शिवबाबा की शिक्षाएं ही शिवबाबा की छत्रछाया है। तो अब मेरी एक ही इच्छा भरपूर हो कि मुझे परमात्म श्रीमत अर्थात् शिवबाबा की एक- एक समझानी की जीवन में धारणा हो। यह इच्छा रखने का अर्थ ही है हिम्मत रखना और हिम्मत है तो मदद है ही है। स्व-परिवर्तन ही विश्व-परिवर्तन का आधार है। स्व-परिवर्तन अर्थात् अपने स्वभाव-संस्कार को परिवर्तन कर परमात्मा बाप-समान बना लेना है और जैसे-जैसे आपका स्वभाव-संस्कार परिवर्तन होगा, वैसे-वैसे आपके सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्मायें आपकी सहयोगी बन जायेंगी और सहयोगी बनते-बनते योगी बन जायेंगी। इसलिए अपने संकल्पों पर और बोल पर अटेन्शन रखो। बाबा अपने बच्चों से पूछंता है, बच्चे किसकी याद में बैठे हो? बच्चे कहते बाबा आपकी, बस हम बच्चे इसी तरह अपनी बुद्धि बाप में एकाग्र कर देते हैं अर्थात् सब कुछ करते मन और बुद्धि के द्वारा सब बाबा को समर्पण कर देना है। अपने सारे हिसाब-किताब, कमी-कमजोरी, सब कुछ शिव बाप को सौंप दो और बाप की अंगुली पकड़ अर्थात् बाबा के श्रीमत अनुसार यथार्थ याद में चलते चलना है। बाबा कहते ज्यादा सोचो मत। जब आप हल्के रह बाप के संग रहते हो तो बाप (परमात्मा पिता) आपको गोदी में उठा आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देता है। बस एक बल-एक भरोसा चाहिए। बस इसमें एक बल-एक भरोसा चाहिए। बाबा कहते देखो बच्चे, हिसाबकिताब तो चुक्तु होने ही है परन्तु जब आप
बाप को समर्पण हो जाते हो तो बाप किसी भी तरह की आंच बच्चों पर आने नहीं देता है। हर तरफ से अर्थात् स्थूल और सूक्ष्म हर रीति से सुरक्षित रखता है और जितनी-जितनी आपकी समर्पण बुद्धि अर्थात् बाप को सदा साथ रखने का अभ्यास बढ़ता जायेगा, उतनी जल्दी आप बाप-समान बन बाप से सम्पूर्ण सुख का अनुभव कर घर जाओगे। बाबा कहते देखो बच्चे बाप आया ही है आप बच्चों के लिए तो आप भी अपनी सम्पूर्ण जिम्मेंवारी बाप को सौंप हर तरह के प्रश्नों से पार होकर बातों को बिन्दु में परिवर्तन कर बाप-समान बिन्दु बन जाओ। बस थोड़े से पुरूषार्थ के बाद आगे प्राप्तियां ही प्राप्तियां है। बाबा कहते बच्चे, यह परिस्थितियां क्या हैं? कुछ भी नहीं। शिवबाबा तो एक सेकेंड से भी कम समय में सब कुछ परिवर्तन कर सकता है। परन्तु बाप
की जिम्मेंवारी बनती है बच्चों को बाप-समान बनाने की। इस कारण बाप बच्चों को हर तरह के परिक्षा से पास करवाकर काबिल बनाकर अपने साथ लेकर जाता है।