दीदी मनमोहिनी के स्मृति दिवस पर बीके हर्षा के विचार
शिव आमंत्रण, हजारीबाग। दीदी मनमोहिनी के स्मृति दिवस पर सेवाकेंद्र प्रभारी बीके हर्षा ने कहा, कि 1969 में ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद दीदी मनमोहिनी और दादी प्रकाशमणि ने पूरे यज्ञ को संभाला। इन दोनों के लिए कहा जाता है दो शरीर एक आत्मा। ऐसे रह करके एक ने कहा दूसरे ने माना ऐसे करते दोन्हो ने पूरे यज्ञ को चलाया। दीदी मनमोहिनी का यज्ञ के प्रति अति स्नेह था। दीदी के सानिध्य में जो भी आता दीदी उसका मन ऐसा मोह लेती जो वह बाबा का बन जाता। इसलिए बाबा ने उन्हें अलौकिक नाम मनमोहिनी दिया।
झारखंड के हजारीबाग सेवाकेंद्र पर आयोजित दीदी मनमोहिनी स्मृति दिवस पर मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित विजय कुमार सिन्हा, सीनियर सेक्शन इंजीनियर और पूर्व विधायक निर्मला प्रसाद और डीएवी स्कूल की शिक्षिका स्वाति देवी, सेवाकेंद्र प्रभारी बीके हर्षा और बीके तृप्ति ने दीदी के चित्र पर माल्यार्पण किया।
बीके हर्षा ने कहा, कि दीदी मनमोहिनी एक धनाढ्य परिवार की होते भी बहुत साधारण और सरल स्वभाव की थी। दीदी का लौकिक नाम गोपी था। दीदी यज्ञ की स्थापना के समय अनेक बंधनों को तोड़ते हुए एक पल में झाटकू रूप से समर्पित हो गई। उनका शिव बाबा से अटूट प्यार था। हर पल, हर बोल में बाबा ही बाबा निकलता था। दिलवाले भगवान की वह सच्ची दिलरुबा थी। 1950 में जब यज्ञ कराची से आबू में ट्रांसफर हुआ तो उन्होने ही यज्ञ के स्थानांतरण के लिए माउंट आबू का स्थान चुना। दीदी 28 जुलाई 1983 को अपने भौतिक देह का त्याग कर अव्यक्त वतन वासी बनी। दीदी नंबर वन गोडली स्टूडेंट रही।
लगभग 100-125 लोगों ने दीदी मनमोहिनी के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि कर श्रद्धांजलि अर्पित की।