- विश्व में सुख, शांति व सद्भाव लाने के लिए किया मंथन
- अध्यात्म के मार्ग से ही मिलेगा विश्व शांति का मार्ग
- राजिम हुआ विराट सन्त सम्मेलन, निकली शोभायात्रा
शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। छत्तीसगढ़ के प्रयागराज, राजीवलोचन की पुण्यभूमि और पैरी, सोंढूर और महानदी के त्रिवेदी संगम पर स्थित राजिम में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के तत्वाधान में विराट संत सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें देशभर से साधु-संतो और महामंडलेश्वरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। सभी संतों ने एक स्वर में भारत को स्वर्णिम बनाने और विश्व में शांति स्थापना के लिए संकल्प लिया। संतों ने जीवन में आध्यात्म की पुर्नस्थापना के लिए ब्रह्माकुमारीज संस्थान के प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। संत समागम के पूर्व संतों ने राजिम केंद्र में ग्लोबल पीस हॉल का उद्घाटन किया। राजिम में संतों की शोभायात्रा निकाली गई। राजिम के निवासियों ने साधु-संतों व महामंडलेश्वरों का दर्शन किया और पूजा अर्चना की।
विराट संत समागम के विषय इंदौर से आए ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने प्रकाश डाला। नारायण भाई ने संत समागम के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि इतना विराट रुप इस संत सम्मेलन का आयोजन होगा। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि में हम राज्य सरकार के कार्यक्रम में शामिल होते हैं। पहली बार ब्रहमाकुमारीज ने अपने स्तर पर यह कार्यक्रम किया। इसके पीछे हमारी पुष्पा बहन की मेहनत है। इस कार्यक्रम की प्रेरणा कहें हमारे बड़ों की, दादियों का संकल्प रहता है कि संतों को एक बार माउंट आबू लाना है। संतों की सेवा करनी है। इसी लक्ष्य को लेकर हमारे रामनाथ भाई की प्रेरणा से यह संत सम्मेलन आज प्रैक्टिकल स्परूप दिखाई दे रहा है। इसके लिए मै आप सभी को बधाई देता हूं। आध्यात्म, आरोग्य और आनंद की त्रिवेणी संगम पर संत समागम के विशाल महाकुंभ, धर्म, आध्यात्म, आस्था के संगम पर जो आप सभी यहां संत महात्मा महामंडलेश्वर एकत्रित हुए हैं, दिल से अभिनंदन करता हूं। वर्तमान परिस्थितियों में क्या इस कार्यक्रम की रुपरेखा रखने की आवश्यकता पड़ी। आज हम देखते हैं कि परिवर्तन का चक्र बहुत तेजी से चल रहा है, कि हम अनुमान भी नहीं लगा सकते। सामाजिक जीवन भी बदलता जा रहा है। आज व्यक्ति के पास भौतिक साधनों का अंबार लग रहा है, लेकिन वह अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा है। आज समाज के अंदर जो समरसता, सौहाद्र चाहिए, सात्विकता चाहिए उसके स्थान पर दुष्टता, अराजकता, स्वार्थपरायणा दिखाई दे रही है।
केवल पांच सेंकेंड करें राजयोग का अभ्यास-ब्रह्माकुमार रामनाथ भाई
माउंट आबू से पधारे ब्रहमाकुमार रामनाथ भाई ने कहा कि संतों की त्याग, तपस्या और पवित्रता के कारण ही आज भारत को विश्व गुरु मानते हैं। इजराइन के जॉर्डन में एंबेसी थी, वहां एक माता माउंट आबू में दो तीन दफा आई, उनका बेटा हरिद्वार में योग सीखने जा रहा था। उन्होंने हमें मेल किया कि हमारे बेटे को आप राजयोग सिखाओ। केवल भारत नहीं, बल्कि सारा विश्व योग-राजयोग सीखना चाहता है। आज का विषय भी वही है। सारा विश्व कहता है कि हमें जीवन में आध्यात्मिकता की कमी है। आप पूछेंगे कि आध्यात्मिकता क्या है? आत्मा और परमात्मा का ज्ञान ही आध्यात्मिकता है। यदि जीवन में उन्नति चाहते तो केवल पांच सेकेंड ब्रहमाकुमारीज में राजयोग सीखो। राजयोग इतना सहज है। जितनी भी आपकी बुद्धि भटकती है, स्थिर हो जाएगी। यह कोई चमत्कार नहीं है, विधि है। आप जहां भी बैठो, खासकर सूर्य उदय होने के पहले और अस्त होने के बाद जो पूजा पाठ करते हो करो, लेकिन उसमें कुछ जोड़ो। अपने आप से पूछो मैं कौन? मन प्रश्न करेगा, बुद्धि जबाव देगी। एक ही जगह पर आप स्थितप्रज्ञ हो जाएंगे। भगवान पतित आत्मा को पावन बनाता है। इस आध्यात्मिक ज्ञान को जीवन में प्रयोग करते हो तो जीवन में सुख शांति आ जाएगी।
वसुधैव कुटुम्बकम का भाव हम सबमें जागृत हो- गोवर्धनशरण जी महाराज
गोवर्धनशरण जी महाराज, सिरगिट्टी आश्रम पांडुका जी ने संत समागम को संबोधित करते हुए कहा कि एक जोत है सब दीपों में, सारे जग का नूर एक है। सच कहता हूं दुनिया वालों, हाकिम और हुजूर एक है। गहराई में जाकर देखो, सब धर्मों का सार एक है। एक वाहेगुरु एक परमेश्वर, एक राम, श्री कृष्ण एक है, नाम भले ही अलग-अलग हो, पर भक्तों का भगवान एक है। इसी संदेश को ब्रहमाकुमारी भाई-बहनें, सभी संत समाज में जा रहे हैं। सबका उद्देश्य है सनातन आगे बढे। सनातन सुदृढ हो। वसुधैव कुटुम्बकम का भाव हम सबमें जागृत हो। यही हम सबका भाव है। इसी भाव को लेकर आगे बढ़ते रहना है।
हमारे सनातन धर्म में केवल संकल्प है, विकल्प का कोई स्थान नहीं- महंत रामसुंदर दास जी
दूधाधारी मठ के महामंडलेश्वर महंत श्री रामसुंदर दास जी महाराज ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि आज बहुत ही सुखद अवसर है कि आध्यात्मिक चिंतन करने के लिए ब्रह्माकुमारीज की नवापारा आश्रम में हम सब उपस्थित हैं। हम लोग अपने आपको सनातनी कहते हैं। भारतीय संस्कृति सनातन धर्म कहा जाता है। इस सनातन से कोई अलग नहीं है। हमारा संकल्प है और उस संकल्प में कोई विकल्प नहीं है। लेकिन जब हम विकल्प ढूंढत हैं, दुख दर्द वहीं से प्रारंभ होता है। इतने युग बीत जाने के बाद भी हमारे भारत वर्ष में ऐसा कोई गांव न हो, जहां हनुमान जी का मंदिर न हो, ये उनकी स्वामीभक्तता का परिणाम है। हमसे चूक तभी होती है, जब अपने कर्त्तव्य को छोड़कर विकल्प ढूंढना शुरु करते हैं। हमें जो कार्य मिला है, उसे राघवेंद्र सरकार का कार्य समझकर करें तो आज हमारा भारतवर्ष फिर से सोने की चिडिया कहलाएगा। हमको जो दायित्व मिला है, हम उसका निर्वहन करें। हमारे सनातन धर्म में केवल संकल्प है, विकल्प का कोई स्थान नहीं है। हमारे ऋषि मुनि सबका कल्याण चाहते थे, इसलिए कहते थे कि सर्वे भवंतु सुखमय। हम भारतीय हैं, सबका कल्याण चाहते हैं।
सही जीवन जीना है तो राजयोग पर चलना होगा- महामंडलेश्वर डॉ श्री शिवस्वरूपानंद जी
जोधपुर से पधारे महामंडलेश्वर डॉ श्री शिवस्वरूपानंद जी ने संबोधित करते हुए कहा कि धर्मप्रधान भारत देश उसमें भी भगवान श्री राम का ननिहाल की पावन भूमि को प्रणाम करता हूं। गीता विश्व का सर्वोत्तम ग्रंथ है, ना भूतो ना भविष्यतो। दूसरा कोई ग्रंथ बना ही नहीं है। भगवान की साक्षात वाणी का एक ग्रंथ गीता, दूसरा कोई ग्रंथ नहीं है। इसलिए हमको इन चीजों पर सचेत रहना पड़ेगा। लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इससे हमें कोई असर नहीं पड़ता। मैं पिछले पांच छह वर्षों से ब्रहमाकुमारी संस्थान से जुड़ा हुआ हैं। उससे पहले हमलोगों के मन में भी बहुत सारी भ्रांतियां थीं। मैं माउंट आबू भी गया हूं। ब्रहमाकुमारीज के बीस पच्चीस सेंटरों में जा चुका हूं। मैं भी पहले लोगों के भ्रम का शिकार बना हुआ था कि स्वामी जी, आप तो महामंडलेश्वर हो, सनातन के प्रहरी हो, वैदिक मर्यादा का पालन करने वाले हो। आप कहां जा रहे हो, ब्रह्माकुमारीज। मुझे बहुत भ्रमित किया गया। लेकिन जब मैं अंदर आया, पुष्पा बहन से मिला, उन्होंने मुझे सारे सेंटरों में जाकर दिखाय तो हकीकत सामने आ गई कि यदि सही जीवन जीना है तो राजयोग पर चलना है, तपस्चर्या में चलना है, ब्रह्मचर्य का पालन करना है तो, मुमुक्षता को जानना है तो आपको इस योग पर चलना ही पड़ेगा। सन्यास लोगे तो सबसे पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा, तपस्या करोगे तो पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा। शिक्षा, यज्ञ, राजधर्म हर जगह ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा। बिना ब्रह्मचर्य के कहीं भी आपकी गति नहीं है। गीता भी यही कहती है।
छत्तीसगढ़ के सभी ब्रहमाकुमारीज केंद्रों में हो ऐसा संत सम्मेलन-ज्ञानेश शर्मा
छत्तीसगढ़ योग आयोग के अध्यक्ष ज्ञानेश शर्मा जी ने कहा कि ये केवल राजिम क्षेत्र के लिए नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी बात है। संत समागम के लिए श्री शर्मा ने राजिम केंद्र की संचालिका पुष्पा दीदी को बधाई दी। मैं तो केवल प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय को साधुवाद देना चाहता हूं कि वास्तव में इस समय संत समागम की आवश्यकता है। आज मनुष्य आपाधापी के चलते शांति व सौहाद्र को खो चुका है। ऐसे विकट समय में यदि ऐसे संत समागम का आयोजन होता है तो संतों की वाणी से प्रभु से मिलने व उनके प्रति ध्यान करने का अवसर मिल जाए, तो आज के समय में बहुत बड़ी बात है। मैं तो नारायण भाई, रामनाथ भाई, पुष्पा दीदी से विनम्र आग्रह करता हूं कि छत्तीसगढ के सभी ब्रहमाकुमारी केंद्रों में ऐसे आयोजनों को जरूर करवाएं। ये जिम्मेदारी ब्रह्माकुमारीज संस्था अच्छे से निभा सकती हैं।
ब्रह्माकुमारीज राजयोग से जीवन में सुख, समृद्धि और सदाचार लाती हैं- बृजमोहन अग्रवाल, पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक
पूर्व कैबिनेट मंत्री व भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि बहुत प्रसन्नता की बात है कि छत्तीसगढ़ के प्रयागराज में ये विराट संत सम्मेलन आयोजित किया गया है। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से मैं पिछले 40 सालों से जुड़ा हूं। रायपुर में इसकी स्थापना के समय से ही हमारे पिता जी ने नींव रखी थीं। ब्रह्माकुमारीज राजयोग के माध्यम से लोगों के जीवन में सुख समृद्धि और सदाचार लाने का प्रयास कर रहा है। आज की आवश्यकता है लोग धर्म-अध्यात्म का अर्थ नहीं जानते हैं। जबकि कहते हैं कि धर्म या आध्यात्म के बिना क्या जीवन सार्थक हो सकता है क्या? धर्म और आध्यात्म पूजा पदधति का नहीं जीवन जीने की पद्धति का नाम है। हमको सुख, शांति, सदाचार मिले, हम सुखमय जीवन जी सकें। आज के जीवन में कोई भी सुखी नहीं है। सुख पाने का एक रास्ता ब्रह्माकुमारीज के मेडिटेशन के माध्यम से मिलता है। किस प्रकार हम अपने विकारों से दूर हो सकते हैं, ये हमको राजयोग सिखलाता है।
संत का अर्थ है सद्मार्ग पर चलने वाली आत्माएं- राजयोगिनी बीके पुष्पा दीदी
राजिम केंद्र की संचालिका ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी पुष्पा दीदी ने कहा कि शिव बाबा ने आप संतों को शुरु से याद किया। शिव बाबा कहते हैं कि यदि संत नहीं होते तो ये भूमि नरकवासी बन जाती। संत का अर्थ है सद्मार्ग पर चलने वाली आत्माएं। शिव बाबा कहते कि आज संत आत्माओं ने घर बार का त्याग किया। साथ ही विकारों का भी त्याग किया। इसी का नाम है सन्यास। राजयोग के शब्दों में वही राजऋषि कहलाते हैं। चाहे संत महात्मा हो या ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारियां हों। एक स्वामी जी ने मुझे कहा कि बहनजी हम कुछ भी लेकर नहीं आए, केवल एक गुरुमंत्र ही हमारे लिए सर्व संपत्ति का आधार है। परमात्मा शिव ने हमें जो मंत्र दिया, वो है मनमनाभव, मामेकम शरणम्। सर्वधर्मानि परित्जयते। कहने का मतलब गीता का यही सार है। सभी संत भी जीवन का सार सुख, शांति और पवित्रता को ही बताते हैं। इसी प्रकार इस विश्वविद्यालय का भी यही लक्ष्य है कि जीवन में सुख, शांति और पवित्रता हो।
उद्धार करने के लिए संत-महात्माओं का होना बहुत जरूरी है- राजयोगिनी बीके आरती दीदी
इंदौर जोन की मुख्य संचालिका आरती दीदी ने ऑनलाइन जुडकर शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए कहा कि वर्तमान में दुनिया अनेकानेक परिस्थितियों से गुजर रही है। चारों तरफ कोई ना कोई तूफान मनुष्य आत्माओं के लिए खड़ा है। भ्रष्टाचार, पापाचार का बोलबाला चारो तरफ फैला हुआ है। दुख-अशांति चारों तरफ फैली हुई है। ऐसे समय में इस भूमि का उद्धार करने के लिए संत महात्माओं को होना बहुत आवश्यक है।
यदि परमयोगी को देखना है तो योग करना पड़ेगा- आचार्य श्रीवत्म महाराज
आयोध्या से पधारे आचार्य श्रीवत्स महाराज ने कहा कि यदि परमयोगी को देखना है तो योग करना पड़ेगा। भगवान परमयोगी हैं। कर्म की कुशलता ही योग है। उस महायोगी तक जाने के लिए हमें योगी बनना है। अगर हम आध्यात्मिक हो जाएंगे तो अपने आप हमारे में परिवर्तन होगा। मेरे परिवर्तन को देखकर दूसरे भी आकर्षित हों।
सन्यासी हो या गृहस्थ, दोनों हो सकते हैं आध्यात्मवेदता- श्री रुद्रानंद प्रचंड वेगनाथ महाराज
मडेली से आए महा औघडेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम के पीठाधीश श्री रुद्रानंद प्रचंड वेगनाथ महाराज ने कहा कि हमें दो कैरेक्टर दिखता है, एक श्री कृष्ण का और एक बुद्ध का। श्री कृष्ण का कैरेक्टर हमें सांसारिक दिखता है तो बुद्ध का सन्यासी दिखता है। इससे ये समझ में आता है जो सांसारिक कैरेक्टर में रहकर भी आध्यात्मवेदता हो सकता है। साथ ही सन्यासी होकर भी आधात्मवेदता हो सकते हैं। भगवान शंकर में हम देखते हैं कि वे सांसारिक भी हैं, पूर्णतः वैरागी भी है। वे गृहस्थ साधु हैं। आज आपके बच्चों को आधा किलोमीटर चला नहीं सकते। आपका बच्चा सबेरे स्कूल जाता है, शाम को ट्यूशन जाता है। लेकिन आपके बच्चों को चलने का मौका भी नहीं मिलता।
विराट संत सम्मेलन में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन पटेल नगर दिल्ली से पधारी ब्रह्माकुमारी राजेश्वरी दीदी ने किया।
बॉक्स
- संत सम्मेलन की झलकियां
- संतो ने किया ग्लोबल पीस हॉल का उद्घाटन
- निकली विशाल शोभायात्रा
- राजिम निवासियों ने किया संतों के दर्शन
- प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ने किया विराट संत सम्मेलन
- सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम में मोहा सबका मन
- बड़ी संख्या में संतों को सुनने पहुंचे श्रद्धालु
- ब्रह्माकुमारीज़ के राजिम सेंटर पर हुआ संतों का समागम