सृष्टि चक्र में जो भी महान व्यक्तित्व हुए हैं वह कठिन परिस्थितियों, समस्याओं, वेदना, दु:ख और दर्द की पाठशाला से निकलकर व्यक्तित्व का विश्वविद्यालय बने हैं। उन्होंने दु:ख, तकलीफ और कठिन परिस्थितियों के बीच ही निराशा को आशा, हताशा को उमंग-उत्साह और प्रेरणा की ओर मोड़ दिया। वास्तव में यही वह दौर होता है जब व्यक्तित्व की असली पहचान होती है और उसकी कीमत पता चलती है। जब हम उस कठिन दौर से गुजर जाते हैं और समस्याओं में समाधान ढूंढकर सफलता का वरण करते हैं तो यहीं से हमारी श्रेष्ठता और जीवन की सार्थकता का अध्याय शुरू हो जाता है।
यदि आपका जीवन समस्याओं रूपी नाव पर सवार है तो यकीन मानिए इसका मांझी खुद परमात्मा है। क्योंकि यही वह वक्त होता है जब हम खुद के साथ परमात्मा के सबसे समीप होते हैं। समस्या आने पर ही हम अपने पुराने अनुभवों के साथ उसके समुचित पहलुओं पर विचार करते हैं। साथ ही खुद की, मनोस्थिति और कर्मों की समीक्षा करते हैं। उन कारणों की तलाश करते हैं जो समस्या रूप में सामने आई। ऐसे में हमें अपने कर्मों को संयमित, संतुलित बनाने का मौका मिलता है। हम पग-पग फूंककर रखते हैं ताकि प्रत्येक कर्म सुकर्म हो। जितनी हम अपने मनोस्थिति की समीक्षा करते हुए खुद से संवाद स्थापित करेंगे उतना ही व्यक्तित्व कुंदन सा निखरता हुआ महानता को प्रतिस्थापित करने की ओर अग्रसर होने लगता है। यदि समस्याएं ही न आएं तो जीवन सावन के पपीहे के समान हो जाएगा जो चारों ओर पानी का अथाह सागर होने के बाद भी प्यासा रहता है। समस्याओं का काम है आना और चला जाना। किसी का भी जीवन कभी एक समान नहीं होता है। इस पल सुख है तो अगले पल दु:ख भी निश्चित है। जब सुख और दु:ख की स्थिति में हमारी कर्मेंन्द्रियां संतुलित और एक समान व्यवहार को दर्शाते हुए उदाहरण पेश कर श्रेष्ठता की स्थिति को स्थापित करती हैं तो वह कर्म साधारण न होकर श्रेष्ठ कर्म बन जाते हैं। ऐसी स्थितियां ही देवत्व रूपी व्यक्तित्व बनाती हैं।
युवा हैं आशा के दीपक
कोरोनाकाल में प्राय: हर दूसरे घर-परिवार ने समस्याओं का सामना किया। कुछ ऐसे परिवार भी हैं जिनका पूरा का पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आकर पॉजीटिव हो गया और कई सदस्य सदा के लिए विदा भी हो गए। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आज फिर से नई उम्मीदों के साथ जीवन को सार्थक दिशा देने में जुट गए हैं। वहीं कुछ युवा जरा सी समस्याओं से हारकर हताश हो जाते हैं, टूट जाते हैं। लेकिन ऐसे समय में वह भूल जाते हैं कि समस्याओं के काले बादल के पीछे ही सुबह रूपी उम्मीद का सूरज छिपा है। काली-घनेरी रात के बाद सुबह आना तय है। युवा तो वह रवानी है जो बुझे दिलों में उम्मीद की आस जगाकर उनमें पानी भर दे। युवाओं पर ही घर के बड़े बुजुर्गों, बच्चों की आस टिकी रहती है। युवा ही देश, समाज की धडक़न हैं। हे! युवाओं आपके जीवन में आज जो समस्याओं हैं, इनकी आंच में तपकर कल आपका व्यक्तित्व दीपक की तरह चारों ओर प्रकाश फैलाएगा। तुम्हें खुद के साथ दूसरों को जगाना है। काली रात के बादल तुम्हारा रास्ता नहीं बदल सकते हैं। तुम्हें सागर से मोती चुगना है। यदि आपके जीवन में भी लगातार समस्याएं आ रही हैं तो यकीन मानिए परमात्मा ने जरूर आपके सुनहरे भविष्य को लेकर कुछ प्लानिंग कर रखी है। क्योंकि लोहा को कड़ी आग में तपाकर ही मन माफिक आकार दिया जा सकता है। जितना लोहे को आग में तपाया जाता है वह उतनी ही आसानी से नए सांचे में ढल जाता है। हमारा जीवन जितनी विपदाओं, परेशानियों और समस्याओं से होकर गुजरता है व्यक्तित्व उतना ही कुंदन बनता जाता है।- पुष्पेन्द्र भाई