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वसुधैव कुटुम्बकम् का जीवंत उदाहरण - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
वसुधैव कुटुम्बकम् का जीवंत उदाहरण

वसुधैव कुटुम्बकम् का जीवंत उदाहरण

सच क्या है

तीन संस्कृति, तीन धर्म और एकता के 13 बरस, मुख्यालय शांतिवन: हिंदू, मुस्लिम और सिख युवा की प्रेरणादायक कहानी

शिव आमंत्रण, आबू रोड (राजस्थान)। वसुधैव कुटुम्बकम्। इस महावाक्य को ब्रह्माकुमारीज़ में तन-मन से समर्पित तीन युवाओं ने साकार कर दिखाया है। तीन अलग-अलग राज्यों, तीन धर्म के होने के बाद भी इन्होंने एक साथ, एक ही कमरे में जिंदगी के अनमोल 13 बरस गुजारे और आज भी साथ-साथ हैं। वह भी आपसी प्यार-स्नेह और भाईचारे के साथ। यह संभव हो सका संस्थान में दिए जा रहे राजयोग के ज्ञान से। राजयोग न केवल व्यक्तित्व को सकारात्मकता से परिपूर्ण बना देता है बल्कि धर्म-मजहब की दीवारों को तोड़कर एकता के सूत्र में बांध देता है। पंजाब के जालंधर से दलजीत सिंह सिख धर्म से तो गुजरात के जामनगर से परसुमन सिंह हिंदू धर्म और मप्र के इंदौर से बुरहानउद्दीन अली मुस्लिम धर्म से हैं। आज इनका जीवन अपनेआप में किसी मिसाल से कम नहीं है। इन तीन युवाओं की कहानी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है।

एकसाथ ही हुई समर्पण की प्रक्रिया
सबसे गजब संयोग यह है कि तीनों युवा आज से 13 बरस पहले एक ही वर्षमें मुख्यालय शांतिवन में सेवा देने के लिए आए थे। यहां के ज्ञान, ध्यान और दिनचर्या में ऐसे रमे की यहीं के होकर रह गए। तीनों की ही एक साथ समर्पित होने की प्रक्रिया पूरी हुई। कभी मनमुटाव और विवाद नहीं हुआ- दलजीत सिह जहां मीडिया में अपनी सेवाएं देते हैं तो बुरहानउद्दीन एजुकेशन विग में और परसुमन सिह फिल्म डिविजन में सेवाएं दे रहे हैं। 13 साल से एक ही रूम में एकसाथ होने के बाद भी इनका आपस में कभी मनमुटाव और विवाद नहीं हुआ-यदि रूम में एक साथी सो रहा हो और दूसरा लेट आया हो तो सामने वाले की सुविधा को देखते हुए वह बिना लाइट चालू किए ही अपना कार्य करता है। यदि एक को गर्मी लगे और दूसरे को ठंड तो आपसी स्नेह से एक कंबल ओढ़कर सो जाता है। तीनों ही मिलकर रूम में साफ-सफाई करते हैं। सगे भाई और दोस्तों की तरह प्रेम से रहते हैं बीमार होने पर रखते हैं ख्यालयदि तीनों में से कोई एक साथी बीमार हो जाता है या कोई शारीरिक समस्या आ जाती है तो दूसरे साथी उसके भोजन आदि का पूरा ख्याल रखते हैं। उसकी जरूरतों और सुविधाओं को पूरा करते हैं।

सेवाओं के विस्तार पर करते हैं चर्चा-
दलजीत सिह, बुरहानउद्दीन अली और परसुमन सिह ने बताया कि हम लोग रुम में आपस में सिर्फ सेवाओं को विस्तार देने के बारे में ही चितन-मंथन करते हैं। हमारे बीच कभी गपशप और व्यर्थ बातें नहीं होती हैं। हम तीनों का प्रयास रहता है कि एक दूसरे को पूरा सहयोग करें। उनकी भावनाओं और पसंद-नापसंद का ध्यान रखें। यही हमारी एकता और भाईचारे का कारण है।

परसुमन सिंह (41) कैमरा मैन, वीडियो एडिटर, फिल्म डिविजन, शांतिवन मुख्यालय, आबू रोड

मेरे पिताजी एयरफोर्समें थे। गोरखपुर में पिताजी की पोस्टिंग के दौरान ब्रह्माकुमारीज़ के बारे में पता चला। उस वक्त मेरी उम्र करीब चार साल थी। सबसे पहले माताजी ने राजयोग कोर्स किया। इसके बाद मैं और छोटी दो बहनें भी राजयोग का अभ्यास करने लगीं। आज दोनों बहनें मेरी तरह समर्पित रूप से सेवाएं दे रहीं हैं। इसके बाद पिताजी जब जामनगर गुजरात में पोस्टेड थे तब वह इस ईश्वरीय ज्ञान से जुड़ गए। इसके बाद घर में ही पाठशाला शुरू कर दी जो आज भी जारी है। देश और विश्व की सेवा के लिए मैंने अपना जीवन मुख्यालय में समर्पित करने का फैसला किया। पहले 15 दिन के हिसाब से यहां आया था। लेकिन यहां के माहौल, भाई-बहनों के अपनापन ने हमेशा के लिए अपना बना लिया। यहां सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि मुख्यालय में एकसाथ बिना भेदभाव के हर धर्म, जाति, संप्रदाय के लोग रहते हैं।

दलजीत सिंह (37) बीएससी, शांतिवन मुख्यालय, आबू रोड-

बचपन से गुरुद्वारे और लंगर में बहुत सेवा की बचपन से ही आध्यात्म की ओर रुझान था। जवानी तक खूब गुरुद्वारे और लंगर में सेवा की। मैं हमेशा सोचता था कि यदि भगवान मिल जाएं तो यह जीवन उनके नाम कर दूंगा। कॉलेज के दौरान सहपाठी बीके संदीप भाई और बीके साबी भाई ने मुझे ब्रह्माकुमारीज़ के बारे में बताया। इसके बाद जालंधर सेवाकेंद्र पर राजयोग कोर्स किया तो मुझे पूरा विश्वास हो गया कि परमात्मा इस धरा पर आकर अपना कार्य कर रहे हैं। तभी मैंने निश्चय कर लिया कि अब जीवन ईश्वरीय सेवा में लगाना है। 13 साल से मीडिया डिपार्टमेंट में सेवा दे रहा हूं। हम रुम में तीनों भाई बहुत ही प्रेम, एकता और भाईचारे के साथ रह रहे हैं। न आपस में कभी किसी बात को लेकर मनमुटाव हुआ और न ही विवाद। एक-दूसरे की जरूरतों को हम समझते हैं। अनेकता में एकता लाना और विश्व बंधुत्व का भाव प्रैक्टिकल में यहां सिखाया जाता है।

बुरहानउद्दीन अली (35) एनीमेटर, एजुकेशन विग, शांतिवन मुख्यालय, आबू रोड-

सबसे पहले हमारी माताजी (डॉ. जमीला बहन) संस्था के संपर्क में आईं। यह ज्ञान समझने के बाद उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आया। इसके बाद बड़ी बहन और छोटे भाई भी जुड़ गए। शुरुआत में संस्था में जाने पर मुझे हिचक होती थी लेकिन जब समझ आया कि यहां धर्म और जाति को लेकर किसी तरह को भेद-भाव नहीं है तो मेरी आस्था बढ़ गई। इस ज्ञान से मैंने जाना कि परमात्मा से हमारा पिता-पुत्र का संबंध है। इस बात ने मुझे विशेष र्आकर्षित किया। जब मुख्यालय माउंट आबू आना हुआ तो यहां का पवित्र वातावरण देख कर बहुत प्रभावित हुआ। मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब सारा जीवन परमात्मा की सेवा में समर्पित करना है। भाईचारे, सौहार्द और एकता ही सबसे बड़ी शक्ति है। हम तीनों भाईयों ने इसे प्रैक्टिकल में कर दिखाया है। हमारे बीच कभी धर्म, ऊंच-नीच आदि को लेकर कोई मन मुटाव नहीं हुआ।

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