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हर बात को संयम से सुन लेंगे तो सामने वाला कभी झूठ नहीं बोलेगा - Shiv Amantran | Brahma Kumaris
हर बात को संयम से सुन लेंगे तो सामने वाला कभी झूठ नहीं बोलेगा

हर बात को संयम से सुन लेंगे तो सामने वाला कभी झूठ नहीं बोलेगा

जीवन-प्रबंधन

शिव आमंत्रण, आबू रोड। आज कल तो हर बड़े शहरों के स्कूल में परामर्शदाता यानी काउंसलर नियुक्त किए जाते हैं। बच्चा जाकर उनसे अपनी हर बात करता है जो कि वह अपने मम्मी-पापा से नहीं करता है। क्योंकि काउंसलर निष्पक्ष होकर बच्चे की हर बात को आराम से सुनते हैं। हां जी बताओ क्या हुआ मुझे ये एडिक्शन हो गया, मुझे ये आदत हो गई मानो बच्चा अपना सबकुछ सुना देता है। काउंसलर बच्चे की किसी भी बात पर रिएक्ट नहीं करते हैं। काउंसलर कहते हैं, कोई बात नहीं, हर चीज ठीक हो सकती है। आप बैठो, ठीक करते हैं। मानो वह बहुत ही प्यार से बच्चे को आदर देकर समझाता है और उसकी कमियों को दूर करने का तरीका बता देता है। इससे एक तो आदर बना रहता है और दूसरा कि उसे अपमानित नहीं होना पड़ता है। जबकि माता-पिता का बच्चे से लगाव होता है तो वे प्रतिक्रिया कर देते हैं, कहते हैं- “तुमने ऐसे किया कैसे, तुम्हें इसलिए स्कूल भेजा था, इसलिए मैं इतना खर्च कर रहा हूं, तुम्हारे लिए मैं इतनी मेहनत इसलिए कर रहा हूं। इतना सारा उस बच्चे को सुना देते हैं। फिर तो बच्चा आगे की पूरी बात बताता भी नहीं है।
अब जमाना बदल चुका है आज हर पैरेंट को अपने बच्चे के लिए काउंसलर बनना पड़ेगा। काउंसलर मतलब साक्षी होकर, शांति से उसकी हर बात सुनें, उनकी बातों को स्वीकार करें जो उन्होंने किया है उसके लिए राय दें। अगर उस समय अपने ऊपर संयम नहीं रखा तो हम खुद ही चिंता में चले जाते हैं, घबरा जाते हैं और फिर उनको अपमानित कर देते हैं। तो यह पक्का मान लें कि अगली बार वो अपनी कोई भी बात आपको बताने वाले नहीं है। जबकि होना तो यह चाहिए कि बच्चा अपनी हर बात पैरेंट्स के साथ शेयर करे।
हर बच्चे को अपने माता-पिता से स्वीकार्यता (एक्सप्टेंस) ही तो चाहिए। अगर वो स्वीकार्यता उसको मम्मी-पापा से मिल गई, तो वो फिर अपने किसी दोस्त के पास जाने की जरूरत महसूस नहीं करेगा। अगर मम्मी-पापा से वो स्वीकार्यता नहीं मिली तो फिर दूसरों के पास चला जाता है। अगर उसको ये स्वीकार्यता अपने दोस्त से मिल गई तो वह अपने दोस्त के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है। यहां तक कि वो उन चीजों के लिए तैयार रहता है जो उनको खुद अपनी मर्यादाओं में सही नहीं लगती हैं। उसको हम कहेंगे “फियर प्रेशर। इसलिए हर घर में स्वीकार्यता मिल जाए तो कोई भी बच्चा कभी भी भय के प्रेशर में नहीं जाएगा। हमें उन बच्चों को सेफ रखना है। आप अपने बच्चों को कहेंगे कि आप अपनी हर बात मुझे बता सकते हैं। यह गारंटी देना चाहिए कि आप सुनाओगे तो मैं आपको डाटूंगा नहीं। मैं एक स्कूल में गई थी उसमें नवमी और दसवीं के 200 बच्चे थे। मैंने पूछा कि आपमें से कौन-कौन है जो अपनी हर बात मम्मी-पापा को जाकर सुनाता है। तो सिर्फ पांच बच्चों ने हाथ उठाया। मैंने कहा कि आप मम्मी-पापा को जाकर बोलो कि आप डांटोगे नहीं तो मैं अपनी हर बात आपको बताऊंगा। तो वो मुझ पर हंसने लगे और कहते हैं, दीदी कैसी बात करते हो आप। वो कहते हैं कि पहले हमारे पैरेंट्स हमारी हर बात को सुन लेंगे। उस समय तो वो कुछ नहीं कहेंगे लेकिन बाद में किसी भी बात पर डांटने के लिए हमारी बातों को ही यूज करेंगे। हम उनको जानते हैं वो भी हमें जानते हैं। चाहे बच्चे हों, चाहे कोई और हो, लोग सच अगर बच्चे आकर कुछ शेयर करते हैं तो शांति से उनकी हर बात सुनें। उन्हें किसी भी बात के लिए दोषी न ठहराएं।
बोलने के लिए तैयार हैं। तो हमें भी सच सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए। अगर हम उनकी हर बात को संयम से सुन लेंगे तो सामने वाला कभी झूठ नहीं बोलेगा। हमारे रिश्ते अपने आप मधुर और मजबूत हो जाएंगे। फिर उन्हें कोई भी बात आपसे छुपाने की आवश्यकता महसूस नहीं होगी। अगर आपके बच्चे आकर आपसे कुछ शेयर करते हैं तो आप शांति से उनकी हर बात को सुनें। उन्हें किसी भी बात के लिए दोषी न ठहराएं। वो जिस समाज में अभी बड़े हो रहे हैं और हम जिस समाज में बड़े हुए थे, दोनों में बहुत फर्क आ चुका है। तब के नॉर्मल और अब के नॉर्मल की परिभाषा बदल चुकी है। हमें प्यार से उनको राय देनी है लेकिन पहले उनकी हर बात को मानकर रिश्ते को मजबूत बनाना होगा।

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